सुधा राजे का लेख :- "उफ! ये मम्मियाँ "

माँ
प्रकृति में ईश्वर का साक्षात रूप
है ।
माँ महान है । माँ के पैरों के नीचे
स्वर्ग है ।
माँ देवी है पीर है फरिश्ता है ।
"""
"""
जरा ठहरो!!!!!!!!!!!!!!!!!
किंतु
अगर वह बेटी की माँ है तब
भी????????????
ये भारत है । बल्कि कहें तो पूरे
एशिया में विशेष कर भारतीय
प्रायद्वीप के सातों देशों में ।
बेटी की माँ जरा सी अलग है ।
बेटी की कभी कामना नहीं करती कि मुझे
पहली संतान बेटी हो । अब
आधुनिक तकनीक से पता चल
जाता है
सोनोग्राफी अल्ट्रासाउण्ड
तो गर्भ में ही अधिकांश माताएँ
दूसरी संतान भी बेटी होने पर
बिना एक आँसू टपकाये
बेटी की हत्या करवा देती है ।
रोतीं है तो उस बच्ची की मौत पर
नहीं शरीर के दर्द और ""हाय हाय
फिर लङकी ही मुई आई गर्भ में इस
बात पर ।
ये माँएँ बेटी को ज्यादा से
ज्यादा छह महीने तक ही दूध
पिलाती हैं जबकि "बेटा स्कूल जाने
तक माँ का दूध पीता है ।
ये माँएँ बेटे के लिये हर रोज रसोई
तप तप कर नये नये पकवान "पति से
ज्यादा रुचि से पकाती हैं और
बेटी बस यूँ ही जो रोज बनता है
वही खा ले । न बादाम छुहारे न
घी दूध फल हरी सब्जियाँ और खीर
मिठाई ।
ये मातायें लङके के जन्मदिन पर
कथा करातीं है पार्टी दावत जश्न
करती है किंतु बेटी के पैदा होने पर
दाई तक का मुँह
मीठा नहीं करवाती ।
लङके की छठी छूछक दशटोन और
पालना बाहरनिकलना कुँआ
पूजना सब जश्न से करती है ।
बेटी के मचलने ठुनकने पर चाँटे डाँट
और "मर जा " की गाली ।
बेटे के मचलते ही फरमाईश
वाली चीजें हाजिर!!!!!
ये माँयें बेटे को बढ़िया स्कूल में
पढ़वाती ट्यूशन लगवाती है ।
बेटी को पास के बाल भारती में और
घर की साफ सफाई पिता भाई के
जूठन उतरन साफ करने में
लगा देतीं हैं ।
ये माँये बेटे की हर गलती माफ
करतीं है और बेटी की हर गलती पर
जमकर ससुराल के ताने मरने
की बददुआ और पिटाई भी करती है

बेटे की लंबी आयु के लिये तमाम व्रत
उपवास मन्नतें धागे नजर
उतारना ताबीज गंडे!!!
निर्जला अहोई.
ललही छठ
संतानसप्तमी
जीवितपुत्रका
पयोव्रत
ललिताषष्ठी
रोजे
नमाज
जकात
सदका
चादर
"""बेटी को विवश करके
रखवाती हैं व्रत "जिससे जल्दी वर
मिले "
पढ़ा लिखा कर स्वावलंबी बनाने
की बजाय बेटी को छुई मुई डरपोक
और पराश्रित बनातीं हैं ।
बेटी की शादी के बाद एक एक चीज
पर अहसान जतातीं हैं ।
ये माँयें बहू घर आती है
तो पूरी वैम्पायर डायन बन
जातीं हैं ।
पिता माता भाई बहिन
सखी सहेली छोङकर आयी बेबस
लङकी को
बात बात पर ""तेरे बाप ने
क्या दिया? के तीर
कोंचतीं रहतीं हैं।
बहू को पोता ही जनने को मजबूर
करतीं है ।बेटे के दिल में बहू के लिये
नफरत भरती रहती है।
पोते पोती में भीषण भेदभाव
करती है।
बहू के मायके वालों की जमकर
बेईज्जती करती है।
बहू पर सब काम छोङकर रातदिन
बहू के कामकाज में नुक्स
निकालती रहती है।
बहू को न पास पङौस से मिलने
देती है न मायके जाने देती है।
इतने पर भी बेटे बहू में प्रेम बच
जाये तो हाय तौबा मचाकर बेटे
"को जोरू का गुलाम
""माँ का गद्दार ""घोषित करके
बेटे से अपनी सेवाओं
का सिला माँगती है ।
जब बूढ़ी हो जाती है तो 'देखरेख में
कमी के ताने मारती रहती है और
अगर संपत्ति की मालकिन है
तो बात बात पर घर से निकालने
बेदखल करने की धमकी देती है ।
जब अशक्त हो कर खाट पर पङ
जाती है तो जो भी मिलने आता है
दुखङे रो रो कर बेटे बहू को बदनाम
करती है ।
और
जब हुकूमत हाथ से निकल कर बहू
को मिल जाती है तो रूठकर
वृद्धाश्रम और मायके जा बैठती है

वहाँ भी बजाय आध्यात्म और समाज
सेवा के नई
पीढ़ी को कोसती रहती है ।
सब न सही
परंतु बहुत सी माँएँ ऐसी ही हैं ।
देखो
कदाचित आपके आसपास कोई महान
माता ऐसी हो!!!!!
क्या बुढ़ापा उसके बोये
बबूलों का फल है?????????
©®सुधा राजे
511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor U.p.
Email- sudha.raje7@gmail.com
Mob- 7669489600
यह रचना पूर्णतः मौलिक है।

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