Thursday 28 March 2013

वो बदनसीब औरत

बाहर जली है
लकङी वो घर पिघल
रही है
वो बदनसीब औरत हर रोज
जल रही है
अर्थी को अपने काँधे लेकर
निकल रही है
पहने कफन चिता पर
वो लाश पल रही है
वो बदनसीब औरत हर रोज
जल रही है
उजङी है
जिंदगानी बिखरी है इक
कहानी
खुशियों की एक डोली
शीशे की एक गोली
बारूद के धमाके
सब ले गये उङाके
चीखों से सिसकियों से
दुनियाँ दहल रही है
वो बदनसीब औरत
हर रोज जल रही है
बाबुल की वो परी थी
भैया की फुलझरी थी
मैया की सुख पहेली
भाभी की वो सहेली
बहिना की राजदारी
किस्मत की एक मारी
कोई ना रोक पाया
मर मर के ढल रही है
वो बदनसीब औऱत
हर रोज जल रही है
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Sudha raje

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