सुधा राजे का लेख - ""बात चरित्र की।""

बात चरित्र की """"

सुधा राजे का लेख
"""""""""""कॉलम "स्त्री ""
★स्त्री पूजकों का देश कहे जाने वाले भारत में ही सबसे अधिक गालियाँ
"स्त्रियों पर है "यहाँ तो लुगया ,लुगाई, जनाना,जनखा ही गाली है ।भद्र
गालियाँ है 'साले ससुरे और मेरी माँ, मेरी दादी, तेरा तो मैं बाप लगता
हूँ ',और तो और बेटा कहने में भी 'व्यंग्य में गाली ही होती है। तेरी माँ
बहिन बेटी तो बात बात में नन्हें मुन्ने कहे समझे जाने वाले बच्चे तक
बकते रहते हैं ।
इसी देश में चाहे घर की बेटी बहू बहिन माँ चाची पङौसन भाभी मौसी ननद सास
ताई बुआ काकी हो झगङा होने पर ''गालियों में सबसे अधिक 'राँड, रंडी,
कुलटा, हरामज़ादी और बदचलन आदि सूचक शब्द ही गाली में आते हैं ।
सवाल चरित्र का जब जब उठता है तो ऐसे किसी भी 'पुरुष 'को जिसने स्त्री
कभी न छुयी भोगी हो "महापुरुष "महासंयमी और ब्रह्मचारी आदि कह कर
महिमामंडित किया जाता है । अनेक पौराणिक पात्र केवल इसलिये महान कहे गये
कि वे 'स्त्री के साथ जीवन भर दैहिक संबंध नहीं रखने की प्रतिज्ञा निभाते
रहे ',अब चाहे जैसे भी हो '। जब बात स्त्री की आती है तो "ये त्यागी या
ब्रह्मचारिणी होना या आजीवन पुरुष से दैहिक संबंध न रखना कोई बङा महान या
महिमामंडनीय कार्य आचरण नहीं है।
सती सावित्री और सीता अनुसुईया अरुन्धती दमयंती तारा सुलोचना पार्वती की
महिमा केवल इस बात में है कि "हर हाल में पति की दासीवत पूरी निष्ठा
आस्था समर्पण अंधभक्ति से सेवा और आज्ञापालन '
ये सब पात्र 'महिमामंडित 'किये जाने के पीछे मानसिकता यही कि "स्त्री
'वही सर्वोत्तम होती है जो बचपन से ही पिता के घर होने पर भी स्वयं को
पति की संपत्ति मानकर वर की 'प्राप्ति के लिये कठोर व्रत उपवास नियम संयम
आराधना पूजा और पतिभजन करती रहे 'विवाह जिससे भी किसी भी शर्त वचन प्रण
प्रतिज्ञा घटना या दुर्घटनावश कर दिया जाये "उसी "मानव को परमात्मा मानकर
'उपासना करती रहे ।चाहे वह दैहिक रूप से नपुंसक हो गंभीर लाईलाज़
संक्रामक रोगी हो विकलांग हो दरिद्र कंगाल धोखे से बलात्कार करके शीलहरण
करके पति बन बैठा हो 'अपहरण करके स्त्री को हर लाया हो और पत्नी बनने पर
विवश किया हो या फिर युद्ध संधि और जय पराजय वश स्त्री को विवाह बंधन में
बाँध दिया गया हो ',
विवाह हो गया तो हो गया । अब कोई पलायन मार्ग नहीं सुधार या वापसी नहीं ।
स्त्री के वैराग्य और संन्यास और मोक्षकामी होकर भक्ति आराधना पर
'संस्कार विरोध करते ही दिखते हैं । स्त्री को हर हाल में विवाह करने की
ही हिदायत 'धर्म और रीति रिवाज में है । एक पुरुष निर्णय ले सकता है कि
वह आजीवन अविवाहित रहेगा ''तो वह महान 'एक स्त्री निर्णय नहीं लेने दी जा
।सकती कि वह आजीवन अविवाहित रहेगी । और ऐसी स्त्रियाँ जो अविवाहित रहती
या किसी कारण वश विवाह नहीं करती ""एक अज़ीब सी हेय दृष्टि से देखी जातीं
हैं "।
चरित्र?
