सांगरूपक--: प्रीत मेरी राजमहलों की सहेली।

एक बीहङ पंथ मेरे
सँग अकेली
प्रीत
मेरी राजमहलों की सहेली
जो कभी पा दंश
रोयी बिलिबलाकर
जो कभी खा लू गिरी पथ
तिलमिलाकर
जो कभी पा छाँह
सोयी धूल मेली
प्रीत
मेरी राजमहलों की सहेली
सत्य जीवन कंटकी पथ
का जलाता
जब अकिंचन पग
बिना पदत्राण पाता
टूटती जब आश नैया प्यास
खेली
प्रीत मेरी राजमहलों की सहेली
ले गये पाथेय साहस वय लुटेरे
नेह वन यौवन हुये याचक
सवेरे
रंक होकर कंक नेही काल
खेली
प्रीत
मेरी राजमहलों की सहेली
जिंदग़ी हूँ मैं मरण
की कंदरा में
हूँ मृदुलतम नीर निर्मल
निर्झरा मैं
छल शिखर जल चेतना रसधार
ले ली
प्रीत
मेरी राजमहलों की सहेली
आ गयी लेकर वचन मम कष्ट
सहती
है अटल मन की परंतप पीर
गहती
कोमला अमला अहर्निश
आह झेली
प्रीत
मेरी राजमहलों की सहेली
चल पङी यूँ साथ मेरी बाँह
भरके
प्राण हीना प्रण
निभाती थाह धरके
एक मुट्ठी वायु पी बस
साँस ले ली
प्रीत
मेरी राजमहलों की सहेली
हो गयी अपरूप खो लावण्य
सारा
अश्रु
पी पी मुस्कराती नयनतारा
मैं न
जी पाती बिना इसके
अकेली
प्रीत
मेरी राजमहलों की सहेली
अंत ही बस आ गया इस अंध
पथ का
रोक ने युगभील
आया कालरथ का
मैं मिटी या वो रहेगी बस
पहेली
प्रीत --------
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Sudha Raje

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