राजेन्द्र यादव के अमूल्य शब्द। सुधा राजे की डायरी से एक साक्षात्कार के दौरान।
1. मेघदूत अकबरनामा रघुवंश
राजतरंगिणी आदि व्यवस्थायें मात्र
अपनी कल्पनाशील दृष्टि से
गढ़ी हुयी या राजाओं की प्रसंशा पाने के
लिये या केवल
सुविधाभोगियों द्वारा गढ़ी हुयी हो स
# राजेन्द्रयादव
एक मुलाकात सुधाराजे की डायरी से
नोट्स 1994
2. मेरे विचार से जब नवरस गढ़े गये तब
श्रंगार को रसराज मानने के पीछे यह
भी तथ्य हो सकता है कि स्त्री के
प्रति राजाओं
या कवियों का वासनात्मक लगाव
भी अधिक रहा हो #राजेन्द्रयादव एक
मुलाकात सुधा राजे की डायरी से 1994
3. उपन्यास
की अवधारणा पश्चिमी धारणा है। और
सारी औपन्यासिक कसौटियाँ पश्चिमी हैं
।अस्तु भारतीय उपन्यास कैशोर्य
अवस्था में हैं ।हमारे लेखक ज़िंदगी भर
लिखते रहेगे किंतु हमारी तुलना सदैव
पश्चिमी उपन्यासों से की जाती रहेगी।
हमारे उपन्यासों की ओरिजनल
कॉपी यूरोप में रखी हुयी है ।
अतः उपन्यास का विकास
हो ही नहीं सकता #राजेन्द्रयादव एक
मुलाकात सुधा राजे की डायरी 1994
4. "Devotion is that value which
clouds your vision."
- #RajendraYadav
5. उपन्यास लोकतंत्र की गाथा है और
महाकाव्य सामंतवाद की गाथा है।जब
हम अपनी जङों की खोज करते हैं
तो मात्र सामंतवाद की ओर लौटते हैं ।
# राजेन्द्रयादव
एक मुलाकात
सुधाराजे की डायरी
1994
6. हमारी आईडियल
स्त्री महिला लेखिकाओं ने छीन लीं और
स्वयं कोई स्त्री क्रियेट नहीं कर सकीं ।
# राजेन्द्रयादव
एक मुलाकात
सुधा राजे की डायरी के नोट्स 1994
7. श्रद्धा कोई चीज नहीं होती है
आस्था होती है ।
श्रद्धा एक घातक हथियार है। कृष्ण एक
सफल वकील की तरह थे । गीता
रण की प्रेरणा का साहित्य!!! श्रद्धा के
ढकोसले ने
शांति का बनाया!!!! कैसा आश्चर्य है !!!!!
जो हर पल कहता है लङ लङ लङ । उससे
लोगों को शांति मिलती है । ????