है क्या? क्या केवल "सहवास न करना मात्र? या केवल अपने विवाहित सहभागी
मात्र से ही सेक्ससंबंध रखना भर?
चरित्र का संबंध मन और मस्तिष्क हालात और विवशताओं की सब बातों के कार्य
कारण सहित समग्र से क्यों नहीं?
क्या एक वेश्या चकयरित्रवान नहीं हो सकती?
ग़ौर से समझें कि वह किसी भद्र परिवार की मासूम लङकी थी जिसे अपहरण करके
बेच दिया गया और मार पीट ज़ुल्म जौर से बदन बेचने की मंडी में नीलाम होने
पर विवश किया गया ।वह धीरे धीरे माहौल में ढल गयी और रोज़ बिना ना नुकर
के बिकने लगी ।
वह चरित्र हीन कैसे है?
चरित्रहीन कोई है तो वे सब लोग जो उसे चुपाकर लाये, वे जिन्होने उसे बेचा
खरीदा औक मजबूर करके वेश्या बनाया, वे सब लोग जो यह जानते हैं कि वेश्या
है, यह इसकी मजबूरी है उसको पैसों के बदले भोगते खरीदते और नोंचते
भँभोङते रहे!!!!!
कौन चरित्रवान है?
यह समाज, एक घरेलू स्त्री को मामूली सी बात पर रंडी और वेश्या कह देता है????
क्या ऐसे शब्द बकने वाले लोग ''चरित्रहीन नहीं?
जब किसी स्त्री को पिता भाई पति पुत्र का संरक्षण न हो तो समाज का चौथा
पाँचवा आदमी उसको "भोगने "के लिये तरह तरह के इशारे निमंत्रण और छेङछाङ
स्पर्श संकेत से पाना चाहता है ',किंतु जब वह, किसी मजबूरी में अपने शरीर
को ही लोगों का मनोरंजन करके पैसा कमाने परिवार और पेट पालने का माध्यम
बना ले "नाचने गाने और लोगों का मनोरंजन करके पैसे कमाने लगे तो? वह गाली
है? रंडी!!!!बदचलन???
वे सब लोग क्यों नहीं जो एक बेसहारा स्त्री को भोजन वस्त्र घर दवाई तो
नहीं दे सकते किंतु इन सबको देने के बदले ''रुपये दे सकते है अगर वह कपङे
उतार दे और नाचे बदन बेचे या नुमाईश करे तो!!!!!!!!!वह समाज बदचलन क्यों
नहीं जहाँ लङकी को विवश होने पर रोटी कपङा मकान तो नहीं किंतु रंडी
वेश्या गाली बनने का न्यौता हर ओर से मिलता है??
,,,प्रेम संबंधों का भी यही हाल है सोच कर देखें । किसी लङकी की प्रेम
अफेयर या दैहिक रिलेशन जो भी हो, होता तो किसी न किसी "पुरुष "से ही है ।
फिर संबंध टूटने पर लङकी को "बदचलन और लङके को अकसर प्रेम में धोखा खाया
मजबूर या प्लेबॉय की तरह की सराहना मिलती है कि 'वाह कितनी सारी लङकियाँ
इस हीरो पर मरतीं हैं '!!!
