ऐसा मेरा शहर है साहिब

ऐसा मेरा शहर है।
साहिब
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रचयिता --सुधा राजे
दतिया/बिजनौर।
Sudha Raje
पूर्णतः मौलिक रचना ।
सर्वाधिकार सुरक्षित।
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आना जाना अनजाने
का केवल
एक खबर है साहब।

कौन किसी के दर्द पे
रोया ऐसा मेरा शहर है
साहब।

रोज किसी की 'चिता' से
जिनकी रोजी रोटी चलती हो।

कत्लेआम पे गिरती लाशें
त्यौहारी मंज़र है साहिब।

कल फुटपाथ बाँह में भरकर
सोता था नभ ओढ़ के जो।

वो अनाथ मंटुआ शहर
का दादा भाई क़हर है साहिब।

बस्ती में क्यों आग लगी थी
जाँच कमेटी बैठी है।

झुग्गी बस्ती पर बिल्डर
की ठेकेदार नज़र है साहिब।

कब्रिस्तान बहाना भर था
असल बात मतगणना है।

राजनीति का ठेठ पहाङा
बहुसंख्यक बंजर है साहिब।

नील लगे लकदक कुरते पर
कल तक लाल दाग भी थे।

लालढाँग बस्तर दिल्ली तक
चूङी की झर-झर है साहिब।

बहुत चीखती हुयी आवाज़ों की
मुखिया थी सुधा कभी ।

कइ बरसों से हुयी लापता
मरद हुआ बेघर है साहिब।

भुने हुये काजू पिश्ते में
मुर्गी तंदूरी चुनरी।

शपथपत्र पर दस्तखतों पे
लहू हिना खंज़र है साहिब

हामिज़ ख्याली 1'सुधा "शुरू से हब्से बेज़ा 2दरवेशी

दरहम बरहम3दश्ती 4हस्ती रहबर सी दर -दर है साहिब
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1-तेज तीखी सोच2नाज़ायज कैद3अस्तव्यस्त4-जंगली

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