आपदा और आम आदमी का प्रबंधन बनाम सरकारी अमला

Sudha Raje with Om Thanvi
21--06--2013//3:41pm---
^^^^^^^लेख***कब तक
अनदेखी धमनियों की माँसपेशियों की **खं
प्रलय एक चेतावनी।
*****★★****★******((सुधा राजे))
—----
बाढ़ सूखा भूकंप बादल फटना भूस्खलन
अग्निकाण्ड तङित्पात् और
सुनामी आदि का होना बे वज़ह
कभी नहीं होता । कार्य कारण संबंध
की तरह प्रत्येक दुर्घटना के पीछे एक
बङा लंबा सिलसिला मनुष्य के लालच और
ग़लतियों का चला आ रहा है ।
विज्ञान इतनी उन्नति कर चुका है
कि वह इन सब विपदाओं
की भविष्यवाणी पहले ही कर सकता है
और करता भी रहता है । स्वार्थवश
ऐसी चेतावनियों की अनदेखी की जाती है

लेकिन ये भविष्यवाणियाँ तभी काम की हैं
जब इनपर तत्परता से एक्शन लिया जाये
और ऐसा एक्शन लेने को चौकस और तैयार
तंत्र सतत अभ्यास करता रहे ।
पिछली बिजनौर बाढ़ में गाँव डूबने
का कारण ये था कि पिछले पाँच सालों से
हरेवली डैम के फाटक कभी सूखी नहर पर
भी खोलकर ग्रीस और पेंट तक नहीं किये
गये थे । जब फाटक नहीं खुला तो गेट मैन
गाँव छोङकर भाग गया और
आला अधिकारियों ने क्रेन से फाटक
खिंचवाये तो टूट गया फाटक और बे जरूरत
बे इंतिहा तबाही पानी ने मचा दी ।
विश्व के विविध वैज्ञानिक
संगठनों रिसर्च सेन्टर्स ने धरती के
विभिन्न पारिस्थितिक
तंत्रों ज्वाला मुखी सुनामी भूकंप
उल्कापात अतिवृष्टि आँधी हरीकेन बवंडर
और भूस्खलन तक के क्षेत्र धरती के
मानचित्र पर चिह्नित करके । संबंधित
सरकारों पर्यावरण और पर्यटन और
पारिस्थितिक तंत्र विभागो मौसम
विभागों को सौंप रखीं हैं । समय समय
पर ये सूचनाये आज के तीव्र सेटेलाईट युग
में अपडेट भी जायी जातीं रहती है ।
देश भले ही अलग अलग राजनैतिक
इकाईयाँ हों लेकिन कागज के नक्शे पर
नहीं पृथ्वी । वह एक
जीती जागती गतिशील ब्रह्माण्वीय
इकाई है । भूमि के एक हिस्से
का परिवर्तन परोक्ष या प्रत्यक्ष पूरे
धरती ग्लोब पर प्रभाव डालता है । जैसे
ध्रुवीय हवायें और अल्ट्रवॉयलेट किरणें ।
जहाँ तक भारत का परिप्रेक्ष्य है ।
नदियाँ भारत रूपी देह की धमनियाँ और
नहरें शिरायें हैं जो हिमालय रूपी हृदय से
समुद्र रूपी गुर्दों तक निर्बाध
बहती रहें इसी में राष्ट्र रूपी देह
का परिसंचरण तंत्र सही काम करता रह
सकता है । पहाङ पर्वत गिरि भूधर इस
राष्ट्र रूपी देह की अस्थियाँ और कंकाल
तंत्र हैं । मिट्टी माँस और पेङ व्वचा हैं ।
घास रोम कूप हैं तो खनिज विविध
पुष्टिवर्धक संकलन । हिमालय
ही मस्तिष्क है निःसंदेह । और
कृषि मैदान वक्ष और उदर है । पठार
भुजदंड हैं और तट पाँव पंजे । द्वीप
अंगुलियाँ हैं ।
हिमाचल प्रदेश जम्मू कश्मीर उत्तराखंड
पश्चिमी उत्तर प्रदेश हरियाणा पंजाब
का पूर्वी भाग और सात
बहिनों का राज्य आसाम मेघालय मणिपुर
त्रिपुरा सिक्किम अरूणाचल प्रदेश तक
का क्षेत्र । कच्चे नरम गोल बेडोल भुरभुरे
पत्थरों के छोटे बङे बोल्डरों से बने
विश्रंखलित पहाङों से निर्मित है इनमें
रेत कंकङ मिट्टी का मलबा हिमालय के
अपरदन विखंडन क्षरण और जलप्लावन के
संयोग से किसी परमल मक्के या बूँदी के
लड्डू की तरह गठित भू संरचना है ।
