​स्त्री पर बोलना अब फैशन में नहीं रहा : सुधा राजे का काव्य लेख


स्त्री पर बोलना अब फैशन में नहीं रहा  : सुधा राजे का काव्य लेख 

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लङकियों को धमकाने की कोशिश ये समाज गर्भ से ही शुरू कर देता है जब कामना करता है केवल पुत्र
की ही कामना करता है । बहुत कम मामले ऐसे होते हैं जिनमें पुत्री की कामना की जाती है । पुत्री पैदा होने पर अफसोस करता है । बहुत कम मामले ऐसे होते हैं जिनमें
पुत्री होने पर उल्लास उत्सव होता है । लङकी को हर धमकाया जाता है। जबसमाज उसे घरेलू कार्य सिखाता है और स्त्रियाँ समझाती है कि जरा भी ग़लती की तो कोई
हवसी हिंस्र पिशाच खा जायेगा । लङकी कितनी ही हँसती खेलती हो मगर हर लङकी हर पल एक रिस्क लिये सिर पर डरी हुयी सी रहती है सावधान
सावधान सी । लङकी को धमकाते रहते है बाहर से
भीतर तक हवसी हिंसक । और चाहे लाख पर एक हो मगर बचपन में ही क़ामयाब हो जाते हैं मासूम लङकी को डराधमका बहला फुसला टॉफी चॉकलेट चिज्जी पैसे और घुमाने के लालच में डर सच साबित हो जाता है और भयादोहन किया जाने लगता है । लङकी को धमकाता है ये समाज जब स्कूल कॉलेज अस्पताल बाजार मंदिर
मेला रैली जुलूस उत्सव और समारोह में जाती है अथवा जाना चाहती है और पूरी लङकियों में से बहुत कम
लङकियाँ जाने दी जातीं हैं । लङकी को धमकाता है ये समाज और पूरी लङकियों में से बहुत ही कम
लङकियाँ ज़ाहिर कर पातीं है अपना पहला प्यार और प्रेम करने वाले के साथ घर बसाने की इच्छा । और अकसर पूरी लङकियों में से बहुत कम लङकियों के
प्रेम की कहानी पता चल पाती है परिवार को और पूरी लङकियों में से बहुत कम लङकियों का प्रेम घर बसाने
तक की कथा बन पाता है । लङकियों को धमकाता रहता है ये समाज और पूरी लङकियों में से अधिकांश
लङकियाँ ना नुकर या चुपचाप वहीं शादी कर लेने
को राज़ी या ग़ैरराज़ी मान कर शादियाँ पूरी जिंदग़ी निभाती चलीं जा । लङकियों को धमकाता है ये समाज और लङकियाँ बार बार माँ बनने पर यातनादायक जीवन सहती है पूरी में से अधिकांश लङकियाँ बार बार प्रताङना सहकर भी पङी रहती हैं दुखते बदन और सिसकते मन तन के साथ ससुराल पति और बच्चों के बीच
क्योंकि धमकाता है समाज कि ना मायका साथ देगा ना ससुराल में वापसी हो सकेगी और बिना घर की लङकी के हिंसक पशुमानव खा जायेंगे उंगलियाँ उठायेंगे ।
लङकी को धमकाता है ये समाज पुत्र ही पैदा करने के लिये और हो जाती है पुत्री पैदा तब जीवन भर
लङकी की माँ होने की धमकी सहती रहती है माँ ।
लङकी को धमकाता है ये समाज और लूट ली जाती है बहुतों में से बहुत सी लङकियाँ चाकू पिस्तौल तमंचे और
तेज़ाब का डर दिखाकर । और फिर सबकुछ समाज को दिखाकर बताकर बदनाम कर देने को धमकियाँ दे दे कर लूट का सिलसिला चलता भी रखा जाता है
कई लङकियों पर । लङकियों को धमकाता है ये समाज। और कई लङकियाँ जब तब छल से खाने पीने
