आखिरी इक बात जो मैं कह न
पायी आज़ तक ।
थी मुहब्बत सीने में चुपके
निभायी आज तक ।
दर्द ही ज़ीने का मेरे
था सहारा जी लिया ।
गीत वो छलके दो आँसू पी न
पायी आज तक।
रास्ते मंजिल औ साहिल सब अलग
होते गये ।
इसलिये दुनियाँ से भी नज़रें
चुरायीं आज तक।
आँसुओं का एक
ही दरिया रहा सैलाब पर ।
था किनारा सामने
कश्ती डुबाय़ी आज तक।
तू मेरा होता न होता मैं
किसी की भी नहीं।
तेरे आगे इसलिये पलकें
झुकायीं आजतक।
उम्र का हर दौर ग़म
पीती गयी जीती गयी ।
मार खा रोयी नहीं औऱ् चोट
खायी आज़ तक
थामकर उँगली किसी की चलने से से
क़तरा गये
हर कदम वो हाथ आँखें याद आयी
आज तक
दर्द का हर गीत
अपना सा लगा पाले रही
जब तेरी चिट्ठी जलाई सो न
पायी
आज तक ।
एक बस तेरे ज़िकर से ओढ़
लीं ख़ामोशियाँ
जब किसी ने हाल पूछा मुस्क़ुरायी
आज तक ।
ये हुआ अच्छा कि हो गये
अज़नबी अपने "सुधा "।
अब मैं खुद को खोजती हूँ मिल न
पायी आज तक
©®¶
Sudha Raje
Dta★
Sunday at
10:09am ·
Tuesday 9 April 2019
कविता; :आखिरी इक बात
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