ये दोहरे मानदंड रच बस चुके हैं विचारों में सोच में और संस्कारों में
कि, एक माँ बाप तक बेटे से बालपन में बहू और पोता और गर्लफ्रैण्ड की बात
करने लगते है "हास परिहास "में बहुत फ्रैंक समझे जाने वाले परिवारों में
तो लङकपन में ही "लङकी पटाने और तमाम इसी तरह की बाते कर लीं जातीं हैं'।
वहीं बङे से बङे आधुनिक समझे जाते परिवार में भी लङकी के लिये सोच बातचीत
वही ढाक के तीन पात, 'शादी ससुराल और अब बहुत हुआ तो, कैरियर 'ताकि
ससुराल अच्छी मिले या ससुराल अच्छी नहीं मिली तो 'कोई संकट "रोजी रोटी का
न रहे ।
सजने सँवरने की शुरुआत में ही लङकी को अकसर परिवारों में टोका रोका डाँटा
डपटा जाता रहा है ',ग्रामीण परिवेश में तो सीधे सीधे ही घर की बूढ़ी
पुरानियाँ कह ही देती ""इतना सिंगार पटोरा क्यों कर रही है, किस खसम को
दिखाने जा रही है, जे सब बिआह के लिये रहने दे "
ज़माना बदला लोग बदले अब कुमारियाँ लिप्स्टिक नेल पेंट और तमाम मेकअप भी
करने लगीं हैं ',किंतु सोच अब भी जस की तस है ।
लङका सेंट लगाये तो "कोई है क्या बरखपरदार? ""
और
लङकी 'जरा अधिक ध्यान से सजे सँवरे तो ""ध्यान रखना मुझे कोई ऐसी वैसी
बात न सुनने को मिले ''

चरित्रवान होना "लङकों की शर्त क्यों नहीं?
बलात्कार औऱ छेङछाङ के डर के कारण एक पल भूल भी जायें तो बात आती है
"अविवाहित गर्भ की "
प्रेम संबंधों में लङके अकसर हदें पार करना चाहते हैं और लङकियाँ "विवाह
"होने तक दैहिक संबंध से डरतीं हैं ।
आज ये लंयम भी टूटते जा रहे हैं । क्योंकि तमाम तरह की गर्भनिरोधक
दवाईयाँ हर जगह उपलब्ध हैं और गर्भपात कोई बङी घटना नहीं रह गया ।
किंतु "चरित्रहीनता "का कलंक तब भी लङकी ही ढोयेगी यह आज भी तय है ।
लङका प्रेम कर सकता है? अगर हाँ तो क्या किसी स्वर्ग की अप्सरा या
ज़न्नत से उतर कर आयी हूर से करेगा???
ज़ाहिर है किसी लङकी से ही करेगा यदि "गे "है तो और बात है वहाँ भी देखे
कि "नपुंसक होना भी समाज में गाली है जबकि नपुंसक होना न होना "प्रकृति
पर निर्भर है "
तो वे "प्रेमिकायें आयें कहाँ से??
किसी पिता की बेटी किसी भाई की बहिन किसी खानदान की तो मान मर्यादा चादर
मूँछ पगङी होगीं ही!!!
हँसने और रोने दोनों की बात है कि आज का युवा भी "गर्ल फ्रैंड तो चाहता
है स्कूल से यूनिवर्सिटी और दफ्तर तक, 'किंतु जैसे ही विवाह की बात आती
है, 'उसको वन पीस अक्षत कौमार्यर्वती पवित्र अनछुयी 'सुकन्या ही
चाहिये!!!!
