लेख: तलाक निकाह औरत के हक और आज की जरूरतें
तीन तलाक है क्या ? मैंने जितने भी मामले सुलझाये उनकेे और अपनी सखियों के जीवन की शब्दशः सत्यकथा से ,,एक शरीयत नाम का इसलामिक संहिताकरण है जिसमें समय समय पर नियम जुड़ते गये ,उसके अनुसार सुन्नी पुरुष जब समझ ले कि वह उस औरत को बरदाश्त नहीं कर सकता और गुस्से में कुछ अनर्थ न कर बैठे तो वह उस औरत को तीन बार तलाक कहकर तलाक दे सकता है शब्द कान में औरत के पड़ते ही तलाक यानि निकाह खत्म ,फिर उसको इद्दत करनी होगी यानि जब तक कि मासिक न हो जाये या जब तक कि यह साबित न हो जाये कि कहीं वह हमल से यानि गर्भवती तो नहीं ,यह समय नब्बे दिन तक का भी हो सकता है और रजस्वला होने तक का भी ,
पहले ये नियम था चूँकि टेलीफोन मोबाईल आदि नहीं थे ,फिर कुछ मामलों में शौहर ने तलाक कह दिया तो राय ली गयी उलेमाओं मौलवियों काजियों की ,तो एक एक करके अनेक नवीन पुनरीक्षण वस्तृत रूप से परिभाषा में आये कि ,,कान में आवाज पड़ी तलाक तलाक तलाक ,तो बस हो ही गया तलाक ,और फिर चिट्ठी पत्री पर भी यही राय माँगी जब कुछ शौहरों ने लिखकर तलाक भेज दिया ,,अभी लेटेस्ट समाचार है कि पश्चिमी यूपी में एक निकाह मौलवियों ने इंटरनेट पर वीडियो कॅलिंग के द्वारा कराया जहाँ सामने स्क्रीन परवदिख रहे लड़के ने अरब से इधर भारत में रह रही लड़की से निकाह कुबूल कर दस्तखत किये और निकाह की नमाज पढ़ी lइसलामिक शादी में चूँकि दहेज प्रथा बढ़ती ही जा रही है और मानव लालच की तो सीमा ही नहीं है ,सो तलाक के मामले भी बढ़ते जाते हैं ,,इसी तलाक को कठिन से कठिन बनाने के लिये *मेहर की व्यवस्था इसलाम में है ,ये मेहर वह रकम है जो निकाह के तुरंतबाद शौहर को बीबी के बदन को हाथ लगाने से पहले उसे चुकानी फर्ज है lपरंतु मौलवियों ने इसमें भी राह निकाल दी ,शबेतख्त यानि सुहागरात वाली रात में बीबी के कमरे में सजधजकर शौहर मीठी मीठी बातें करके लड़की से "मेहर माफ "करवा लेता है और ये मान लिया जाता है कि कर्ज रहा मुझपर जब चाहोगी दे दूँगा ,इसीलिये कि मेहर की रकम लगातार बढ़ती रहे ,चाँदी के सिक्के "बीबी फातिमा"के सिक्के जो विक्टोरियन जैसे ही सिक्के होते हैं की गिनती का मेहर रखवाया जाता है ,,अधिक से अधिक मेहर रखवाने पर लड़कीवाले और कम से कम मेहर रखवाने पर लड़के बार जमकर बहस मोलतोल करते हैं .कई बार तो मेहर की रकम अधिक या कम होने पर बारात तक लौट जाती है ,,ये मेहर अगर शौहर स्वेच्छा से तलाक देता है तो उतनी चाँदी के वर्तमान दाम के रूप में देना पड़ता है ,जरूरी नहीं की बीबी फातिमा की सिक्का ही गिना जाये ,डाॅलर या रुपया भी मेहर पर तय हो जाता है ,lमेहर जितना ज्यादा होता है शौहर तलाक देने से उतना ही हिचकता है lप्रेम या नफरत का तत्व बहस की बात नहीं l औरत अगर खुद चाहे तो वह भी तलाक ले सकती है जिसे ""खुला"" कहा जाता है lपरंतु तब बारी शौहर के मोलभाव की होती है वह सौदेबाजी पर उतर आता है कि मेहर छोड़ोगी तो ही तलाक तलात तलाक बोलूँगा l यानि हर