सुधा राजे का लेख :- " चिंता और चिंतन।"

अतृप्त वासना और धनेच्छा
किसी भी परिवार, व्यक्ति,
दंपत्ति और समाज को घुन की तरह
खा जाती है ।
व्यक्ति 'दबाता रहता है
दबाता रहता है दबते दबते एक बिन्दु
चरम गर्त का आकर ठहर जाता है दमन,
'वहाँ से 'जिन इच्छाओं
को दबाया जा रहा है वे भी भौतिक
पदार्थ की तरह, विकृत होकर खंडित
और पिसकर अन्य पदार्थ में बदलने
लगती हैं ।
कलह के मूल कारण यदि खोजें
तो "वासना ''और धनेच्छा ''
कहीं न कहीं रहती ही है,
यूँ नहीं मनीषियों ने कहाँ है कि "मैले
पदार्थ को धोना मैले पदार्थ से संभव
नहीं 'स्वच्छ पदार्थ से ही मैला पदार्थ
धुलता है ।
तो वे सब भावनायें जो जो "आहत "हैं
उनके मूल में जाकर देखें कि, शिक़ायत किस
किस बात की है? और तब जब मन में
क्रोध शिकायत या दुख उत्पन्न हुआ तब
"कारण "कोई
नयी पुरानी इच्छा 'वञ्चना या अभाव
'ही रहा होगा ।
एक प्रेयसी अँगूठी सस्ती होने पर इस
तरह रूठी कि बोलचाल बंद
हो गयी "प्रेम है दावा है किंतु
बातचीत बंद "
पति नाराज
क्योंकि थकी हारी पत्नी करवट बदल
कर सो गयी और पति की इच्छायें
अधूरी रह गयीं, 'प्रारंभ में दोस्ती,
प्रेम, दांपत्य या, सौहार्द्र के
किसी भी नाते में 'संकोच रहता है, दूसरे
को खुश करने और अपना प्रभाव बढ़ाकर
दिल जीतने का, अंतर्निहित प्रेरक
तत्त्व रहता है, किंतु लंबी नातेदारी में
अंततः संकोच कब तक, और जब ये बातें
सामने खुल रर कही सुनी कटाक्ष में
'प्रक्षेपित की जाने लगती हैं तब '
आक्रोश य़ा क्षोभ पैदा होता है और,
कहीं विनाश तो कहीं सृजन ',
किंतु 'न तो हर कोई कालिदास
मीरा तुलसीदास ध्रुव और च्यवन बन
पाता है न ही 'यही समझ पाता है
कि "उसके नातों में घुली कङवाहट प्रेम
से घृणा में बदलते जाने की मूल वजह
''इच्छा लोभ वासना मोह और
अपेक्षा है, '
वरना वह 'व्यक्ति न बुरा है न
ही घृणा या दंड के लायक अपितु
यदि अपनी वासना और धनलोभ पर
नियंत्रण रखा जा सके तो, भरभराकर
गिर पङे हर
नफरत की दीवार ',
©®सुधा राजे
अपने ब्लॉग से ''wILD SONG ''''''''
Goodnight FRNZ
शुभरात्रि
©®सुधा राजे।



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