Friday 15 March 2013

ह्रदय धधकते दावानल

1. भीतर दहका दावानल है 
ऊपर हराभरा जंगल 
दिलवाला जो भी देखा बस 
जलते देखा 
तू भी जल 
प्यास एक ही प्यास पालने 
से मरघट तक धधक रही 
प्यार इश्क़ दीवानापन 
क्यों करता पगले खुद से छल 
हर रिश्ते में 
वही पूर्णता 
खोज 
रहीं छलकीं आँखें 
टूटा दिल टूटे सपने ले 
टूटी हिम्मत अब तो चल 
दैरो-हरम दुनियाँ के मसले 
मखलूक़ाती फिक्रो-हुनर 
दर्द वही आवाज़ है दिल 
की 
लोग न बदले तु ही बदल 
चैन से 
तेरी नहीँ बनेगी फ़ितरत 
शायर वाली है 
ऊपर ऊपर हँसती 
दुनियाँ कहती रोज़ मिलेंगे 
कल 
लब पर आते आते बेबस रह 
जाते शिक़वे किस्से 
,अंदाज़े सब ग़लत लगाते 
सच रह जाता होंठ कुचल 
कौन तबाबत 
करता तेरी रोज 
कलेज़ा नोचे है 
ख़ुद ग़नीम के लश्कर में तू 
दोस्त कहाँ से करें पहल 
जो तेरे दिल में बसता है 
उसको पाना नामुमकिन 
जो तेरी हसरत में जलता 
रहता रोज हथेली मल 
बङी खुशी के इंतिज़ार 
में 
सारी सिन यूँ बीत गयी 
कितनी ही मुस्काने 
छोङी 
नादानी में सुंदर पल 
प्यासा जन्मा और 
जियेगा तङप तङप कर 
भूखा ही 
प्यास तेरी किस्मत है 
पपीहे 
स्वाति जलद क्यों माँगे 
फल 
रोज चाँद को देख 
चकोरा आँखें भर भर 
चीखेगा 
तनहाई का राही कैसे चाँद 
मिलेगा लाख मचल 
काली दुनियाँ के कुरते पर 
छींटे रंगबिरंगी हैं 
रंग दूधिये में कुछ काला 
समझ तो ले पर चुप्प टहल 
कारिस्तानी जिन जिन 
की है नहरें बाँध बनाने की 
जान लिया चुपचाप भरे 
जा रौशन 
करया villageखङी फसल 
बर्क़ चमकती सीने में 
जो कैसे लिखें कहाँ गायेँ 
कुरबानी की ईद के रिश्ते 
काट के 
अज़्हा दिल और ढल 
घबरा के मरने वाले 
भी पीछे क्या छोङ गये 
मंज़िल पर तनहा रूहें हैं 
मौत ज़िंदगी सफ़र निकल 
सुधा हमारे हाथ में रख 
कर 
सभी फ़ैसले दर्द कहे 
या तो जी ले 
अपनी खुशिया 
या फिर मेरी आग दहल 
सुधा राजे 
Joyrney by train 
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SudhaRaje 
Dta/Bjnr

2.कर न दिल की बात कोई 
भी समझ ना पायेगा 
और जो समझेगा पगले 
वो किसे समझायेगा 
हद हुयी अब तक 
नहीं तो आज ये हद तोङ दे 
टूटके रो यूँ कि देखे 
क्या बचा रह जायेगा 
ज़ाम के दो घूँट य़े दो क़श 
धुँये के क्या करें 
क्या कोई देगा दुआ 
भी जब ज़हर तू खायेगा 
इक सदी की चुप्पियाँ कैसे 
तुझे आवाज़ दे 
ग़ुमशुदा नातों को मत छू 
फिर से धोखा खायेगा 
तू जिन्हें अहबाब कहता बस 
तमाशाई हैं ये 
एक दिन तू रूठ जा फिर 
कौन कहने आयेगा 
ये हथेली पर जमी सरसों के 
पौधे चाहते 
दर्द की फसले है बंदे 
कौन ये बो पायेगा 
मत किसी को याद कर 
ना हाथ दे ना ख़त 
ही लिख 
तू ही इक फ़ानी निशानी 
क्या भला रख पायेगा 
रो सुधा इतना कि दिल 
की 
हिमनदी सैलाब हो 
या तो साकित चुप ही रह 
हर दर्द दिल सह जायेगा 
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Sudha Raje 