हाल में तलाक बोलने का हक मर्द के ही पास है lमुसलिम स्त्री को मर्द को दैहिक संबंध बनाने से मना करने का सिवा रजस्वला या बड़ी बीमारी के हक नहीं न न न कहने का lचालीस दिन से अधिक की अवधि के लिये मर्द को भी हक नहीं औरत से दूर रहने का किंतु औरत से वह माफी ले सकता है रोजी रोजगार व्यापार की मजबूरी के सिलसिले में lतलाक हो जाने पर "नुत्फा"जिसका बच्चा उसका का नियम लागू होता है ,lइसीलिये इद्दत वह अवधि है जिसमें औरत के रजस्वला होने पर यह घोषणा होती है कि पेट से नहीं है आजाद है जा सकती है किसी नये मर्द के साथ तब तक वह आजाद नहीं ,अगरवगर्भवती होती है तो बच्चा जब तक पेट से गोद में रहेगा बाप को खर्चा ए कोख और दूध देना पड़ेगा lतलाक के बाद औरत का न तो मर्द पर न मर्द की जायदाद या कमाई पर न बच्चों पर कोई हक रहता है बच्चे हर हाल में बीज जिसका फसल उसकी के आधार पर मर्द के होते हैं अगर औरत से वह बच्चों की परवरिश में मदद चाहता है तो बच्चों का खर्चा उसे उठाना पड़ेगा l
अब मान लो कि नशे में गुस्से में कान भरने या मन दिमाग की कमजोरी में ,पागलपन में ,धोखे से भी तीन बार तलाक तलाक तलाक शब्द शौहर ने कह दिये या लिखकर औरत तक पहुँचा दिये उसने सुन लिया या पढ़कर समझ लिया तो भी तलाक तो हो ही गया lऔरत को इद्दत करके घर छोड़ना पड़ेगा ,इद्दत के दिनों का सारा खर्चा मर्द उठायेगा बाद में औरत मेहर के अलावा केवल अपना बचा खुचा दहेज ही वापस ले सकती है l
जायदाद के बँटवारे में हके दुख्तरी तो है यानि बेटी को हक है परंतु बीबी को या बेवा माँ को हक नहीं वह संपत्ति बस बाप से औलाद का मामला है ,
तलाक के बाद उसी व्यक्ति से अगला निकाह नहीं हो सकता l मर्द चाहे तो बच्चों को देखने तक न दे lतब औरत को यदि दूसरी बार उसी शौहर निकाह कराना मंजूर है और मर्द भी चाहता है कि भूल सुधार हो जाये तो ये उपाय है कि वह औरत जाकर पहले किसी अन्य दूसरे मर्द से निकाह करे और वह जब तक उससे शारीरिक संबंध यानि सेक्स नहीं कर लेता तब तक वह भी तलाक नहीं देगा ,हिलाला इसी को कहते हैं ,ये हिलाला कैसे पूरा हो कि मियाँ बीबी भूल सुधार कर लें ,सो हल ये निकाला कि कुछ किराये के.साँड इस मौके की ताक में रहते हैं ,निकाह की रस्म अदा करके इस मजहबी पर्स नल लाॅ का उपकारी वर्ग बनकर उस औरत से हिलाला पूरा करते है ,कभी कभी तलाक देने से मुकर भी जाते हैं ,lमगर दाब जो रहता है तय पहले से सो यह रस्म यूँ औरत का बलात्कार करवा के पूरी कर ली जाती है lफिर तलाक और फिर वही "इद्दत "तब जाकर वही शौहर उस बीबी से दुबारा निकाह कर सकता है lपछताने रूठने मनाने प्रायश्चित्त करने का उसमें अवसर ही नहीं है l
शियाओं में बाकी नियम वैसे ही हैं परन्तु एक बढ़िया बात ये है कि तलाक चार गवाहों के सामने कहना पड़ेगा एक बार उसके बाद एक महीने की इद्दत फिर कहना पड़ेगा तलाक फिर एक महीने की इद्दत फिर आखिरी और तीसरी बार कहना पड़ेगा तलाक और फिर एक महीने की इद्दत ,इस तीनमाह की इद्दत के दौरान अगर शौहरवजाकर बीबी से शारीरिक संबंध बना लेता है तो तलाक टूट जायेगा ,और फिर भी तलाक देना है तो गिनती फिर एक से ही शुरू होगी l
