माटी गाँव की :बुंदेली गीत

Sudha Raje
Sudha Raje
रोरी हरदी धर टीका भर
माटी अँचरा छाँव
की।।
अम्माँ मोरी पठौनी धर जौ
माटी मोरे गाँव
की।।
बाबुल मोरी पठौनी धर जौ ।
माटी मोरे गाँव की ।।
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थोङौ नीर नदी कौ ।
थोङी धोवन तोरे
पाँव की।।
अम्माँ मोरी पठौनी धर
जौ माटी मेरे गाँव
की।।
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पईयाँ पईंयाँ जब लरकैयाँ चली पकङ
बाबुल की बईंयाँ
उतर घुटरूअन चाटी माटी मार सपाटे लै
गई कईंयाँ
।।
तनक सियानी भएँ मोरी मईया।
परदेशी खौँ सौंपी बईयाँ।।।।
माटी बालेपन की गुईंयाँ----—°°°°°°°
''''''यादें छूटे
ठाँव की।।
अम्माँ मोरी पठौनी धर दे माटी मोरे
गाँव
की।।
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बेर मकोर करौंदे
टेंटी ।।कैंथा इमली झरबेरी।।
डाँग जलेबी ,होरे भुन्टा महुक कसेरू और
कैरी।।
तरस तरस गई मामुलिया खौँ ।
भई ससुरार महा बैरी ।।।।
ज्वार की रोटी दूध महेरी°°°°°°°°°°°°°
°° "काँय"^
)वीर
के नाँव की"।।
KAA'NY EK MITTI KI KONE HOTI
HAI JO BHAI KE LIYE BAHINE gaur
ko charhati hai navratri mein
Suaataa ke khel mei
अम्माँ मोरी पठौनी धर दे माटी मेरे
गाँव
की।।
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माटी के शंकर गनगौरें हाथी घोङे
माटी के।।।
एङी गल गुच्ची घरघूले चाक गिंदौङे
माटी के।।
माटी खेल बङे भये सपने
काया जोङे माटी के ।।
मिट्टी के वे चूल्हे बाशन•••••••••••
वो हाँडी गुङियाओं की।।
अम्माँ मोरी पठौनी धर दे माटी मेरे
गाँव
की।।
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मिचकी पींग हिलौंरे होरी।
कीच रंग भँग हुङदँग की।।
कोह्नी घुटने छिले
मली वो माटी बूटी अँग अँग की।।
कनकौए कंचे बौ अक्ती संकरात सुध सतरँग
की ।।
केश धो रही भौजी खा गयी••••••••••••
•••••• सौंधी महक
कथाओं की।।
अम्माँ मेरी पठौनी धर दे माटी मेरे गाँव
की
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माटी मोरे देश की माटी ।।
हा •••••बिछुङे
परिवेश की माटी....
पूरे संस्कार संस्कृति की गुरूअन के उपदेश
की माटी।।।
सत्ती माई के चौरे की।
भसम शहीद चिताओं
की।।
अम्मा मोरी पठौनी धर दे माटी मेरे
गाँव
की
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SUDHA RAJE
DATIA**★Bijnor
Jan 29

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