कविता: :राजनीतिक चुनाव पर नेता जी
इस कविता को पूरा पढ़ना चाहे तो ये रही।।।
। Sudha Raje
खुले गली के भाग पधारे द्वारे द्वारे नेताजी।
कई बरसों के बाद दिखे फिर हाथ पसारे नेताजी।
चढ़े मंच पर हवा भाँजते गरियाते दुश्मन सारे।
भाङे के मजदूर लगाते जय जयकारे नेताजी ।
मखना, कलुआ,जुम्मन ,आलम ,बल्लू ,पप्पू ,रमदसवा।
काजू पे बादाम छुहारे रोज डकारे नेताजी।
भट्टी चढ़ गयी जंगल जंगल नंबर दो के माल पके ।
कच्ची पै सच्ची से अच्छी मच्छी मारे नेताजी
घर घर थैली चादर तल्ले बोतल अद्धी पौआ दै।
चमचे के चमचे के चमचे को पुचकारे नेता जी।
झूठे बिल झूठे विकास के झूठे वादे झूठ क़सम ।
झूठमूठ की हमदर्दी से काम निकारें नेताजी।
जिन गलियों में चलने तक से बदबू इनको आती है ।
साठ साल से हर चुनाव पर ख़ुशबू मारें नेता जी।
हिंद, मुसलिम सिख ईसाई दलित सवर्णों को बाँटें ।
छाँटे अपने वोट नोट पै लै चटकारे नेता जी।
फाईल पर फाईल पर फाईल जाँच जाँच पर जाँच बिठा ।
खूब बनाते उल्लू करते सीधा सारे नेताजी
सुधा दाँव पर लगी कुरसियाँ बाजी पर घोटाले हैं ।
जीत गये तो होगें फिर से वारे न्यारे नेता जी ।
सुधा राजे All right ©®™Sudha Raje
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