भँवरी हुये सिरानी सरिता

Sudha Raje
Aug 16 ·
दिल में कुछ होठों पर कुछ है कलम लिखे कुछ
और सुधा।
जहां न हो ये हलचल इतनी चल चल चल उस
ठौर सुधा।
कल तक थी उम्मीद रोशनी की घुटनों पर
टूट गयी।
अक़्श नक़्श ज्यों रक़्श दर्द का ये है कोई
और सुधा।
किसे समझ
आयेगा वीरानों का मेला कहाँ लुटा ।
कौन सजाये नयी दुकाने रहे परायी पौर
सुधा।
बाँध लिये असबाब बचा ही क्या था बस
कुछ गीत रहे।
भँवरी हुये सिरानी सरिता
रही एक सिरमौर सुधा।
©®Sudha Raje
Dta-Bjnr

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