लेख: सामाजिक समरसता में नियमों की अनदेखी और ग्लोबल जागरूकता

दिमाग में ही हर चीज पर जबरन कब्जा करने और फिर झगड़ने की भावना न हो तो किसी तरह का विवाद कहीं हो ही नहीं न !!

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जैसे हर महीने में चार जुमे सड़कें ज़ाम और भीड़ हो जाती है कई गुनी निकलना बंद रूट डायवर्जन ,
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किंतु परेशाना पूरे साल में केवल एक पखवारे चलने वाली कांवड़ यात्रा से है !!
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हर साल कहीं न कहीं काँवड़ियों से झगड़ा झें झें सुरक्षा के बाद भी हो जाती है और तमाम व्यंग्य बुराई तो करते ही है ।
आपके मज़हब में रोना ठीक है गाना बज़ाना नाचना खुश होना निषिद्ध ,परन्तु दूसरे के धर्म में तो नृत्य गीत कीर्तन आराधना के अंग हैं ।
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चर्च वाले भी कैरोल प्रेयर संगीत के साथ गाते हैं ,जैन और सिख भी संगीत के साथ गाते हैं l
, आपके पूरे रमज़ान भर दो बजे रात से कड़कड़ की कर्कश आवाज डिब्बे में पत्थर भरकर माईक पर बज़ाने%से लोग न सो पाते हैं तीस दिन ना ही पढ़ पाते हैं और चिढ़चिढ़े हो जाते हैं वे लोग जो रात ग्यारह बजे ड्यूटी से घर आकर आराम करने को दो चार घंटे बड़ी मुश्किल से निकाल पाते हैं ।
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हिसाब बराबर कर लो या झगड़ते रहो ।
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तुम्हारे घरों से बहता लहू माँस के टुकड़े गंदी सड़ी गली आंते छीछड़े सब गली में या सार्वजनिक कूड़ियों पर कहीं भी पड़े रगते हैं जहाँ मंदिर जाने स्कूल जाने खेलने का रास्ता है चाहते तो यह सब दफन कर लेते मगर यूँ ही पंख छिलके छीछड़े सब फैले रहते हैं ।परंतु कोॆी कहीं धोखे से पानी कीचड़ का कोई छींटा उछल जाये तो झगड़ने लगते हो वुजू खराब कर दी । मांस लांघकर मंदिर जाते शाकाहारी लोग उबकने लगते हैं तो झगडने का काम नहीं है ।
होली या तो खेलनी सीख लो या होली की मस्ती में चूर लोगों के आसपास से मत निकला करो ।
नमाज के समय कोई गाये बजाये तुम्हे बुरा लगता है तो ठीक है तुम भी सुबह शाम की आरती के समय माईक उतार कर नमाज पढ़ लो काश कि तुमने पहल की होती
©®सुधा राजे ,

: पर तिरंगा लेकर निकल नहीं सकते गणतंत्रदिवस को ,वन्देमातरम् गा नहीं सकते कहीं ,भारतमाता की जय बोल नहीं सकते ,ठीक है तो हर ज़ुमे को सड़कों पर गली  में परंपरानुसार चितेऊर ,सुअटा के भूतनाथ ,रंगोली, अल्पना, चौक, सुरांती, रौना, करने दीजिये सब स्त्रियों को ,सजीला सुंदर रंगीला भारत ,क्यों ?
फिर जलन !!!
अरे तो जुमे में सड़क जाम करना भी बंद कीजिये अपने अपने घर करो जो करना है ,शुबरात की बाईकिंग स्टंट धमाके या चीख चीख कर इज़्तमे की तकरीर ,
या तो कोॆई न करे या सबको हक हो ।
कान में पहली आवाज़ अपने राम की या अज़ान की सब झेलते हैं न !!
तो वन्देमातरम् से क्या परेशानी ?
देखो दिल साफ है और दिमाग खुला तो बहाना कुछ नहीं वरना तो पाँच बार हज़ारों भर लाऊडस्पीकर एक नगर को कोलाहल का ध्वनि प्रदूषण ही देते हैं बिना माईक के भी तो सैकड़ों का सुर का क्या कम है ।
तुम मसजिदों से लाऊडस्पीकर नहीं रखोगे आरती बंद हो तो लोग लड़ेंगे ,तुम सडक़ पर कहीं भी जाम लगा दोगे और रामडोल दशहरा गणपति या तिरंगा निकलने पर लड़ोगे तो लोग उत्तर में लड़ेंगे ही ।
कुतर्क करने से सहन शील नहीं हो जाता एक ही को बार बार दबाना क्यों ?
सोनू निगम को टकला कर भारत भर में जूते फटे वाले मारकर घुमाने की बातें टीवी पर पैनल डिसकसन हैं ,कोई अवैज्ञानिक अतार्किक भू जल वायु प्रदूषक देशविरोधी सब चुपचाप देखता रहे कि ,अल्प हैं बस ?©®सुधा राजे

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