तम बिगङे मौसम लेकर

Sudha Raje
श्रमेव जयते ।
रचयिता =सुधा राजे ।
दतिया म.प्र.-बिजनौर उ.प्र.
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मिट्टी धूल पसीने मैले कपङें
के परचम लेकर।

निकलो लङते भात पे भूखे
ये जकङे दमखम लेकर।

दो आवाज़
गली खेतों हाटों बस्ती सङकों ढाबों।

निकलों स्याह
सुरंगों पाटों भठ्टी चक्कों मेहराबों।

नारा दो हम एक हैं
मेहनतकश घायल मरहम लेकर।

निकलो लङते भात पे भूखे ये
जकङे दमख़म लेकर।
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करो बात क्या झूठ है सच
क्या
पूछो चीखो चिघ्घाङो।

पकङो हाथ हाथ में दे दे
चालाकी सबकी ताङो।

हुंकारो सच्चाई जोर से ग़म
पकङे सरगम लेकर।

निकलो लङते भात पे भूखे
अब जकङे दमख़म लेकर
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बैठो मत डरकर वरना फिर सुबह कहेगी क्या खायें

पूँजी भूँजेगी मूँजी सा इंक़लाब चल उठ गायें

काली रात भूख बीमारी तम बिगङे मौसम लेकर

निकलो लङते भात पे भूखे अब जकङ दमखम लेकर
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तोङफोङ गुंडागीरी ये आगजनी पत्थर छोङो

चक्का छैनी हल मिलकर बाज़ारवाद की दमतोङो

हरे सलेटी रंग एक हो कलम फावङे नम लेकर

निकलो लङ़ते भात पे भूखे अब जकङे दमख़म लेकर
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पूछो मेरी रोटी चावल नमक प्याज मिरची का क्या

छानी छप्पर दवा पढ़ाई न्याय वस्त्र अरजी का क्या???

ये सफेद रंगीन महफ़िलें
ज़ाम जश्न हमदम लेकर

निकलो लङते भात पे भूखे अब जकङे दमखम लेकर
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दिल्ली हो या राजभवन क्या धूप गरीबी दर्द सहा???

सामाजिक हो न्याय कहा था संविधान ने कहाँ रहा???

रिश्वत कोढ़ी सरकारी कारिंदें दम पर दम लेकर
निकलो भूखे ------------
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कितना सूद मुनाफा कितनी मजदूरी क्या भाव फसल

जान आन कुरबान करे जो मरे बुढ़ापे बिन तिल तिल

अय्याशी कुछ कम तो हो अब लङो "सुधा" संयम लेकर
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sudha Raje
Dta★Bjnr
7669489600

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