गीत::एक मीरा नहीं और भी नाम हैं

Sudha Raje
भीगी पलकें न छेङो हमारी पवन!!!!
कहीं फिर से न बरसें भरे से नयन ।
आये—जाये जो सावन तो मैं क्या करूँ!!!!
ना रँगों से डरी ना मैं घन से डरूँ।
होलिका दामिनी बर्फ हो या अगन ।
कहीं फिर से न बरसें भरे से नयन।
सबको रोने को काँधा मिले भी तो क्यों!!
हो निठुर श्याम राधा खिले
भी तो क्यों।
बाँसुरी मूक है सुर बधिर है जमुन ।
कहीं फिर से न बरसें भरे से नयन।
एक मीरा नहीं और भी नाम हैं।
इक कबीरा नहीं राम या श्याम हैं
साधना में कई हैं दफन भू गगन ।
कहीं फिर से न रो दें भरे से नयन ।
अपनी ही खोज में जो रहे डूब गये ।
विश्व की व्यर्थता देखते ऊब गये।
है भ्रमण मात्र ही जागरण जग शय़न ।
है कहीं --------------
©®सुधा राजे
sudha Raje
Yesterday at 1:42pm

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