कविता, ऐसे अनुसन्धान रचो

***मिली विरासत  श्रेष्ठ सभ्यता संस्कृति भारत की अनुपम
*****अब समाज के लिए नयी ,तकनीक नया विज्ञान रचो
**********मात्र मनोरंजन में कब तक ,डूब हुये रहोगे तुम
*****सकल विश्व को नवल प्राण दे  ,ऐसे  अनुसन्धान रचो
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उठो पेचकस, छैनी, कलम, हथौड़े, तूली ,तार  लिए
दूरबीन, कम्प्यूटर, नश्तर, कैंची सुइ,तलवार लिए
सूक्ष्मदर्शियों से भी आगे संरचना जगमग पालो
अखिल विश्व अब नहीं ,गगन गंगा से आगे पग डालो
मात्र देह सीमा में कब तक, ऊबे दमन सहोगे तुम
अखिल जगत को नवोत्थान   दे, चरैवेति अभियान रचो
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सकल विश्व को नवल प्राण दे, ऐसे अनुसन्धान रचो
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विश्व ग्राम हो चुका ध्वस्त हैं ,भेद पूर्व पश्चिम वाले
लिंग जाति भाषा मजहब के वर्ण भेद गोरे काले
निज का है संग्राम स्वयं के ही दौर्बल्य निराशा से
जननि जनक अभिभावक शिक्षक देश तके अभिलाषा से
क्षुद्र  नौकरी मात्र लक्ष्य को लेकर कहाँ बहोगे तुम
अविष्कार नयी कला ज्ञान दे  अमिट अटल  पहचान रचो
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सकल विश्व को नवल प्राण दे ऐसे अनुसन्धान रचो
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मादकता उन्मत्त मत्तता करना ही है तो ठानो
लक्ष्य सफलता पाना भी विरला ज़ुनून है पहचानो
अपने मन मस्तिष्क भाव पर हो स्वामित्व किसी का क्यों
रत्नागार विचार हृदय का चोरों को जा सौंपे ज्यों
विश्व राष्ट्र परिवार स्वयं की आहें लिए दहोगे तुम
मृत्यु जिन्हें अमरत्व दान दे, ऐसे वीर जवान रचो
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हरियाली द्रुम खेत ग्राम ग्रामीण कृषक पशुधन जंगल
लोकबोलियाँ गीत कला संगीत अखाड़ों के दंगल
पूर्ण शक्ति भर यत्न करो सब बचें बढ़ें सम्मानित हों
ऊँचा रहे चरित्र, हृदय निष्पक्ष,दुष्ट अपमानित हों
भय निद्रा आहार वासना पशुवत् व्यर्थ गहोगे तुम
ध्वंस्त भस्म नित जन्म ठान दे  ऐसे आत्मोत्थान रचो
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सकल विश्व को नवल प्राण दे, ऐसे  अनुसन्धान रचो
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चारित्रिक दुर्बलता किंचित सधे कदम डगमगा सके
द्वेष ईर्ष्या अहंकार लोलुपता ना मन डिगा सके
परधन परदारा परनर पर लेशमात्र मनमोह न हो
कुल कुटुंब निज ग्राम राष्ट्र से रंच मात्र भी द्रोह न हो
चमक दमक नयी ठुमक ठान दे, नए विहान  संज्ञान रचो
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सकल विश्व को नवल प्राण दे, ऐसे अनुसन्धान रचो








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