Saturday 22 November 2014

सुधा राजे का लेख :- ""स्त्री बीज शोषण के ""

Sudha Raje
पचास करोङ स्त्रियों के लिये देश
की """"क्या नीति है?????
पिछली सरकारों के पैंसठ साल बनाम
""पाँच साल ""अब नयी सरकार के
"""गिनती चालू है """""
एक करोङ यूपी वासी स्त्रियाँ कब
हिसाब
माँगेगी जाति बिरादरी मजहब से
ऊपर उठकर """"माँ बेटी बहिन
की भावना पक्षपात से ऊपर उठकर
"""""नारी प्रकृति और
जननी """होने की जाति के लिये
सुरक्षा न्याय और शांति पूर्ण
सृजनात्नक अवसर????
We can't wait for Beasts """
उठो और गाँव गाँव महिला दल बनाओ
",,मर्द पर औरत फ़िदा होती है मर्द
के साये में औरत बेखौफ़ सृजन करती है
मर्द की परवरिश में औरत परवान
चढ़ती है ",",","बलात्कारी ""मर्द
नहीं
कोहनीबाज नोंच खसोट करने गंदे
इशारे गीत और परस्त्री को जबरन
छूने की चेष्टा करने वाले मर्द नहीं ।
मर्द का अर्थ यौनिकता स्े
नहीं पराक्रम वीरता धीरज साहस
परहितार्थ जांबाजी और दिल
दिमाग से ताकतवर होकर ताकत
को समष्टि की सुरक्षा हेतु लगाने से
है """""""
बलात्कारियों को समूल नष्ट करने
वाले कृष्ण ही पुरुष हैं भीम पुरुष है
लक्षमण पुरुष हैं और पुरुष है वे सब
पुलिस सेना स्वयंसेवक जवान प्रौढ़
जो "स्त्री के अपमान को सहन
कभी नहीं करते अपराधी को दंड देते
हैं ।
वे सब पुरुष है जिनको परवाह है
अकेली दुकेली अच्छे बुरे मौसम में
आती जाती स्त्री को कोई नुकसान न
हो । जो चलते मार्ग पर
स्त्री को पहले निकलने देते हैं वे पुरुष
है वे पुरुष है जो स्त्री बूढ़े और
विकलांग के लिये रक्षक है और बस
ट्रेन ऑटो में उनको जगह देते है
सामान उतारने चढ़ाने में मदद करते हैं
"""वे पुरुष हैं जिनकी कलाईयों में
छेङखानी करने वालों के पंजे मरोङने
की ताकत है
तो डूबती माँ बेटी को बचाने
का साहस भी है ।
मर्द और पुरुष केवल यौनिकता के शब्द
जो समझते हैं
उनको लङकियाँ कभी आदर
नहीं देती प्यार नहीं करतीं ।
कोठे पर जायें या धोखा देकर घर
बसा लें "।
माँ बहिन बेटी पत्नी बहू
भतीजी भाँजी भाभी दोस्त
का प्यार इन राक्षसों के लिये है
ही नहीं """""""""
मर्द का बच्चा है तो औरत का दिल
जीतेगा जिस्म को बिना विवाह के
कभी नहीं छुयेगा ।
मर्द के साथ महफूज महसूस
करती लङकी के दिल में हर उस रक्षक
पुरुष के लिये आभार है कृतज्ञता है
नमन और प्यार है श्रद्धा और स्नेह है
विश्वास है """""जो घर मेले बाजार
कॉलेज बस ट्रेन दफ्तर में
""उसको यकीन दिला पाते हैं
कि """मैं हूँ न """
दिल से हर लङकी चाहती है कि जब
वह घर में अकेली हो एक मर्द
उसकी रक्षा के लिये
हो पिता पति भाई पुत्र कजिन
या पङौस का मुँहबोला नाता दोस्त
सहपाठी """""""
जब वह बाहर जाये तो भी कोई
अपना बेहद करीबी भरोसेमंद साथ
रहे ।
पर कौन?????
और किस पर भरोसा करे??
स्त्री के सब दुख और रहस्य हृदय में
रखकर भी कभी कहीं मुँह न खोलने
वाला मर्द दोस्त सहपाठी """"""
हर वक्त टोक टाक करते रहने पर
भी पूरी तरह उस स्त्री के पहनने
खाने पीने सोने पढ़ने की चीजें
जुटाता बाप और बङा भाई ....
दिन रात चिढ़ाता धगङता लेकिन
हर समय साथ देता अनुज ""
हुकुम चलाता लेकिन सेवक की तरह
फरमाईशे पूरी करने को दिन रात
खटता पति ।
साहस बँधाता और मजाक
उङाता कलीग सहपाठी ।
स्त्री कोई ""एलियन नहीं है "वह
पुरुष वादी समाज की आधी आबादी है