एक मुलाकात # राजेन्द्रयादव से
सुधा राजे की डायरी के नोट्स 1994
8. लिखा हुआ इतिहास या प्रयास से
उत्पन्न किया गया साक्ष्य सदैव
सही हो यह आवश्यक नहीं है ।यह
तो मात्र् एक
शक्ति शाली व्यक्ति की अपनी दृष्टि मस
इंदिराजी का कालपात्र गाढ़ देना। #
राजेन्द्रयादव
एक मुलाकात सुधा राजे की डायरी
9. लिखा हुआ इतिहास या प्रयास से
उत्पन्न किया गया साक्ष्य सदैव
सही हो यह आवश्यक नहीं है ।यह
तो मात्र् एक
शक्ति शाली व्यक्ति की अपनी दृष्टि मस
इंदिराजी का कालपात्र गाढ़ देना। #
राजेन्द्रयादव
एक मुलाकात सुधा राजे की डायरी
10. सोशल गिल्ट लोग ही आत्मशांति तलाशते
हैं ।ये आत्मशांति बङी खतरनाक वस्तु है
इसे तलाशने वाले लोग प्रायः स्व में
केन्द्रित होकर घनिष्ठ से घनिष्ठ के
प्रति गैरजिम्मेदार हो जाने
की प्रेरणा देते है।
# राजेन्द्रयादव
एक मुलाकात मेरे नोट्स 1994
11. मेरे विचार से हमारे विकास की सबसे
बङी बाधा ये ईश्वर नाम की संकल्पना है
।
# राजेन्द्रयादव
से अनौपचारिक बातें नोट्स मेरे
12. ज्ञान का विकास सिर्फ उन्होंने
किया है जिन्होने अननोन को जानने
का प्रयास किया।
श्रद्धा हमें मुक्ति मोक्ष संतोष देती है
किंतु ज्ञान नहीं ।
इसीलिये श्रद्धा पर जीविका चलाने
वाले प्रश्न को नकारते है
।# राजेन्द्रयादव
13. अंधश्रद्धा के स्थान पर जब तक घोर
अश्रद्धा न हो तब तक ज्ञान का विकास
नहीं हो सकता यह एज ऑफ फेथ से एज ऑफ
रीजन की यात्रा है "" राजेन्द्रयादव
मेरे नोट्स और युगपीङा भोपाल
को भेजी रिपोर्ट स
14. विवेकी व्यक्ति के लिये शरीर का कुछ
भी पवित्र या अपवित्र नहीं होता बस
महत्तवपूर्ण होता है ।
"" # राजेन्द्रयादव
15. हमारे विकास
हमारी सभ्यता का इतिहास ईश्वर
की क्षमताओं को कम करने ईश्वर
की शक्तियों को छीनते चले जाने
का इतिहास है जब हम आस्था से प्रश्न
करते हैं तो ईश्वर को चुनौती देते हैं ।""
राजेन्द्र यादव
16-10-1994
दतिया
सेमिनार में
एक मुलाकात सुधाराजे की डायरी
©®sudha raje
all rights resesrved reproduction or publication of the whole document
or part without authorized permission is illegal and has serious
repercussion
राजतरंगिणी आदि व्यवस्थायें मात्र
अपनी कल्पनाशील दृष्टि से
गढ़ी हुयी या राजाओं की प्रसंशा पाने के
लिये या केवल
सुविधाभोगियों द्वारा गढ़ी हुयी हो स
# राजेन्द्रयादव
एक मुलाकात सुधाराजे की डायरी से
नोट्स 1994
2. मेरे विचार से जब नवरस गढ़े गये तब
श्रंगार को रसराज मानने के पीछे यह
भी तथ्य हो सकता है कि स्त्री के
प्रति राजाओं
या कवियों का वासनात्मक लगाव
भी अधिक रहा हो #राजेन्द्रयादव एक
मुलाकात सुधा राजे की डायरी से 1994
3. उपन्यास
की अवधारणा पश्चिमी धारणा है। और
सारी औपन्यासिक कसौटियाँ पश्चिमी हैं
।अस्तु भारतीय उपन्यास कैशोर्य
अवस्था में हैं ।हमारे लेखक ज़िंदगी भर
लिखते रहेगे किंतु हमारी तुलना सदैव
पश्चिमी उपन्यासों से की जाती रहेगी।
हमारे उपन्यासों की ओरिजनल
कॉपी यूरोप में रखी हुयी है ।
अतः उपन्यास का विकास
हो ही नहीं सकता #राजेन्द्रयादव एक
मुलाकात सुधा राजे की डायरी 1994
4. "Devotion is that value which
clouds your vision."
