कड़वे हैं अल्फाज़ मगर है फर्ज़ और मक़सद सच्चे
"सुधा" मायने सुन्दर तो सख़्त बयानी मत देखो
जब तक लक्ष्य तुम्हारी नस नस का ज़ुनून ना बन जाए
बेचैनी रातों की नींदें दाना पानी मत देखो ,
जिनके भीतर आग नहीं है नया पृथक कुछ करने की
चलते फिरते मुरदे हैं बस, उम्रे-ज़वानी मत देखो
रस्ते का हर घाव तबस्सुम सा यादों में महकेगा
धूल किरकिरी ,ताने फिकरे आँख का पानी मत देखो
हैं कुछ जो ख़ामोशी से पूरा अंज़ाम बदलते हैं
शोर शराबा बहुत चीखती ग़लत ज़ुबानी मत देखो
समझ लिया है जिसने जग में सब कुछ ही क्षण भंगुर है
नश्वर है हर वस्तु गुज़र गई कथा-कहानी मत देखो
©®सुधा राजे
Monday 21 January 2019
कविता''कड़वे हैं अलफ़ाज
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