Wednesday 1 May 2013

वातानुकूलित कक्षों नें धूप की कल्पना करते नारी चिंतक।

आजकल महिलाओं में एक फैशन
जोरों पर है ।।।।
वे किसी महिला मामले
का विश्वलेषण केवल अपने घर के
आधार पर करती हैं ।।दबा के नोट
देने वाला पिता मिल गया ।।
कॉलेज लाने छोङने वाला भाई और
हर जगह हर कठिन काम करने
को कोई चाचा मामा ।
पति खरीद कर डॉक्टर इंजीनियर
मिल गया या लेक्चरर।।
बेटा पैदा हो गया तो घर मुहल्ले
में धाक हो गयी।।और
नौकरी मिल गयी पति देव
की स्पान्सर शिप से
या पिताजी की गड्डियों से ।।।
मायके में मौज है ।।ससुराल में
राज है।।भविष्य सुरक्षित है।।
पैसा पर्स में है ।पति के नाम से
इज्जत है ।कार बंगला और जेवर हैं।
तब??????
बाकी बचे भारत
की जो कराहती औरतें हैं
पिटती कुटती मार खाती है।पढ़ने
से वंचित कर दी जाती है जिनपर
रिश्तेदारों ने बलात्कार किये हैं
।विधवायें है ।वेश्यायें है।अपहरण
करके बनायी भिखारिने है ।तेजाब
से जली कुरूप अंधी उपेक्षित बेबस
लङकियाँ है ।
खरीदी बेची जाती बीबी हैं ।।
बूढ़े से ब्याह दी गयी जवानियाँ हैं
।नौकरी काम कैरियर के नाम पर
धोखे से इज्जत गंवा बैठी विवश
अनकहा सच है ।।दहेज के लिये
रोज अत्याचार ताने और बंधुआ
बेगारी करती अभागिने हैं
।शादी के नाम पर नामर्दों से
ब्याह कर चुपचाप जहर सी उमंगे
पीती प्रेम को तरसी सुहागिन
बेवायें हैं ।पति के
शराबी जुआरी वेश्यागामी होने से
जीवन के अंधेरो में डूब
गयी प्रतिभायें हैं । प्रेम के छल
पर ठुकरा दी गयी कलंकिनियाँ है
। बचपन में यौन
यातना की शिकार रहीं पति के
साथ नर्क
भोगती जली कहानियाँ है ।।
क्या ये सब

रोका जाये?????
अगर रोका जायेगा तो ।।
तथाकथित पति परमेश्वर औऱ
पिता के द्वारा कन्या दान करने
की वस्तु
रूपी कुरीतियाँ तोङनी होंगी ।।
वंश पुत्र ही चलाता है ये
अंधाविश्वास तोङना होगा ।।
किताबें किसी भी युग में
लिखीं गयी वे उनके समय की जरूरत
थी आज
नयी किताबों का लिखना जरूरी है
।।जाति विहीन समाज ।।प्रेम
विवाह का समर्थक समाज ।।
स्त्री को मातृत्व की सुरक्षा और
अधिक अधिकार देने वाला समाज

पति नही जीवनसाथी की अवधार

मर्दवादी नहीं ।
मानवतावादी समाज
तो पुरूषों के बनाये पुरूषों के लिये
पुरूषों द्वारा ।समाज का आमूल
चूल बदलाव करना ही पङेगा ।।।
हमारी सोच स्त्री को अन्याय से
मुक्ति दिलाने की है ।।
तो अन्याय करने वाला निश्चित
ही दोषी ठहराया जायेगा ।
तब??
ये सुविधा सुख में रहने
वाली मर्दों की दया कृपा पर
आश्रित ब्रेन वाश्ड भद्र महिलायें

