Friday 11 January 2019

कविता, रो पड़ी जैसे बिलखकर

Sudha Raje
रो पङी जैसे सिसक कर
गुनगुनाती ज़िंदगी
आज फिर रोयी बिलख कर
दूर जाती जिंदगी
मुङके देखा उस नजर से दूर तक वीरान सी
तीर सी रह गयी चुभोती
सनसनाती जिंदगी
बोझ सी लेकर चली इक साँस आयी इक गयी
जश्न दर्दो का छिपाये गम मनाती ज़िदगी
चुप रही कुछ भी न बोली
पी गयी कुछ कह गयी
आँसुओं के राग पे बस
झनझनाती ज़िदगी
हम सुधा रो भी न पाये
औऱ गाते भी तो क्या
देखते रह गये बिखऱकर
पार जाती ज़िदगी
©®¶¶©®SUDHA RAJE

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