Wednesday 28 January 2015

सुधा राजे लघु लेख :- छोटी सी बात।

साधारण सी बात तक स्वयं को पता ही नहीं और चल पङे दूसरों, इलज़ाम धरने!!!!!
उसकी आस्था निष्ठा और वफादारी पर मजहबी रंग चढ़ाने????
यह सब प्राथमिक पाठशाला में ही सिखा दिया जाता है कि जब राष्ट्रीय ध्वज
फहराया जाता है तब, सारी टीम चुपचाप सावधान बिना हिले डुले खङी रहती है,
केवल कप्तान ही सेल्यूट की मुद्रा में ध्वज को सलामी देता है ।राष्ट्रीय
सेवा योजना एन एस एस की चीफ टीम मार्शल रहने और लोकप्रशासन तथा राजनीति
से पोस्ट ग्रेजुएट और लॉ ग्रेजुएट ही नही बरसों से भारत को देखने समझने
पूरा संविधान पढ़ने कंठस्थ करने से भी यह पता है कि,
,,, पंद्रह अगस्त को स्वतंत्रता दिवस होता है और उस दिन लोकनायक के रूप
में ध्वज की सलामी प्रधानमंत्री देता है परेड की सलामी भी प्रधानमंत्री
ही लेता है ।
किन्तु छब्बीस जनवरी को भारत का संविधान लागू हुआ और प्रशासन कार्यकारिणी
का प्रधान और देश के प्रथम नागरिक और तीनों सेनाओं का अध्यक्ष होने के
नाते ""भारत संघ राज्य गणतंत्र ""का राष्ट्रपति ही तीनों सेनाओं और
सशस्त्र बलों की परेड की सलामी लेता है तथा वही ध्वज रूप में देश को
सलामी देता है, '
बाकी सब सावधान की मुद्रा में ही खङे रहते है ।
यानि केवल यूनिफॉर्म में ही रहने वाली टीम सावधान में खङी रहकर अडिग अचल
रहती है और, राष्ट्रपति तथा प्रत्येक टीम का कप्तान ही सलामी का सेल्यूट
बनाता है ।
चूँकि वर्तमान प्रधानमंत्री संघ में अनुशासन के दौरान "नित्य ध्वज वंदन
करते रहते होंगे जहाँ रोज सुबह ध्वज को ही गुरु मानकर वंदन किया जाता है

किंतु एक देश एक भारत के एकमात्र प्रतीक ""राष्ट्रपति ही नायक होता है
छब्बीस जनवरी के गणतंत्र दिवस का ।
मतलब हम भारत के लोग आजाद जब हुये वह स्वतंत्रता दिवस हुआ और हमने नायक
चुना जिसे वह बहुमत दल का हमारा प्रतिनिधि 'स्वतंत्रता दिवस यानि पंद्रह
अगस्त को देश का ज़श्न मनाता है आजादी का ।और
हम भारत के लोगों ने जब अपने चुने हुये प्रतिनिधियों के माध्यम से जब
पूरी शासन प्रशासन व्यवस्था चुन ली और राष्ट्रपति राज्यपाल कलेक्टर
नगरपालिका प्रशासक ग्राम सेक्रेटरी तक जब हमारा पूरा सशक्त ढाँचा बन गया
तब ',सारी कार्यकारिणी ''माननीय महामहिम राष्ट्रपति जी के अधीन होती है
और छब्बीस जनवरी को गणतंत्र दिवस पर हम लोग, 'अपने देश के मानव रूप
प्रतीक संस्था को खङा करते हैं तब राष्ट्रपति मतलब पूरा भारत होता है और
तब तो प्रधानमंत्री को भी सावधान की मुद्रा में ही चुपचाप अचल अडिग खङे
होना चाहिये हर देशभक्त नागरिक की तरह जैसे वह घर में सब काम काज छोङकर
देश का राष्ट्रगीत राष्ट्रगान कानों में पङते ही उठकर सावधान में खङा हो
जाता है पूरे जोश और आत्मा के साथ ।

आपको याद होतो राष्ट्रपति बिल क्लिन्टन जब संसद के संयुक्त सदन में आये
और राष्ट्रीत बजाया गया तो, अमेरिकी परंपरा के तहत बिल क्लिंटन ''दिल पर
हाथ रखकर खङे थे "
जबकि पूरे सांसद मंत्रीगण सावधान में ।
ऐसे पत्रकारों को आदरणीय उपराष्ट्रपति जी से माफी माँगनी चाहिये और
स्पेशल प्रोग्राम चलाकर लोगों को गलत दिशा में सोचने की ओर प्रेरित करने
के लिये खबर पर खंडन करना चाहिये ।
देश सबका है सब देश के हैं जो भी भारत का नादरिक है और भारतीय नागरिक की
संतान या जीवनसाथी है वह भारतीय है मतलब नहीं कि उसका मजहब क्या है और
क्या है भाषा या भेष या लिंग जाति या रंग रूप वह भारतीय है और ""भारतीय
राष्ट्रगीत बजाने पर उसे सावधान खङे होकर अचल रहकर 'देश को नमन करना
चाहिये हवा पानी पोषण और सुरक्षा सबकी कृतज्ञता के लिये
जयहिन्द जयभारत
©®सुधा राजे


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