लेख: मज़हब बदल कर हिंदू का रीति रिवाज"मूर्तिपूजा"नहीं बदलती

मसजिद केवल नमाज के लिये इकट्ठा होने वाला परिसर है जहाँ लोग एकत्र होकर नमाज कतार सफे में पढ़ सकें और लंबे खंबों पर चढ़कर आवाज लगाकर मुआज़्जन सबको दिन में 5बार बुला सके कि उठो मुसलमानो हाथमुँह पनया लो नमाज पढ़ो ,आओ हम बताते हैं इस तरह पढ़ना है ।
मसजिद न बुतखाना है ,न कोई अल्ला खुदा का घर ,
क्योंकि अगर ऐसा है ,तो यह "पदार्थपरस्ती "है ।
इसलाम का तो सबसे बड़ा सिद्धांत ही पदार्थ परस्ती ना करना ही है ।इसी सिद्धांक के कारण न तसवीर न फोटो न चित्र न मूर्ति न ही मकान भवन पत्थर मिट्टी किसी ""वस्तु""की पूजा की जाती है ,न पेड़ नदी पहाड़ जानवर की पूजा की जाती है ।
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इसी सिद्धांत की ,
स्थापना के लिए मक्का में 365 मूर्तियाँ तोड़कर एक पत्थर को यादगार रख दिया कि याद रहे ,
वस्तु पूजा ,पत्थर मिट्टी मकान इमारत जानवर पेड़ नदी ताल नहीं पूजने ,