3. ये समंदर रेत के आगोश में
दर्द के दरिया पिये
तरसा कभी
जलजले
जलती सुनामी ग़म भँवर
बेबसी बादल हुये
बरसा कभी
हो गया खारा कि आँसू
पी गया
कई सदी का दर्द लेकर
ज़ी गया
ये समंदर आह के टापू लिये
सूखते पर्वत लिये डर
सा कभी
इस समंदर की तली में आग है
दिल में जलते गीत हैं
अनुराग
है
चाँद को छूने
को बढ़ता ज्वार है
सिर पटकती पीर बंजर
सा कभी
ये समंदर जल रहा
चिघ्घाङता
खुद हृदय ज्वालामुखी भर
फाङता
ये कलेजा चाक ले
अर्रा रहा
सूखती फसलों पे निर्झर
सा कभी
हद से ज्यादा बढ़
गयी पीङायें सब
चुभ रही दुनियावी ये
क्रीङायें सब
अपनेपन की प्यास में
जमता हुआ
ये तङपते ध्रुव शिखर भर
सा कभी
डूब गये इसमें सफ़ीने पार भी
इसमें गंज़ीने हैं जलता प्यार
भी
ये समंदर जिसमें
बरमूदा त्रिभुज
राज़ है डर है क़हर घर
सा कभी
हैं कई धारायें अंधे पर्त
हैं
ये सुधा क़िरतास राज़े
गर्त
है
लफ़्ज में कैसे भरेगा ये सदा
आबे आतश है ज़हर ज़र
सा कभी
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Sudha Raje
Dta†Bjnr

4. श्रवणमेघ मधुमास फाल्गुन
कैसे आ गये??*
पी बसंत परदेश देवरा
मन बहका गये*
झरी मंजरी जरी कनक
क्यों राई फूल गयी*
जीजी आगें
जिज्जा की रस बात कूल
गयी*
हरी भरी चूनरिया ओढ़ै
पीरी धरती
जैसें नयी दुलहनियाँ दरपन
रोज सँवरती
कोयल कूके बाग आम
की कच्ची कैरी
ग्राम बालिका
चटकी चोरी देखें बैरी
इमली की खट्टी चटनी
बेझर की रोटी
ससुरा रॅग लये केश हुलस
रयीँ सासू मोटी
ईख मधुप मधुमाख मधूकन टपके
महुऐ
देख परायी नार ललच मन
लपके रङुये
ढोलक आधी रात
बजी आँगन दे ताली
गौने वाली बहू जेठ
को गाबै गाली
सजी रोज बारात रतजगे
करें चिरैयाँ
बूढ़ी दादी हुलस नाच रईँ
नातिन गुईयाँ
तालन फूले फूल पात तरूवर के
झर गये
भारी हो गये पाँव बहू के
रूप निखर गये
हो रयी विदा शीत कंबल
सब धरे रजाई
नये ब्याह की अखर
लिवाने
आ गये भाई
ऋतु भर लगी सुहावन
अरसी काटन लागे
भयें लरकौरी नार
पिया अब डाँटन लागे
मीन मराली तीतर
सुखी सुआ पिक मैना
आये कमाई ले ले सैयाँ छलके
नैना
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Sudha Raje
Dta★Bjnr


5. जाने किससे मिलने आतीं '
सर्द हवायें रात गये
बस्ती से आतीं हैं सिसकती
दर्द कराहें रात गये
दूर पहाङों के दामन में
छिपकर सूरज रोता है
वादी में जलतीं जब
दहशतग़र्द निग़ाहें रात गये
चाँद को लिख्खे चिट्ठी
ठंडी झील बरफ के
शोलों से
ख़ामोशी से कोहरे की
फैली जब बाँहे रात गये
परबत के नीचे तराई में
हरियाली की चादर पर
फूलों की कलियों की गूँजी
गुमसुम आहें रात गये
कितने आदमखोर मुसाफिर
रस्ते से गुजरे होंगे
मंज़िल तक जाने से डर गयीं
लंबी राहें रात गये
पेङ तबस्सुम नोंच के खा गये
नाजुक नन्ही बेलों के
धरती रोती शबनम भरके
मौत की चाहें रात गये
प्यार वफ़ा के गाँव में
अमराई
पर लटकी लाश मिली
सुधा" मुहब्बत छोङ के चल
दी
पीपल छाँहे रात गये
©®¶©®¶SudhaRaje



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