सुधा राजे का लेख --" पुरुषवाद""

अच्छे पुरुष
सुबह उठते हैं और पत्नी को टहलाने ले जाते हैं दूर तक पीछे पीछे या साथ,
पत्नी के आगे आगे होती है कुत्ते की जंजीर और कुत्ते की चेन पकङ कर खींचे
रखते "अच्छे पुरुष बतियाते हैं सिर्फ, पत्नी की सुन्दरता, बच्चों के लिये
निवेश और घरेलू सामानों की सूची के बारे में ।

अच्छे पुरुष सुबह पहले उठकर 'चाय बनाते हैं दूध पकाते है और अलार्म की
तरह सब छोटे बङे बच्चों को समय से जगाते हैं और 'जोङों के दर्द से परेशान
माँ और खाँसी से बेहाल बाबूजी को बेड टी गरम पानी देकर बगीचे की सिंचाई
करते हैं ।

अच्छे पुरुष जब तक बच्चे बूढ़े नाश्ता नहीं कर लेते पत्नी के साथ रसोई घर
के कामों में हाथ बँटाते है । सब्जी धोना आटा गूँथना और प्लेट टेबल पर
रखना 'बच्चों को स्कूल या स्कूल वाले वाहन तक छोङने जाना ।


अच्छे पुरुष
पत्नी के साथ जो भी जैसा भी नाश्ता मिले खा लेते हैं और जरूरत पङने पर
बना कर भी खिला देते हैं और यदि घर नाश्ता न भी मिले तो दफ्तर या दपकान
या अपने मिल कारखाने की कैण्टीन से चाय ब्रैड पर भी गुजारा खुशी खुशी कर
लेते हैं ।

।अच्छे पुरुष
खुद कभी गुस्सा नहीं करते अलबत्ता बङबङ करती पत्नी 'झल्लाती माँ और
ठुनकते बच्चों का मूड ठीक करने के लिये हँस कर माहौल को हलका बनाते और
'गुस्से में बङबङाती पत्नी के टेढ़े मेढ़े चेहरे पर फ़िदा होते रहते हैं



अच्छे पुरुष अपनी कमाई का सारा पैसा रुपया सीधे सीधे पत्नी की झोली में
रखकर 'फुरसत हो जाते हैं और महीने के आगामी दिनों के लिये पाई पाई से
हिसाब देकर पेट्रोल और बाहर की चाय तक के पैसे संकोच के साथ माँगते रहते
हैं ।


अच्छे पुरुष
समय से घर से निकलते हैं और बिना सूचना दिये कहीं नहीं जाते ।ठीक समय पर
कार्यस्थल से घर वापस आते हैं वाहन कभी चालीस की रफ्तार से आगे नहीं
चलाते और "ऊपरी कमाई या ओवर टाईम के पैसों से घर आते समय पत्नी बच्चों की
पसंद के उपहार या खाद्य पदार्थ रास्ते से लेकर घर आते हैं ।


अच्छे पुरुष
कभी पत्नी के सिवा किसी दूसरी स्त्री को घूरकर नहीं देखते और हमेशा दीदी
बहिनजी माताजी कहते हैं या समझते हैं 'कोई अगर गले पङना भी चाहे तो गंदगी
समझकर पीछा छुङाते हैं ।
!
!
पत्नी के साथ हर ससप्ताहान्त पर बाहर घूमने जाना और बच्चों को चिज्जी
खिलाना सिनेमा दिखाना नियम से पूरा करते हैं और सापितीहिक साफ सफाई में
मेहनत वाले सब काम पहल करके खुद करते हैं.
!
अच्छे पुरुष
सास को माँ और ससुर को पिता कहते हैं और समझते हैं । साले साली को अजीज
भाई बहिन समझते हैं ।
अपनी माँ की चिढ़ और पिता की शिकायतों की परवाह किये बिना ससुराल वालों
से मिलवाने समय समय पर पत्नी को ले जाते हैं हर समारोह जो ससुराल के
नातेदारों के यहाँ होता वहाँ जाते है और उपहार भी देते है कामकाज में हाथ
भी बँटाते हैं और जरूरत पङने पर मदद भी करते हैं तन से मन से धन से ।

अच्छे पुरुष
न पत्नी का जन्म दिन मनाना भूलते हैं न विवाह की वर्षगाँठ न बच्चों का
फीस डे न जन्मदिन और न ही माँ पिताजी की रोज की दवाई रात को पैर दबाना
सिरहाने पानी रखना 'बीमे और आरडी की किश्तें भरना और न ही 'बहिन को
मनिऑर्डर भेजना और न ही बच्चों का होमवर्क और पेरेण्ट्स मीटिंग भूलते हैं


अच्छे पुरुष
को हमेशा पता होता है कि उसकी पत्नी की पसंद का रंग गंध स्वाद और जरूरत
दैहिक मानसिक और दैनिक जीवन की क्या है वह बिना कहे ही सब निभाता और पूरी
करता है


अच्छे पुरुष
अपने हर खाते पेंशन 'जमीन मकान और निवेश में "नोमिनी "पत्नी को बनाते हैं
और मकान तो सदा ही पत्नी के नाम कर देते हैं हर खाता जॉईन्ट और निवेश भी
सहकारी करते हैं ।

अच्छे पुरुष
पत्नी की हॉबी हुनर और प्रतिभा को अवसर देते हैंऔर कमी या नुक्स पर कभी
मजाक नहीं बनाते बल्कि धैर्य से टालकर उत्साह बढ़ाते हैं ।पत्नी की उदासी
दूर करते हैं और खुशी देने के हर संभव प्रयत्न करते हैं ।बेटा बेटी में
भेद नहीं करते हिंसा मारपीट गाली नशा नहीं करते ताने या दहेज तो सवाल ही
नहीं आता ।

"
!
!अभी बाकी है और भी किंतु
अंत में अच्छे पुरुष
हैं कौन?
सबको अच्छी पत्नी की 'सीमा और गाईड लाईन याद है '
किंतु
क्या "ये सीमा खुद पर भी लागू होती है?
©®सुधा राजे


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