ग़ज़ब की बात है कि अपनी गर्लफ्रैण्ड से विवाह "नहीं "करने की सोच रखकर
अफेयर चलाये जा रहे लङके लगभग हर चौथा पाँचवा लङका 'विवाह किसी दूसरी ही
अनछुयी कौमार्यवती ""दहेजदायिनी ""सजातीय लङकी से ही करना चाहता है और
अधिकांश मामलों में करता भी है ।सवाल है तो फिर वे सब रिजेक्टेड ठुकरायी
हुयी "अपवित्र टच्ड "बदचलन समझी जाने वाली लङकियाँ "कहाँ जायें?या कहाँ
जातीं होगीं?आलम तो ये है कि चरित्र पर इतना बावेला मचाने वाले इसी समाज
में ऐसे भई हज़ारों विवाह हर वर्ष होते हैं जहाँ "पिता भाई ने प्रेमी को
पीटकर लङकी को विवश करके सजातीय घर वर खोजकर विवाह दूसरी जगह कर दिया
।बात छिपाने की लाखों कोशिशों के बावज़ूद 'जैसे ही पत्नी या बहू के विवाह
पूर्व किसी अफेयर के बारे में पता चला 'ससुराल को यातनागृह और दांपत्य को
नर्क बना दिया जाता है । अकसर पुरुष स्वीकार ही नहीं कर पाते कि उसकी
पत्नी "किसी की प्रेमिका रह चुकी है ''!!!
इस बात पर पत्नी को रंडी वेश्या कुलटा बदचलन तक की उपाधियाँ दे दी जातीं
है 'किंतु ',उसी चरित्रवान पतिपरमेश्वर को "शायद ही कभी इषस बात की
ग्लानि या अहसास तक होता हो "कि बचपन से प्रौढ़ होने तक कितनी स्त्रियों
को उसने "पटाने की कोशिश की, 'कितनों को छेङा, 'कितनियों को जानबूझकर गलत
इरादे से छुआ ',और कब कब वह खुद "प्रेम या फ्लर्टिंग करके मुकर गया!!!!!
यही नहीं उसकी अपनी निजी आदतें कितनी "पवित्र है?? नशा 'लङकियाँ, पोर्न,
और टॉयलेट या बेड के दुर्गुणों की बात को चरित्र से क्यों नहीं जोङा जाना
चाहिये?
आज भी है कि पति को पराई स्त्री पर डोरे डालता देखकर भी स्त्री रिश्ता
निभाती है 'परस्त्री से संबंध होने की सच्चाई पता चलने पर भी स्त्री निभा
लेती है । कोई भी "बदचलनी "करके आया पति या बेटा या भाई अंततः 'माफ कर ही
दिया जाता है ।
किंतु 'अधिकतर मामलों में अपवादों को छोङ दें तो 'स्त्री की सारी निष्ठा
सेवा और सच्चाई जलकर पल भर में समाप्त हो जाती है । बदचलन चरित्रहीन 'ये
तो उसे तब भी जब तब कह कर डरा ही दिया जाता है ही जबकि वह रोम रोम से
एकपुरुष निष्ठ हो
और कभी ये समाज नहीं सोचता कि ""बदचलन चरित्रहीन पुरुषों की धोखा खाई
हुयी ये कुलटायें जायें तो कहाँ जाये?????
क्यों न सोच बदली जाये!!!
आखिर "इश्क़ और रोग पर किसी का जोर चलता नहीं ।और रहा सवाल सामाजिक नैतिक
मूल्यों का तो इनको कठोर होना चाहिये बेशक ',किंतु पुरुषों पर भी ये
कठोरता घर घर प्रतिव्यक्ति लागू होनी चाहिये न!!!!!
ताकि कोई पिता बेटे की प्रेमिका के बारे में मजाक करके ठहाके लगाने से
पहले सोचे "कि उसकी भी बेटी किसी और के बेटे की प्रेमिका हो सकती है और
वह पिता भी इसी तरह से मजाक उङा रहा होगा!!!
वस्तुतः चरित्र केवल 'दैहिक पवित्रता "सेक्स न करने के अर्थों में ही
नहीं "व्यापक रूप से सोच ईमान कर्त्व्यनिष्ठा सत्याग्रह परहित परपीङा और
सामाजिक वैधानिक सांस्कृतिक ताने बाने के अनुरूप "मन कर्म वचन विचार और
अभिव्यक्ति की सच्चाई और ईमानदारी और "ऐब रहितता "भी होनी चाहिये ।
©®सुधा राजे


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