व्यंग कविता ---लानत्त

Sudha Raje
औरतें यूँ सिर उठायें बोल दें !!!! लानत्त है
खुद रचें नयी संहिता पर खोल दें लानत्त
है
कह रहीँ है बेटियाँ अब
दफ्तरों को जायेगीँ
मर्द घेरें घर वो टालमटोल दें लानत्त है
घूँघटा कैसे उठेगा?? हौसले ही पस्त हैं
है दुल्हन पतलून में औऱ् बोल दें लानत्त
है
ट्रैक्टर पर गुलबती ने
ढो लिया खलिहान भी
एक विधवा जेठ को यूँ झोल दे लानत्त है
आज लङका देख के बबली ने ना कह
दी सुनो
शक्ल बंदर सी दहेजू मोल दें लानत्त है
रामधन की छोकरी चढ़
गयी कचहरी ब्याह को
वो भी दूजी जात का वर ढोल दे
लानत्त
है
औऱ तो सुनिये मिसिर
पुत्री ने काँधा दी अगन
ताऊ पट्टीदार छोङे पोल दे लानत्त है
मार के भुरकुस किये जाता था अब थाने में
है
कल्लुआ ज़ोरू को माफी
घोल दे लानत्त है
चल रही बंदूक भी गाङी चला कॉलेज
भी
नयी बहू शौहर रसोई तोल दे लानत्त है
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Sudha Raje
Feb 20

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