Friday 12 September 2014

सुधा राजे का लेख :- स्त्री'' सारी बीच नारी है कि सारी की ही नारी है।" (3.)

सलवार कुरता और घाघरा भी विशुद्ध
भारतीय परिधान है
''धोती को ""रेडी टु वीयर ""बनाने
की तकनीक से सलवार और
पाजामी अस्तित्व में आयी ''''तैरने के लिये
',कूदने के लिये, 'पहाङ चढ़ने के लिये
',मुसीबत में लङने और आत्मरक्षा के लिये
""""कौन सा वस्त्र सही है?
निंदा तो हर ""उस प्रथा की सरासर
करनी पङेगी जहाँ """""लिंगभेदी दमन के
भाव से थोपी गयी चीजें।
पदार्थ ईश्वर नहीं ',हर धर्म
यही कहता है और कहता है कि पदार्थ
मात्र साधन है ',तब कोई पदार्थ जब
धर्म से जोङ दिया जाकर
अनिवार्यता बना दिया जाये कि ""
विवाहिता ""होने का लेबल लगाकर
रहो!!!!!पदार्थ साधन है मंजिल है जीवन
जो जो जीवन जीना सुविधाजनक
बनाता है वह वह सही है ',जो प्राण
संकट में डाले शरीर को आराम न दे
जो गर्भवती स्त्री मैक्सी गाऊन कंधे से
झूलता या ढीला कुरता सलवार
दुपट्टा पहनती है इनकी तुलना में
नौ माह का पेट निकाले पल्लू से ढँकने
की असफल कोशिश
करती स्त्री की हालत समझी जाये
",,जो पेट के ऊपर छाती से पेटी कोट बाँधे
या नीचे कमर की लाईन से यह
""नहीं ""समझ पाती कि ढीली करे
तो साङी खुल जाये ',',पिनें लगाये तो चुभे
और सेप्टिक हो जाये ',जब ये इतनी सरल
है तो क्यों नहीं वर्दी बना दी जाये
"""पुरुष ""की???एक बहू पैन्ट कमीज
पहनकर फेरे ले और
पति हो धोती कुरता अंगरखा पगङी जमेऊ
टीका चोटी खङाऊँ लँगोट और
बैलगाङी पर????नही जमा?
साङी खराब नहीं है """""""खराब है
उसको "स्त्री होने की अनिवार्यता से
जोङकर विवश करने वाली सोच ',
'मोबाईल आज लेटेस्ट वर्जन
का खरीदा जाये??
कि नये और अधिक और उम्दा फीचर कम
दाम में मिले????
???? और कपङा??
तो फिर चिट्ठी भोजपत्र पर लिखो न
कबूतर ले जायें!!!
मजदूर औरतों पर सामाजिकतावश
थोपी गयी साङी """"वे लुंगी की तरह
बनाकर काम करती है कमर पर
बाँधी कूल्हे पर खोंसी और पीछे से कंधे पर
गिरा दी!!!!! मतलब वहाँ साङी एक
लटकता टुकङा रह जाता है """हिंदू औरत
की मजबूरी के नाम पर वह """दरअसल
लुंगी या कछोटाछाप सलवार बन
चुकी होती है!!!! तो क्यों न वही प्रॉपर
कपङा पहनने दें?
©®सुधा राजे।


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