में नशा देकर जहरीली दवा देकर कामुक तसवीरें चलचित्र और गीत कहानी शेर शायरी और शब्द स्पर्श से संप्रेषण करके भावुकता जगाकर भावनायें भङकाकर कपट से लूट ली जाती हैं और विश्वास घात कर दिया जाता है प्रेम के बहाने केवल दैहिक शोषण किया जाता और भरोसे में लेकर बङी बङी बातें की जातीं है फिर सब बङी बङी बातों का मकसद लङकियाँ फाँसना और लङकियों से दैहिक संबंध बनाना लङकियों से छलात्कार करना और फिर धमकाना होता है । धमकाता रहता है ये समाज
लुटी हुयी लङकियों को । कि अगर तुमने किसी को बताया कि तुम्हें बल से छल से कपट से धमकी से धोखे से और भयादोहन से लूटा गया है तो साबित कर दिया जायेगा —"कुलटा वेश्य़ा बिना अनु व्यापार में लिप्त डायन चुङैल बेवफ़ा और छिनाल जबकि कोई कभी नहीं पूछेगा कि अगर कुलटा छिनाल वेश्या खराब स्त्री है तब
तब तब??? ये कुलटा छिनाल वेश्या को पास जाने वाले सफेदपोश भलेमानुष सभ्य और भव्य इज़्जतदार लोग
अपनी औलादें वेश्या की कोख में छोङने क्यों जाते हैं??
वेश्या बुरी है अछूत है समाज से निष्कासित है तब क्यों नहीं अछूत बहिष्कृत और समाज से निष्कासित है
वेश्याग़ामी!!!!!!!!! लङकियों को धमकाता रहता है ये समाज कि साबित कर देंगे कि तुम ही खुद उस पुरुष के करीब जानबूझकर लालच में गयी थी तुमने की है साज़िश और तुम ही वासना की भूखी डायन हो तुम ही फँसा रही थी उस  बेचारे को ।चाहे वह  बेचारा लङकी का मुँह खोलने से पहले तक  वीर बहादुर तेज तर्रार दमदार दबंग महान निडर बेखौफ़ की उपाधियों से विभूषित हो लेकिन लङकियों को धमकाता रहता है ये समाज । और लङकियो!!!!!! सुनो लङकियो!!!धमकी से डरना नहीं
नहीं घबरा इलज़ामों से ना पलायन करना सत्य की लङाई से ना ही हिम्मत हारना आरोपों की बौछार से । तुम्हें कतई नहीं भयभीत होना है क्योंकि जब तुम नहीं डरोगी तो डरेगा शोषक डरेगा कपटी डरेगा छल कर्ता डरेगा हिंसक डरेगा भय देने वाला डरेगा हक़ मारने वाला
डरेगा बलात्कारी क्योंकि भय की काली सुरंग के ठीक बाहर ही विजयश्री है तुम्हारा अपना हक है और है तुम्हारा अपना जीवन अपना घर कैरियर अपनी शर्तो पर डरना नहीं जब कोई गाली दे क्योंकि गालियाँ देने वाला लङकियों को होता कौन है बीच में बोलनेवाला??
डरना नहीं जब कोई हादसा घट जाये और तुम्हारे साथी साथ छोङ दें कपट करके मिटा दें सारे सुबूततुम्हारी बरबादी के तब भी । क्योंकि तुम्हारी बात से सावधान होंगी करोङों लङकियाँ । करोङों हिंसक पशु डर डर जायेंगे कि अब तो लङकियाँ ना कलंक से डरतीं हैं
ना बदनामी से ना ही डरती है समाज की घिनौनी गालियों से । तब सच मानो अनजाने में तुम बचा रही होती हो पूरी लङकियों में से लाखों लङकियाँ बरबादी से शोषण से और सावधान करने वाले सैनिक की तरह होती है तुम्हारी जिंदग़ी की शहादत । तुम्हें डरना नहीं है क्योंकि बहुत सारे
नर नारी और लङकियाँ दिल से तुम्हारे साथ होते हैं और दुआ करते है कि तुम्हारा जीवन पुनः सुधरे घर बसे
और तुम उबर जाओ हादसे की काली यादों से ।
भले ही वे सब तुम्हें ना दिखाई दें । परंतु सच मानो
लङकियों सत्य की जीत की दुआ करने वालों की कमी नहीं है । अंतर ये है कि लङकियों को धमकाने वाले
चीखते बहुत हैं किंतु सत्य की जीत की प्रार्थनायें शांत होती हैं । लङकियों को बहुत धमकाता है ये समाज
और तुम्हें डरना नहीं है लङकियों ।
©®सुधा राजे

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