लेख::-""स्त्री और समाज।""सुधा राजे

स्त्री और समाज
सुधा राजे का लेख
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वेश्या? तवायफ? रंडी? रखैल?
गाली नहीं हुज़ूर ',देश की एक बङी जनसंख्या में रची बसी स्त्रियों की
हक़ीकत है!!!!!!!!!
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भारतीयों को बात बात पर हवा पानी दोस्तों परिजनों तक को गाली देने की आदत
है 'और ग़ज़ब ये कि लगभग सब गालियाँ "स्त्रियों "को लक्ष्य करके दी जाती
हैं और उस पर रोना ये भी कि अपने स्वयं के परिवार की स्त्रियों के लिये
ठीक वैसी ही गालियाँ जब कोई दूसरा दे तो 'मरने मार देने पर उतारू!!!!!!
गणिका वेश्या नगरवधू नर्तकी तमाशेवाली नचनिया और बेङनी पतुरिया और तवायफ
रंडी और न जाने किन किन बदनाम संज्ञाओं से जानी जातीं हज़ारों लाखों
स्त्रियों के जीवन का सच है "देह व्यापार "कुछ दशक पहले तक यह कलंक केवल
महानगरों और मेट्रोपॉलिटन शहरों तक ही सीमित था 'किंतु इंटरनेट और
टेलीविजन मोबाईल क्रांति सङक परिवहन और रेल परिवहन के विस्तार के साथ ही
'
''देह व्यापार का कोढ़ "
छोटे नगरों और कसबों तक भी फैल चुका है। अपने विकृत और सबसे खराब रूप में
यह हाईवे किनारे के गांवों में पहले से ही मौज़ूद था, फिर कुछ जातीय
जनजातीय पारंपरिक व्यवसाय के रूप में सारी शर्मलाज ग्लानि और सुधारेच्छा
छोङकर पीढ़ियाँ बदलता रहा ।

कितनी अज़ीब सी बात है न!!!!!!!
आज लोग बङी बङी बातें करते हैं 'दलित शूद्र सवर्ण 'जनजातीय नागर देहाती
'परंपरा के अच्छे बुरे व्यवसाय समझे जाने के कारण हुये भेदभावों को
समाप्त करके 'शोषित 'वर्ग को संरक्षण देकर समाज में आगे और मुख्य धारा
में रखने के लिये आवश्यक हर उपाय को अपनाने और कानूनी बल देकर सबको मानने
पर विवश करने की!!!!!!!!
किसी को ""शूद्र या दलित जाति ""सूचक शब्द कहने पर 'एक्ट लग जायेगा सजा
होगी ज़ुर्माना होगा!!

किंतु "किसी स्त्री को एक बार किसी भी कारण से "देहव्यापार ''में धकेले
जाने के बाद ''वेश्या ''का नाम देने के बाद न तो स्वयं उसकी वापसी संभव
है, न ही उसकी संतानों की????

कम से कम दो तीन मामले ऐसे हैं जहाँ की हमें जानकारी है कि वह लङकी
मेधावी छात्रा थी 'पढ़लिखकर पीएचडी की लीलिट् किया 'प्रोफेसर हो गयी,
विवाह किया ',किंतु
पूरा नगर जानता था कि वह 'तवायफ की बेटी है 'और इसी कारण कॉलेज में उसे
लगातार फिकरे 'सेक्स आमंत्रण 'सुनने पङते रहे, उससे बात करते ही 'लङके
बदनाम हो जाते और लङकियों को परिजनों की चेतावनियाँ मिलने लगतीं । विवाह
टूट गया और बेहद सुंदर बेटी लेकर वह बूढ़ी माँ के साथ रहने लगी
',पारिवारिक मैत्री के कारण दूसरे प्रोफेसर की "रखैल का खिताब मिला "और
वह एक लेखिका होकर भी साहित्य जगत में अस्पृश्य ही रही ।
मन हमेशा उसके संघर्ष को नत मस्तक रहा, किंतु समाज के सामने कितनों का
साहस रहा कि वह किसी भले के घर सच खुलने के बाद आ जा सकती?
दूसरे मामले में उसकी माँ नर्तकी थी 'बेटी का प्रेमआसक्ति में विवाह हुआ
रईस युवक से और परिणाम स्वरूप उस युवक को परिवार ने बहिष्कृत किया
बिरादरी ने भी दस में से पाँच संतानों का विवाह हो नहीं सका, एक का विवाह
होकर बेटी को ससुराल छोङनी पङी, 'दूसरी बेटी के पति ने दूसरी शादी कर ली
और नर्तकी की दौहित्री होने के कारण परिवार से बाहर ही रहना पङा उस लङकी
को । लङके को एक दरिद्र घर की लङकी से विवाह केवल जाति में मिलने के लिये
करना पङा, और तब भी ',चौथी पीढ़ी के विवाह और सामाजिक जीवन पर उसका 'असर
ये है कि पीठ पीछे लोग बातें बनाते हैं और रिश्ते 'टूट जाते हैं ।

सवाल है कि जब "नर्तकी तवायफ या वेश्या होना इतना बुरा और दूरगामी पीढ़ी
दर पीढ़ी होने वाला बुरा प्रभाव है तो कोई स्त्री "क्या सहर्ष वेश्या
बनती होगी???
©®सुधा राजे


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