सब पुरूष नहीं
सब पुरूष नहीं का नारा लगाके ।
चंद पुरूषों की प्रसंशा तो जीत
सकती है ।लेकिन समाज में पिस
रही बलत्कृत औरत को कोई राह
नहीं दे सकती ।।
ये हम सब जानते हैं कि सब
नहीं ।।
पर ये खुद वे भले पुरूष कहें साबित
करें कि मैं नहीं मैं नहीं मैं नहीं ।।
वरना पूछे कि क्या अपने भतीजे के
साले के फूफा के जीजा के दामाद के
बहिनोई के साथ
अपनी बेटी को भेजते डर लगता है
या नहीं ।क्या वे बीबी के साथ
बरतन माँजने कपङे धोने झाङू
लगाने पोंछा लगाने रोटी बनाने
और बीबी के पैर दाबने को तैयार
है।
सोच बदलो जमाना बदलने
का मतलब आपके अकेले
प्रेमी पति पापा या भैया का मैट
नहीं है । ये आखिरी पागल
गूँगी औऱत को रेप मारपीट औऱ
गंदी निगाहों से बचाने की जंग़ है।
सदियों का ब्रेनवाश अनुकूलन ।।।
पुरूष को डोर सौंपकर चलते रहने
की ट्रैनिंग अनुकूलीकरण
हो गया हमारी जाति का ।।।
और ठोकर खाये बिना सब सँभल
जायें ये जरूरी तो नहीं
सैकङो सालों का षडयंत्र ।।
तोङने में 100%सफलता लाने में कुछ
दशक तो लगेगे ।
संविधान बनने से क्या सब पुरूष
आजाद हो गये ।या लोकतंत्र आ
गया ये लंबी लङाई है ।बेंथम
की बेटी से आज तक जारी।
सही है ।पर सच से आँखें
फेरना बिना धूप में जले छाँव में
रहकर भट्टे पर ईँट
पाथती गर्भवती जो पाँच साल
की बेटी पर नजर रखे और मालिक
मेट मजदूर सबकी निगाहों में जल
रही का ।।सच तो मत कुचलिये
दिल से एक हाथ दुआ और समर्थन
तो उठे ही ।।
ये समर्थन बहुत बङे रक्तदान
जैसा है ।कितने सच केवल इस के
अभाव में टूट जाते हैं ।
काम वाली बाईयों के नखरों पर
व्यंग्य परोसते ।।और दुखङा रोते
लंबे नाखूनों वाले हाथ कभी ।।
कल्पना करे कि शराबी मर्द पाँच
बच्चे ।।दस घरो का बरतन
दो बार माँजने दस किलीमीटर
रोज चलना!!!!!!
लेकिन विद्यासागर
जी की कोशिशे बेकार
तो नहीं गयीँ????
जो
भी दिख रहा है वह उन बारह
प्राणियों की वजह से ही दिखा है
वरना 8साल की लङकी बीस साल
के प्रौढ़ से ब्याह दी जाती थी ।
बंगाली तब ये मानते थे
कि जो लङकी स्कूल
जायेगी विधवा हो जायेगी ।।
और वैधव्य से बङा गुनाह कुछ
नहीं था जिंदा जलाकर नारियल
मार मार कर फोङ देते थे।
हम ज़मीन पर पेट के बल रेंगते
लोगों को जब तक नहीं पहचानते
तब तक ।।।बदलाव
नहीं आयेगा ।।
आये दिन ताश पीटते जुआ खेलते
मजदूर जब औरत की मजदूरी छीन
कर कूल्हा तोङ देते हैं तो भी वे
बच्चों के लिये उठ कर फिर काम
पर लग जाती है ।
ये एक भीङ है नेता के लिये जिसे
महज़ वोट गिनने हैं ।और
प्रति वोट सौ से पाँच सौ रूपये
पाँच बोतल से दस तक देशी शराब
भेजनी है और रैली जुलूस धरना में
एक दिन की दिहाङी यानि एक
सौ बीस रूपये प्लस भोजन के पैकेट
पर हैड दो ।बाँटने हैं ।।
बाकी जो भी योजनायें इनके नाम
पर आती हैं उनमें ।
मास्टरनी जी से प्रधानिन तक के
गहने कपङे और
मशीनरी की पौ बारह होती है ।
ये मंत्री जी की सलाहकार
समिति से ।ग्राम पंचायत तक
नहर है जिसका पानी टेल तक आते
आते सूख जाता है ।।
ये औरतें पीङा की चरम सीमा तक
पाँच लङके पैदा होने तक बच्चे जनने
को मज़बूर हैं ।
ये औरतें कच्चे फर्श पर दाईयों के
हवाले होकर बच्चे जनती हैं ।
बच्चा पैदा होने के तुरंत बाद
ही काम पर जाना होता है ।
ये इमारतों ईँट भठ्टों ।
मिलों कोयला खदानों । ब्रुश
फैक्टरियों ।खेतों । सङकों ।
पुलों । औऱ घरों में हर जगह हैं ।
दस घऱों का पोंछा झाङू बरतन
माँजना करती ।
सब्जी चूङी घास बेचती ये औरतें ।
क्यों नजर में नहीँ हैं ।।
ट्रैफिक जाम पर भीख माँगती ये
औरतें ।।बारह साल से
वेश्या बना दी गयीँ ये औरतें ।
गर्भाशय खिसकने की वज़ह से
बुढ़ापे में दुरदशा भोगती है।
प्रदूषण के बीच रहते
टी बी हो जाती है ।
जवानी में पति पिता भाई
की लाठियाँ जो खायी होती हैं वे
चोटें बुढापे में दुखती हैं ।
कुपोषण और श्वेतप्रदर
जैसी हजारों बीमारियाँ हो जात

परदेशी मजदूर पति एड्स तक दे
जाता है ।
और शामली मर गयी ऊपरी हवा से

गंडे ताबीज बेटा पैदा करने और
पति की मार पीट से बचकर रहने
को ।
ये जब बङे घरों में लॉन की घास
काटने जाती है तब सुख के पल ।
जब मेमसाब के किचन में सिंक पर
बरतन धोती हैं तब सुख के पल
समझती है ।
जो उतारन है वो आने जाने में
पहनती है ।
ये 70%भारत ह

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