लड़की को बालिग तब मान लिया जाता है जिस दिन वह रजस्वला हो जाती है चाहे दस साल की हो या सोलह की ,तब तब निकाह का कुबूल बाप करवा सकता है और लड़की ये हक है कि वह बालिग होने पर उस निकाह को कुबूल करे या तो तोड़ दे इसे "खयाल उल बुलूग कहते है ,,अगर कुबूल करती है तो निकाह पक्का हो जाता है lनिकाह के लिये रिश्ता माँगने का पहला हक कजिन्स को है ,कुटुंब से बाहर तभी रिश्ता सही माना जाता है जब कुटुंब में कोई बचा न हो तमीज तौर का ,इसलिये बाप और सगे भाई तथा दूध एक ही माँ का पीने वाले भाई के अलावा सबसे मुसलिम औरत का परदा है ,क्योंकि वह सेक्स और निकाह का हकदार है ,मरद का केवल गुप्ताँग परदा है औरत का सब जिस्म परदा है क्योंकि वह कहीं. से भी दिखे तो मर्द के खयाल में सेक्स की भावना खलल कर सकती है यह गुनाह करती है हर वह औरत जो परदा कम करती हैl निकाह का एक रूप "मुताह" भी है जो कांट्रेक्ट मैरिज होती है यानि लड़की रहती बाप के घर है या अपने ही ठिकाने परंतु कुछ दिन या महीने के लिये कोई आदमी किसी तयशुदा मेहर और खरचे पर उससे शारीरिक रिश्ते बनाता रह सकता है और तलाक तय वक्त पर हो जाता है कहकर ,ऐसे निकाह धनिक शेख व्यापारी लोग यायावर लोग गरीब परिवारों की लड़कियों से करते रहते छोड़ते रहते हैं ,,,भारत में भी सैलानी अरबी ऐसे मुताह करके लड़कियों को घुमाते फिराते ऐश करते फिर छोड़कर चले जाते हैं ,मालीहालत सुधरे तो तमीज का दूसरा निकाह हो इस लालच ने इस कुप्रथा को बढ़ावा दिया है और साठ पचास तक के बूढ़े बारह चौदह तक की लड़की से मुताह यानि ""पट्टेपर सामयिक सेक्स कॅान्ट्रेक्ट मैरिज कर लेते हैं और वीजा खतम होने पर देश लौट जाते हैं , l
सवाल लाख दिरहम का है तो ये कि मोबाईल इंटरनेट वीडियोकाॅल टीवी कार फ्रिज बम बारूद गन मशीनगन और बैटरी इन्वरटर जेनरेटर सब चलाने सुधारने बिगाड़ने लगे इतने माॅडर्न हो गये !!!!!निकाह तक नेट पर होने कराने लगे !!वुफे में दावत होने लगी ,किंतु औरत ??वहीं रहेगी बुरके में पिटती कुटती लात जूते गाली खाती कोख लुटाती और जब जिस आयु में चाहो ,तलाक मुह पर मार दो चाहे कितनी ही वफादार क्यों न हो !!यानि ये मान लें कि मर्द गलती कर ही नहीं सकता ??तलाक से बचना है तो दबी डरी सहमी घुटी बँधी रहो ,वरना बीस की हो या बयासी की तलाक कभी भी बिना किसी विशेष प्रक्रिया सुनाई सफाई हक के दिया जा सकता है ,,पड़ौस की ,सायरा हज्जन दादी को बुढ़ऊ ने पोतों बेटों की चेंचें से चिढ़कर तल्लाक तीन बार कह दिया ,,दादी बड़ा रोयीं परंतु फिर भतीजों के बेटे लिवा ले गये ,,,परंतु क्या अस्सी साल की सेवाओं का इनाम यही होना था ?अब बुढ़ऊ मियाँ पछतायें भी तो दादी क्या तो इद्दत का करेंगी क्या करेंगी "हिलाला का ?
©®सुधा राजे
तलाक का मामला समझने में आपको कुछ मदद मिली होगी ,
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