माँ हो तुम

Sudha Raje
माँ हो तुम!!!!
और माँ ही रहना ।
तुम्हारी सृष्टि का मूल कारण है ।
माँ और माँस भर बनने के बीच का एक
पतला सा अंतर ही तुम्हें ।
तेज से तज
बना देता है ।
यह भार भी है और प्रकृति का आभार
भी ।
संपूर्ण जङ चेतन कहे अनकहे
अपनी अपनी जननी का ऋणी है हर जीव

माँ हो तुम तब भी जब माँ की कोख में
हो।
माँ हो तुम जब माँ की गोद में हो ।
माँ हो तुम जब तुम शिक्षा प्रशिक्षण और
संयम की चरम पराकाष्ठा के परीक्षण से
गुजर रही हो ।
माँ हो तुम तब भी जब दैहिक विकृति ने
माँ बनने का हक़ छीन लिया और प्रजनन
की शक्ति नहीं रही तब भी ।
माँ हो तुम तब भी जब प्रेम के उद्दाम
ज्वार में अपना अस्तित्व बिसर गयी तब
भी ।
ये सारा तिलिस्म
ही सृष्टि को पुनर्जीवन पुनर्नवीनीकरण
करते रहे जाने की ही निरंतरता का व्यूह
है।
माँ तुम ही रहोगी
तब भी जब तुम निर्णय कर
लोगी किसी को भी जन्म न देने का तब
भी ।
तुम जिस जिस दिन ये माँ होना भूल
जाओगी सदा को ।
तुम नष्ट हो जाओगी ।
क्योंकि
धरती नदी स्त्री और प्रकृति
कभी लेती नहीं देना ही धर्म है
उनका धारण करती है वह दाता होने
का शाश्वत अविरल प्रवाह।
जब जब कोई भूलता है
तुम्हारा माँ होना ।
वह
कृतघ्न नष्ट हो जाता है ।
पिता के लिये पुत्री माँ है
भाई के लिये भगिनी माँ है
देवर के लिये भाभी माँ है
माँ है पौत्री दादा के लिये
और दोहित्री नाना के लिये
माँ है भाँजी मामा के लिये
और भतीजी काका के लिये माँ है ।
पत्नी है माँ क्योंकि वह देती पुरुष
को पुनर्जन्म और पुत्री के रूप में
माँ का नवीन विग्रह।
पत्नी की बहिन भी माँ है क्योंकि वह
पुरुष के बच्चों की "माँ सी" है।
जिसे जिसे याद रहा वह वह महान
युगप्रवर्तक बना।
ईसा
बुद्ध
विवेकानंद
दयानंद
रविन्द्रनाथ
गाँधी।
भगतसिंह
लाल बाल पाल
कबीर
सूर
रैदास
वाल्मीकि
जो भूला कि स्त्री माँ है
वह वह
कंस रावण दुर्योधन दुशासन बालि ।
रक्तबीज
महिष
जो भी भूला स्त्री का माँ होना
प्रकृति नदी पृथ्वी स्त्री और ब्रह्माण्ड
मातृहंता को कभी क्षमा नहीं कर सकते ।
क्षमा नहीं मिलेगी कभी पृथ्वी को नदी
वह माँ होना अस्वीकृत करके
अपना क्षीर नीर द्रुम फल नष्ट करने
लगेगी
यह
सारा ब्रह्माण्ड जिस नियम से बँधा चल
रहा है वह है प्रेम मातृत्व पोषण और
त्याग करने दुःख सहने
की तुम्हारी क्षमता पर
क्या तुम समझती हो???
केवल उत्तेजना की भौंडी मूर्ति का मांस
भर माप नहीं हो तुम ।
???©®™Sudha Raje
सुधा राजे
14 minutes ago

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