Friday 19 July 2013

हम गँवार ::कविता

Sudha Raje
ग्रामवासिनी
हम गँवार
बाबूजी समझें
गाली है
शहर
खा गये सब कुछ मेरे गाँव
की झोली खाली है
दूध पिये बिल्ली कुत्ते तोते
फल खाते माखन तुम
क्या जानो बिन रोटी के
रमदसिया मरने वाली है
सारी साग़ सब्ज़ियाँ महुये
आम आँवले बेर तलक
भर ले जाते आढ़त बाबू बस
हमरी रखवाली है
बोबें ,छेतें ,छोलें ,रोपें,ईख
पिसी तिल धान उङद
मिल ,काँटे ,मंडी ,कोल्हू पे
गाङी की भी डाली है
जो भी आबे खाता जाबे
हम जाबे तो दुत्कारे
बिही केर गुङ परमल बिक
गये
काली भई घरवाली है
भैया जी केँ गये एक दिन शहर
बिमारी विपदा में
बहिना ने
भी नाही चीन्हा भौजी
मतलब वाली है
धिल्ली नखलऊ दून के चक्कर
काट काट कें चिक्कर गये
अव्वल की ये
डिगरी ऊँची बिन रिश्वत
बेमाली है
सुधा गाँव की गौरी नईँ
अब
ठेठों वाली कल्लो भयी
शहर गाँव
की कैसी यारी मिक्सर
कहाँ कुदाली है
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बिजली आने का त्योहार
मनाते हफ्तों बाद यहाँ
राशन की लाईन
घोटाला करे पंच
की साली है
ले जाते मजदूर बनाकर बंबई
बेचें बच्चों को
हम गँवार गंदे मजदूर
की फूटी लोटा थाली है
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कहाँ कौन सा देश और
सरकार !!!!!!
हमें तो थाना है
इज्जत जाये कतल हो चाहे
पंचों की दल्लाली है
पाँच साल पे भोट डालने
पकङ पकङ
ले जाबेंगे
दारू दे के बिलमाबेंगे
रैली जोर निकाली है
पटबारी को पैसे नई गये
पैमाईश में फँसा दियौ
गिरदाबल के नक्शे में अब
ग्राम समाजू ढाली है
चकबंदी में नायब और
वकीलों ने ऐसा फाँसा
परके करधन बेची रोके
अबके कान की बाली है
बिटिया पढ़ गई इंटर कैसे
शहर पढ़ाबें
जी
काँपे
गाँव के बाहर भेजे पे
तो पीछे रोज मवाली है
बेटे की उम्मीद में सासू ससुर
तबीजें करते रये
तीन
छोकरी हो गयी तिस पे
अब आया बंगाली है
रोज रात के हाङ तुङाके
कमली की अम्माँ रोये
कच्ची पी के लठ्ट चलाबे
खोटी, किस्मत वाली है
गोबर
सानी कुट्टी मट्ठा रोटी बाशन
चरखा भी
जोरू गोरू खेत रखाबे
हमरी बात निराली है
सुधा भात पे चीज
चढैगी भैंस बिके चाहे
दो बीघे
कैसे हमरी धिया बिआहें
चिंता नींद उङाली है
बी पी एल पे नाम लिखाबे
नकद माँग परधान करे
मनरेगा की मजदूरी भी मेट
की भेंट चढ़ाली है
हस्पताल की दवा डागधर शहर
बेचते चोरी से
दाई जनाबे बच्चा मर गयी
बिंदू की घरवाली है
मच्छर बाढ़ बुखार चोर
भी अब ओझा ने पंडित ने
बची खुची बिगङी औलादें
इनकी भली चलाली है
क्या होता गणतंत्र कायें
की बँटी जलेबी शाला में
जो केबें परधान वो होबे
देश सवाली है
हमसे घृणा करें रिश्ते भी
नही बताते देहाती
लोकतंत्र किस पोखर डूबा
हम तो बैठै ठाली है
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SudhaRaje
datia --bijnor
Jun 18 at 9:47am

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