यहाँ पक्के शैल नहीं है । ना ही पठार हैं
। मिट्टी जमकर पत्थर और पत्थर टूटकर
मिट्टी बनते बिगङते रहते हैं ।
हिमालय से निकलने वाली सब
नदियाँ जो भारत से होकर भूटान
म्यनमार नेपाल चीन बांगलादेश तक
बहतीं हैं । वर्षा काल में जब उफनती हैं
तो पहाङ के पानी की ही वजह से जो हर
तरफ से बह कर इन
नदियों नालों झरनों और झीलों से होकर
बङी नदियों तक बहता चला आता है ।
इस समय तङित्पात बादल फटने और
अतिवृष्टि से पहाङ भूस्खलन से गुजरते हैं ।
नये झरने और नदी धारायें बन जाते हैं ।
नदी वर्षा के उपरान्त जगह कई बाद
बदल लेती है । ये कटान वहाँ भयंकर रूप से
दिखता है जहाँ पहाङ खत्म होते हैं और
मिट्टी का डेल्टा पंक और
जमी हुयी भूमि जलोढ़ क्षेत्र
को नदी कगार बनाकर काट डालती है ।
वनस्पति इस पर लेप का काम करती है ।
घास फूस कुश और
छोटी झाङियाँ जहाँ मिट्टी से काई और
गोंद का काम लेकर पत्थरों को लड्डू
की तरह आपस में बाँधते हैं बङे पेङ बादल
और नदी के वेग को धीमा कर डालते हैं ।
और इसतरह सदियों से जमते रहते
पहाङों पर हरियाली का कवच चढ़ा रह
कर पहाङ के कंकङ पत्थरों को बिखरने से
रोके रखता है ।
अफ़सोस की बात ये है कि ये सब समझते हुये
भी । नौकरशाह नेता प्रशासक ठेकेदार भू
माफिया टिम्बर माफिया ट्रान्पोर्ट
माफिया । ट्रैवल एंड टूरिज्म
माफिया धर्म के ठेकेदार और अय्याशी के
शौकीन धनिक लोग ।
सारे मानको की जानबूझकर अवहेलना
करते हुये जब बहुमंजिले भवन पापङ
सी पतली दीवारें बिना मजबूत
इंफ्रास्ट्रक्चर के मिलावटी रेत सीमेन्ट
और घटिया निर्माण सामग्री से
रातदिन एक करके पहाङ को खोद डालते
हुये नदियों के किनारे खङे करते चले जाते
हैं तो ।सारा बँधा हुआ पहाङ हिल
जाता है । भीतर ही भीतर खिसकन शुरू
हो जाती है ।
नदियों पर बाँध जब बनाये जाते हैं
तो पूरे क्षेत्र में पहाङ की दरारों से
पानी रिसता रिसता पूरे इलाके
को नमी से भर देता है ।
यही कारण है कि उत्तर काशी से
बिजनौर तक मकानों में भयंकर शीलन
रहती है ।
नदियों पर अत्याचार ये होता है कि हर
साल मार्च से जुलाई तक जब पहाङ
का बारिश में नहाने और गंगा बादल
पहाङ के नृत्य का उत्सव यौवन पर
रहता है तभी । मैदानों से तफरीह के
शौकीन छुट्टी मनाने वाले हनीमून मनाने
पिकनिक मनाने और इश्क़ लङाने वाले
जोङो के अलावा एडवेंचर और तीर्थ
यात्रा का एक पंथ चार काज वाले
पर्यटन पर आ जाते हैं ।
दुधमुँहे बच्चे अशक्त जर्जर बूढे । मोटे
भारी भरकम लोग :और तब पहाङ पर एक
से दस लाख यात्री का धमकता यातायात
पहाङ की शांति को भंग कर देता है ।
वाहनों लाउडस्पीकरों म्यूजिक सिस्टम
टीवी और बातों का शोर पहाङ में
कितना गूँजता है इसे सिर्फ
मूलनिवासी ही महसूस कर सकता है ।
शोर क्षरण बढ़ाता है ।
इन यात्रियों के खाने रूकने और ढोने में
सहायक कार्मिक और सुरक्षा तंत्र
का भी उतना ही भार बढ़ जाता है ।
सीजन में पश्चिमी यू पी का बहुत
बङा हिस्सा पहाङों पर रोजी कमाने
चल पङता है ।
इनके रुकने खाने और घूमने की वजह से अवैध
टेम्परेरी निर्माण और ट्रैकिंग होती है
। पहाङ खोदना और
लकङी काटना जारी रहता है ।
नौकरशाह भ्रष्ट कमीशन खोर