इंसान की पूजा करनी है ,
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7वें आसमान पर रहता खुदा है उसकी न शक्ल है न रूप रंग नाम पता ,वही पुकारो ,
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पुकारने की याद दिलाने को मुअज्जन नामक ""अलार्म मैन ""एक लंबी मीनार पर चढ़कर आवाज लगाये और सब एकसाथ आकर कतार में बैठकर नमाज पढ़ें ,
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,इसलिये नमाज कहीं भी अदा हो सकती है "वक्त "होने पर ,
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सड़क गली स्टेशन बस के भीतर रेलगाड़ी में .....
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अगर मसजिद पूजने की वस्तु है तो इसलाम का मूल सिद्धांत ही खारिज हो जाता है ,
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"वस्तु जो नष्ट हो सकती है वह इबादत योग्य नहीं "
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इसीलिए सब के सब मुसलिम देशों में मूलइसलाम सिद्धांतवादी लोग मसजिद हटाकर तोड़कर जब चाहे नयी इमारत बना देते हैं जगह बदलदेते हैं ,
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हज के सब प्रतीक भवन तक ,
कठोर अनुपालक ,तोड़ने की कोशिश करते पाए गए ,क्योंकि उनका मानना है कि ,
पदार्थ की इबादत जैसी भावना बढ़ रही है ,
यह एक तरह की बुतपरस्ती का ही रूप है ,
कब्र बनाने मजार बनाने पर भी उन सब कठोर मूल सिद्धांत वादियों का यही विरोध है कि ,शरीर जमीन के भीतर दबाना तो ठीक है परन्तु ताबूत बनाना सही नहीं ,ना ही पक्की कब्र ना पक्की मजार ,
इसीलिये हज आदि के मार्गों पर मर गए लोगों को रेत के नीचे दफन कर के टीला रेत का बना देते हैं ताकि "ताज़ी कब्र "का निशान रहे बाद में नीचे का शरीर समाप्त होते होते ऊपर का टीला भी समाप्त और वहीं पर दूसरी कब्रें बन सकतीं हैं ।
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कब्र मजार दरगाह पर नाचना गाना चादर अगरबत्ती सब का विरोध मूलसिद्धांतवादी करते हैं क्योंकि यह भी "काफिरों वाली हरकतें हैं और बुतपरस्ती जैसा ही काम है इससे दफन रूहों के क़यामत तक आराम करने के हक़ में ख़लल पड़ता है ,,,
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इसके विपरीत
क़फिर ,
कहे जाने वाले हिंदू ,
पत्थर ईंट रेत मिट्टी पत्ता सुपारी पान नारियल ढेला कंकड़ कौड़ी धातु कुछ भी रखकर ,
शालिगराम ,
शिवलिंग
देवी
देवता
कुलदेव
ग्रामदेव
पुरखा
कहकर पूजने लगता है ।
निराकार उपासना का मार्ग पृथक से हिंदू में है
तो कण कण में भगवान की भावना भी है ,
इसलिए
नागदेवता
पीपल
बरगद
आम
पलाश
महुआ
बेल
केला
अशोक
आँवला
शमी
आक
मदार
नदी
कलश
ताल
घट
सरोवर
पुष्करिणी
निर्झर
पर्वत
सागर
रेणु
बाँस
मोर
तोता
कोयल
चातक
उल्लू
सांड
बैल
गाय
भैंसा
बकरा
मुरगा
कुत्ता
चींटी
कौआ
हंस
सूअर
मछली
कछुआ
मेढक
गधा
घोटक
ऊँट
हाथी
सिंह
चूहा
नारियल बेल सुपारी पान बेर गेहूँ चावल चना .......
....कन्या विधवा सुहागिन ब्राह्मण शूद्र क्षत्रिय वैश्य गणिका तक पूजनीय हैं ,
गुरू पिता माता बंधु भगिनी तक पूजनीय हैं ,
भानजा जामाता बहनोई फूफा तक पूजनीय हैं ,
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ससुर सास पति पूजनीय हैं ,
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पदार्थ में ईश्वर देखता हिंदू ,
यदि मुसलमान बन भी जाए तो "वस्तु पूजने लगता है ,,शुबरात पर दिए पटाखे अगरबत्ती ,
ईद पर बहिन भानजी बुआ जीजा फूफा जमाता को ईदी देकर ,हर वस्तु अल्ला की कहकर कागज मिट्टी पत्थर ताबीज धागा तसवीर सामान पूजने लगता है ,
आदतें नहीं बदलतीं मजहब बदलते ही ,
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हिंदू जब ईसाई बनता है तो मैरी जीसस की मूर्ति बनाकर पूजने ,पालना डालकर क्रिसमस को जन्माष्टमी रामनवमी की तरह और क्रिसमस को दीवाली की तरह मनाने लगता है ,
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एक आधार चाहिये हिंदू को पदार्थ का ,
वह
पदार्थ में भगवान देखता था ,
मुलसमान बनकर अल्ला को खोजने लगेगा ,
ईसाई बनकर गाॅड खोजने लगेगा ,
पहले हिंदू था तो मंदिर की परिक्रमा करता चुनरी चढ़ाता कलावा बाँधता था ,
मुसलिम बनेगा तो दरगाह में चादर ,धागे चक्कर लगाना शुरू कर देगा ,
ईसाई बनेगा तो मैरी जीसस की मूर्ति को फूल चढ़ाकर मोमबत्ती जलाकर चक्कर लगाकर क्राॅस पैंडल पहन लेगा ,
माला तसबीह रोजरी ,
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कुछ तो चाहिए उसे ,
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पदार्थ में वह अपना बदला हुआ परमात्मा खोजता है ,
जो भवन ,चित्र ,मूर्ति,मिट्टी पत्थर धातु ,ज्योति ,पूजता मिले ,
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उसे काफिर कहो या ईमान वाला ,
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वह कहीं गहरे पैठे अभ्यासों से वही बुतपरस्त है ,
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क्योंकि ,
मूर्तियाँ तोड़कर ईसाई धर्म बना
मूर्तियाँ तोड़कर इसलाम ,
तो वस्तुपूजक
जो भी है ,
वह काफिर ही तो होगा ,हिंदू का असर इतनी जल्दी नहीं मिटता ,
मजहब बदलने से ,स्वाद स्वभाव आदतें रुचियाँ अभ्यास बहुत हद तक नहीं बदलते ,कपड़े और इबादत के तरीके बदल जाते हैं चेहरे मोहरे डीएनए और गहरे अभ्यास वही रह जाते है ,
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©®सुधा राजे

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