कोई याद आ रहा है
चाँदी की उस नदी में ,
वो बिंब चंद्रमा का ।
थे व्योम उर्वि सँग सँग
वो दिन था पूर्णिमा का ।
दो सिन्धुनील नैनों ने
मेरी ओर ताका ।।।।
थे बाहुपाश में ज्यों ।
नक्षत्र नभ के सारे ।
मंदाकिनी थी मन में ।
जिस दिन थे तुम हमारे
कोई यूँ न मन को हारे
जैसे धरा पै तारे ।।।
आकाशपुष्प संभव ।
उस दिन कहीं खिले थे ।
ज्योतिर्वलय कहीं पर ।
ब्रह्माण्ड में मिले थे ।।।।
सुरलोकचाप वर्णा
कंजों पै खग हिले थे ।
स्मित अधर किसी के।
विहँसे मुझे पुकारे ।।।।
कोई यूँ न मन को हारे ।।
जैसे धरा पै तारे ।
मंदाकिनी थी मन में
जिस दिन थे तुम हमारे ।
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SUDHA RAJE
BJNR''DTA
May 27
वो बिंब चंद्रमा का ।
थे व्योम उर्वि सँग सँग
वो दिन था पूर्णिमा का ।
दो सिन्धुनील नैनों ने
मेरी ओर ताका ।।।।
थे बाहुपाश में ज्यों ।
नक्षत्र नभ के सारे ।
मंदाकिनी थी मन में ।
जिस दिन थे तुम हमारे
कोई यूँ न मन को हारे
जैसे धरा पै तारे ।।।
आकाशपुष्प संभव ।
उस दिन कहीं खिले थे ।
ज्योतिर्वलय कहीं पर ।
ब्रह्माण्ड में मिले थे ।।।।
सुरलोकचाप वर्णा
कंजों पै खग हिले थे ।
स्मित अधर किसी के।
विहँसे मुझे पुकारे ।।।।
कोई यूँ न मन को हारे ।।
जैसे धरा पै तारे ।
मंदाकिनी थी मन में
जिस दिन थे तुम हमारे ।
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May 27
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