सुधा राजे का लेख :- बच्चे " अथ बाल-पाठशालायन"

बच्चे और स्कूल ',एक
नयी श्रंखला 'लेखमाला के अंश
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""""सफेद जूते क्यों?
क्यों सफेद यूनिफॉर्म?
यदि काले जूते ही पूरे छह दिन स्कूल
पहने जायें तो हर साल तीन
जोङी सफेद जूते और मोजे ना खरीदने
पङें माता पिता को ।
क्योंकि, 'ये सफेद जूते महीने में केवल
दो या तीन बार पहने जाते है
',सेकेण्ड सटरडे की छुट्टी होती है ',
और किसी शनिवार को ''राष्ट्रीय
छुट्टी या प्रादेशिक
छुट्टी या स्थानीय अवकाश पङ
गया तो 'रह बस '।
काले जूतों को ही हर दिन
की यूनिफॉर्म बना दें न!!!
बजट भी खराब न होगा और व्यर्थ
पङे पङे छोटे हो हो कर फिंकते
जूतों की बरबादी रुकेगी ।
इसी तरह हर शनिवार सफेद
यूनिफॉर्म भी एक
"चोंचला ढकोसला शो दिखावा है
"बस ।
अतिरिक्त आर्थिक बोझ और क्या, बे
वजह 'नील टिनोपाल ब्लीच 'लगाते
इस्तरी करते 'माँयें हलकान 'और,
महीने में केवल एक या दो या हद्द से
हद्द तीन बार पहनने को ',बोझ ।
ऊपर से शनिवार को ही गेम्स क्लासेस
'ताकि सफेद कपङों की जमकर
सफेदी को बिगाङा जाये ।
कारण 'है 'क्रिश्चियन धार्मिक
प्रथा जब 'सॅटरडे 'पूजा का चर्च
का दिन हुआ करता था ।पूजा के लिये
चर्च सफेद कपङों में
जाया जाता था और वे कपङे विशेष
तौर पर साफ करके घरों में अलग रख
दिये जाते थे ।
आज स्वतंत्र भारत में गरीब मध्यम
वर्गीय परिवारों की आधी कमाई ऐसे
फालतू के ढकोसलों में
जाया हो जाती है ।
बजाय इसके बच्चों को हर शनिवार
''स्पोर्टवीयर पहन कर खेलने
को आधादिन दें तो बच्चे भी खुश और
अभिभावक भी ।क्रमशः जारी
©®सुधा राजे बच्चे और स्कूल ',एक
नयी श्रंखला 'लेखमाला के अंश
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