कविता: गिरि छाती से लिपट चिपट(केदार आपदा पर उसी दिन लिखी कविता)
Sudha Raje
गिर की छाती से लिपट चिपट जब
व्यथित मेघ रोया होगा ।
जब पर्वत पिघल पिघल
नदिया की बाँहों में खोया होगा ।
जब कंकङ पत्थर बिलख बिलख कर गंगा में
कूदे होंगे।
जब धरती हाहाकार किये चीखी तो दुख
ढोया होगा ।
जब गंगा यमुना सरयू पिण्डर बहिने
हिलक उबलतीं थीं।
जब चीत्कार के करुण गीत ने महानाद
जोया होगा।
जब टूट टूट कर वृक्ष भूमि पर गिर गिर
तङप उठे होंगे ।
जब नियति जननि ने कण कण से हर पापचिह्न
धोया होगा ।
जब सुधा हृदय की करुणा से होकर
विदीर्ण नभ चीख पङा ।
तब हाहाकार अपार लिये मानव विनाश
बोया होगा
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निरदोषो पर रहम प्रभु
Sudha Raje
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