लगभग तीन अरब स्त्रियाँ
मर्द केवल बलात्कारी हत्यारा होने
का मतलब है तो बाकी सब फिर?????
कौन हैं?
मर्द शब्द को बङे ही सीमित मायनों में यौनसंबंध स्थापित करने में सक्षम
नर मात्र होने से ही 'रूढ़ 'होकर लिया जाने लगा है ।
भारत जैसे देश में लोग भूल क्यों जाते हैं कि "अर्जुन "को नपुंसक होना
पङा और शिखंडी भी नपुंसक था, किन्तु वीरता पर कोई सवाल दोनों के ही कभी
नहीं उठाया गया ।नवग्रहों में शनि राहु केतु और बुध को भी नपुंसक कहा गया
है ज्योतिष में किंतु सबसे बलवान यही ग्रह माने भी गये हैं ।
पौरुष शब्द का अर्थ परुष अर्थात कठोर कर्कश बलवान और वीर से ही ध्वनित
होता है ', बात बात पर बचपन से ही मध्यम वर्गीय और गरीब परिवार की
लङकियों को ताने और हिदायतें दे दे कर सिखाया जाता है कि ""तेरी फलां कमी
अमुक गलती कोई मर्द 'तो कतई बर्दाश्त ही नहीं करेगा और अगर कोई "मील्ला
या मसालापिसऊआ मिल गया तो चलाती रहना अपनी अपनी "
इसी तरह के मिलते जुलते वाक्य सुनकर औसत कसबाई छोटे नगरों और गांवों की
लङकियाँ बङी होतीं है । मर्द स्त्री से दबकर नहीं रहेगा, मर्द औरत की कही
सलाह या बात नहीं मानेगा, मर्द औरत के साथ दया और सहानुभूति नहीं बल्कि
रुतबा हुकूमत और आतंक का व्यवहार रखेगा, """"""आदि इत्यादि बातें इस तरह
फ़िजा में तैर रही हैं कि न चाहते हुये भी दुष्ट होते जाते हैं कम या औसत
बुद्धि के युवा और तबाह कर लेते हैं अपने ही हाथों अपना परिवार '।
एक अज़ीब सी दुष्टता जबरन सिखाई जाती है "कुछ मुंबईया फिल्मे सिखातीं है
बाकी सब 'खुद घर और पास पङौस की औरतें तक प्रेरित करतीं है ।छिः क्या
लौण्डियों वाली तरियों रो रिया!!!!
छिः क्या पिंकी बना फिर रिया!!!
क्या छोकरी का माफिक माँ से डरता है पिओ बिन्दास '

और जब किशोर से युवा और युवा से प्रौढ़ होते होते सही गलत की परख होती है
तब तक देर हो चुकी होती है ।
प्रकृति की योजना में माँ कोनल होकर पालनहार और पिता कठोर होकर रक्षक
होयही सृजन और संसार के अनवरत रहने का नियम रहा ',इसे इसी अर्थ में समझा
जाना जरूरी भी है 'आज का हर लङका कल के लङके लङकियों का एक रक्षक पिता
होगा ।
जिस तरह लङकी को टोका और सिखाया जाता है उसी तरह लङकों को भी अब टोकने और
सिखाने की जरूरत है और यह काम लङकियाँ यानि आज की मातायें बहिनें बुआ
भाभी मौसी काकी ताई और दोस्त सहपाठी करेंगी ।""
मर्द या नामर्द औरत या किन्नर नहीं ""मनुष्य बनो पहले जिम्मेदार मनुष्य
साहसी और विश्वसनीय मनुष्य "
©सुधा राजे


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