- #RajendraYadav
5. उपन्यास लोकतंत्र की गाथा है और
महाकाव्य सामंतवाद की गाथा है।जब
हम अपनी जङों की खोज करते हैं
तो मात्र सामंतवाद की ओर लौटते हैं ।
# राजेन्द्रयादव
एक मुलाकात
सुधाराजे की डायरी
1994
6. हमारी आईडियल
स्त्री महिला लेखिकाओं ने छीन लीं और
स्वयं कोई स्त्री क्रियेट नहीं कर सकीं ।
# राजेन्द्रयादव
एक मुलाकात
सुधा राजे की डायरी के नोट्स 1994
7. श्रद्धा कोई चीज नहीं होती है
आस्था होती है ।
श्रद्धा एक घातक हथियार है। कृष्ण एक
सफल वकील की तरह थे । गीता
रण की प्रेरणा का साहित्य!!! श्रद्धा के
ढकोसले ने
शांति का बनाया!!!! कैसा आश्चर्य है !!!!!
जो हर पल कहता है लङ लङ लङ । उससे
लोगों को शांति मिलती है । ????
एक मुलाकात # राजेन्द्रयादव से
सुधा राजे की डायरी के नोट्स 1994
8. लिखा हुआ इतिहास या प्रयास से
उत्पन्न किया गया साक्ष्य सदैव
सही हो यह आवश्यक नहीं है ।यह
तो मात्र् एक
शक्ति शाली व्यक्ति की अपनी दृष्टि मस
इंदिराजी का कालपात्र गाढ़ देना। #
राजेन्द्रयादव
एक मुलाकात सुधा राजे की डायरी
9. लिखा हुआ इतिहास या प्रयास से
उत्पन्न किया गया साक्ष्य सदैव
सही हो यह आवश्यक नहीं है ।यह
तो मात्र् एक
शक्ति शाली व्यक्ति की अपनी दृष्टि मस
इंदिराजी का कालपात्र गाढ़ देना। #
राजेन्द्रयादव
एक मुलाकात सुधा राजे की डायरी
10. सोशल गिल्ट लोग ही आत्मशांति तलाशते
हैं ।ये आत्मशांति बङी खतरनाक वस्तु है
इसे तलाशने वाले लोग प्रायः स्व में
केन्द्रित होकर घनिष्ठ से घनिष्ठ के
प्रति गैरजिम्मेदार हो जाने
की प्रेरणा देते है।
# राजेन्द्रयादव
एक मुलाकात मेरे नोट्स 1994
11. मेरे विचार से हमारे विकास की सबसे
बङी बाधा ये ईश्वर नाम की संकल्पना है
।
# राजेन्द्रयादव
से अनौपचारिक बातें नोट्स मेरे
12. ज्ञान का विकास सिर्फ उन्होंने
किया है जिन्होने अननोन को जानने
का प्रयास किया।
श्रद्धा हमें मुक्ति मोक्ष संतोष देती है
किंतु ज्ञान नहीं ।
इसीलिये श्रद्धा पर जीविका चलाने
वाले प्रश्न को नकारते है
।# राजेन्द्रयादव
13. अंधश्रद्धा के स्थान पर जब तक घोर
अश्रद्धा न हो तब तक ज्ञान का विकास
नहीं हो सकता यह एज ऑफ फेथ से एज ऑफ
रीजन की यात्रा है "" राजेन्द्रयादव
मेरे नोट्स और युगपीङा भोपाल
को भेजी रिपोर्ट स
14. विवेकी व्यक्ति के लिये शरीर का कुछ
भी पवित्र या अपवित्र नहीं होता बस
महत्तवपूर्ण होता है ।
"" # राजेन्द्रयादव
15. हमारे विकास
हमारी सभ्यता का इतिहास ईश्वर
की क्षमताओं को कम करने ईश्वर
की शक्तियों को छीनते चले जाने
का इतिहास है जब हम आस्था से प्रश्न
करते हैं तो ईश्वर को चुनौती देते हैं ।""
राजेन्द्र यादव
16-10-1994
दतिया
सेमिनार में
एक मुलाकात सुधाराजे की डायरी
©®sudha raje
all rights resesrved reproduction or publication of the whole document
or part without authorized permission is illegal and has serious
repercussion
Comments
Post a Comment