लेख~:होली क्यों नहीं मनाओगे

होली क्यों नहीं मनाओगे ?(सुधा राजे)
कोई किसी के घर मर भी जाता है तो भी हुरियारे टोली लेकर पानी डालने जाते है सोग उठाने ,रंग को पानी कहकर
,
शांतिपूर्ण सहअस्तित्व
पृथक है ,और सांस्कृति दासता पृथक
,

स्वर्ण किसी भी धातु में मिल जाये ,वह उसका मूल्य बढ़ा देता है ,
स्वर्ण में कुछ मिल जाये वह उसका मूल्य घटा देता है,
सद्भाव सबके साथ रखो ,मिलावट स्वयं में किसी की न होने दो ,
सोने की मुंदरी मखमल की मंजूषा में रखी जाती है और अनंतकाल तक साथ रह सकते हैं दोनो
,
,

हरा और भगवा जब तक एक दूसरे को समझें समझायेंगे तब तक सफेद चेहरे वाले न  कुछ देखने देंगे न समझने ,बचुरचाप तुम्हारा संगीत बदल देंगे अपने संगीत से ,चुपचाप तुम्हारी रीत बदल देंगे अपनी रीत से ,चुपचाप तुम्हार नाम बदल देंगे अपने नाम से चुपचाप तुम्हारा दाम बदल देंगे अपने दाम से ,बदल देंगे तीज त्यौहार उत्सव और विचार परिधान और आभूषण भोजन और स्वाद ,तुम कब उनके हर तरह से भौंडी नकल पैरोडी मात्र रह गए हो तुम्हें पता तक नहीं चलेगा ,जब करोगे स्वयं के मूल की बात मौलिकता की बात तो बनोगे उपहास .......तुम जानते तक तो हो नहीं कि बर्थडे कहीं जन्मदिवस की वर्षगाँठ होकर मनता कैसे था ,पायर्सिंग से पहले "कर्णवेध उपबीत "होता था ,न्यूयीयर से पहले नववर्ष गुड़ी पड़वा चैतीचंद होता था ,बड़ा दिन से पहले माघस्नान मास होता था ,हैलोवीन से पहले "सुआटा "और दशहरा होता था ,,ईस्टर से पहले भीष्म एकादशी होती थी ,गुडफ्राईडे से पहले ,यमद्वितीया होती थी
,मदर्स डे से पहले मातृनवमी होती थी हर माह में दो बार ,फादर्स डे से पहले ,प्रात:पितृवंदना सायं पितृसेवा होती थी पितर पक्ष होते थे ,पितृऋण होता था ,फ्रैंडशिप डे से पहले ""कार्तिक मास होता था जिसमें डालो डेली मिले सहेली करके चांदनी में लड़कियाँ गंगा जल छिड़क कर दुपट्टे बदल लेतीं थी और लड़के गोप ग्वाल मंडली के टोपी बदल भाई बनते थे ,इनवायरमेन्ट डे से पहले पीपल पूनम बगदाही अमावस्या वटसावित्री आँवलिया नवमी बेल प्रदोष महुआतीज गंगा दशहरा यमुनाभाऊबीज ,धूलि रेणुका पूर्णिमा ,हरछट ,होते थे ,डाॅटर्स डे से पहले कन्यापूजन नवरात्रियाँ वर्ष में तीन बार होती थी ,,वेलेनटाईन से पहले ""मदनोत्सव मास वसंत फागुन होता था .......तुम कैसे जान पाओगे कि लवमैरिज प्रपोज और हगडे किस डे से भी बहुत पहले "समन और स्वयंवर होते थे ....ह्यूमन राईट्स से पहले ,जीवात्मा मात्र पर दया थी ..तुमने सिर्फ वह पढ़ा है जो तुम्हें सफेद चेहरोंने पढ़वाया , हरे काले रंगों ने नहीं पढ़ने दिया .....एक बार काश कि तुम खुद पढ़ते अपना गाँव दादी का गाँव नानानी का गाँव माँ का बचपन ,,,,,,पिता के पूर्वजों के रंग रूप .....
फागुन होली रंग रोली ,सबको शुभ हो©®सुधा राजे

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