नेता मिलकर घटिया सङकें पुल बनवाते
रहते हैं ।
जब ये यात्री लौटते है तो पीछे छोङ
जाते हैं कचरे का अंबार । मल और
प्लास्टिक पॉलिथीन पाउच सिरिंज
गुटखा और सिरिंजें लेटेक्स और शराब
की बोतलें दवाओं के रैपर पेस्ट क्रीम
की ट्यूबें ब्रश और टूटे जूते चप्पल और
टनों ऐसा कचरा जो खाद नहीं बनता न
गलता है । न ही बहता है ।
नदियों में पटक दिया जाता है सारा ।
पहाङ पर से बारिश में बहकर जब आता है
तो नदी को न केवल
जहरीला बनाता वरन् मार्ग भी रौंध
कर प्रवाह का मार्ग बदलने पर विवश
करता है ।
नदियाँ बाढ़ से साफ करतीं हैं स्वयम्
को । नदी में बाढ़ जरूरी है ।
लेकिन नदी का मार्ग मत रोको ।
जगह जगह
फैक्टरियाँ अलकनंदा भागीरथी रामगंगा
गंगा बाणगंगा मालन पिंडर सरयू
यमुना खो पीली तक ये
रिफाईनरियों का मैला नदियों में पटक
दिया जाता है ।
पहाङ का पानी तराई भांबर खादर
को तबाह करता है । क्योंकि ये
पानी सहारनपुर बिजनौर मुरादाबाद
पंजाब हरियाणा तक पहुँचतो बहाब
धीमा होने से खङा ही रहता है
महीनों तक खेत भर जाने से ईख और धान
की फसलें गल जातीं हैं ।
मवेशी और खेत ही रोजी का मुख्य
ज़रिया हैं ढोर मरने और खेत भरने से
बरबाद किसान मजदूर । कच्चे
घरों को भी भरभराकर गिरता बेबसी से
देखते हैं । साल भर के लिये जमा अनाज और
अगली फसल का बीज सङ गल बह जाता है
।कपङे फर्नीचर ईँधन प्राय जो कंडे उपले
होते है खत्म और अब फैक्टरियों के कब्जे के
कारण फूस भी विगत दस सालों से
नहीं मिलती ।
तो पलायन को विवश ये भाँबर तराई के
लोग अपराध और खानाबदोश
ज़िंदगी की और धकेले जाते हैं ।
नहरों बैराजों डेम और बाँझ के
पार्कों की साफ सफाई गाद और सिल्ट
साफ करने का बजट हर साल जनता के खून
की कमाई से आता है लेकिन कागज पर सब
होता है । सिंचाई कॉलोनियों के
मिलीवटी निर्माण
वाली पूरी कॉलोनी बिजनौर के
खो बैराज पर दस साल पहले बह
गयी थी नाम निशान तक नहीं ।
हजारो हैक्टेयर उपजाऊ अव्वल भूमि पर
रेत कंकङ पत्थर भर गया और दलदल बन
गये । नहरों की सिल्ट साफ न होने से हर
साल कई दरजन पशु और मानव खप कर मर
जाते हैं । और रेत खनन्
माफिया मछली पलेज और
सिघाङा आदि के लिये अवैध रूप से ये
तटपट्टियाँ लोगों को अवैध रूप से लाभ
लेकर दे दी जाती है । करोङो के बजट
मस्टर रोल में भरने के बावज़ूद आज तक
बिजनौर के खो बैराज का ना तो पुल
चौङीकरण हुआ नहीं रेलिंग सुधरी न
ही नया पुल पैदल और वन वे
की सुविधा हो सकी हर बाढ़ में चार
पाँच सो गाँव बिना बिजली के और शेष
भारत से संपर्क से कटे रहते हैं
वे जो लाभ कमाते हैं उनको पहाङ
या तराई खादर भाँबर के दर्द से कोई
वास्ता नहीं । राहत बचाव के नाम पर
किसी नदी तट के नगरपालिका में मानसून
के पहले नावें तक तैनात नहीं रहतीं ।
बाढ़ में आसपास के अपराधी गिरोह और
सक्रिय हो जाते हैं । राहत कार्यों में
नौकरशाहों की कोठियाँ महानगरों में
फटाफट खङी हो जातीं है ।
पहाङ ने अभी तो सिर्फ पीठ हिलायी है
कहीं अनदेखी की तो बिजनौर सहारनपुर
मेरठ से दिल्ली ज्यादा दूर नहीं ।
©®©सुधा राजे
All right ®
Sudha Raje

Jun 22

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