सुधियों के बिखरे पन्ने ::एक थी सुधा

सजना के लिये ------(सुधा राजे पुखराज सिंह)मो.76694896—9358874117/
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शादी जिद करके बिना दहेज की थी।
टीटोटेलर वर की जिद में । हालांकि अरेंज मैरिज थी परंतु इस के लिये आधा
दशक छानबीन की गई थी। राजपूताने से दूर सात सौ किलोमीटर बिजनौर ।
अनजानी बोली अनजाने रिवाज़ और अनजाने खान पान नितांत अनजानी संस्कृति
।बताने वाला कोई नहीं उपहास करने वाले सैकङों ।
महानगर से एकदम अचानक देहात के सबसे पिछङे एक कस्बे में ।

और वहाँ भी न सास ननद न देवरानी जेठानी ।न कोई सहानुभूति न अपनापन ।
एक वृद्ध ससुर जो मानसिक रोगी और एक कुटुंब जो ज़ायदाद के बँटवारे के
बाद से चिढ़ा हुआ था पति से ।

हमें बहू गृहलक्ष्मी की कहानी याद आ गयी जो बचपन में पढ़ी थी। साबित करने
की चुनौती थी कि बिना दहेज विवाह भी सफल हो सकते हैं और एक महानगर की
उच्चशिक्षित स्वावलंबी लङकी कृषक ग्रामीण परिवार को निभा सकती है ।
दो साल लगातार साफ सफाई और गृहस्थी जुटाने में हम दोनों ही अंधाधुंध लगे
रहे । हनीमून के दिन क्यारियाँ सुधारने और अधिक मेहनत करके पुराने बेढंगे
मकान के भीतर घर तराशने में लगे रहे बमुश्किल दो तीन बार ही नैहर गये और
घर की चिंता में तुरंत लौटे । जिस घर में दशकों से वृद्ध पिता और दिन भर
बाहर रहकर देर रात को घर आने वाले पुत्र के अलावा स्त्री तो क्या किसी
महिला का चित्र तक नहीं था । वहाँ अब हर जगह स्त्री स्थापित करना अत्यंत
दुरूह था ।
पहली करवा चौथ पर हम बुखार में तप रहे थे रात भर चाँद नहीं निकला और तब
अंदाज़ से जिधर चाँद था वहीं को घनघोर बारिश में एक घंटे देर से जल दे कर
पूजा की ।

दूसरी करवा चौथ ।पर पति दर्द से बेहाल थे । और हम लगातार उनके पैरों की
मालिश सिंकाई करते व्यायाम कराते नसें काली पङती जा रहीं थीं । कोई आडंबर
नहीं बस मूक हाहाकार मौन रुदन और प्रार्थनायें ।हर संभावित वज़ह को
डायग्नोसिस कराने की भीगदौङ। दुख ही दुख हर तरफ था । बङी बेटी होने के
बीस दिन बाद ही वे बिस्तर से चलने फिरने से लाचार हो गये । शादी के मात्र
सवा साल बाद ही ।
तीसरी करवा चौथ

मई में गाजियाबाद से दिल्ली और तमाम जगह से निराश होकर हम जयपुर पहुँचे ।
वहाँ पति का मेजर ऑपरेशन हुआ । बेटी गर्भ में थी पूरे आठ की । संतोकबा
दुरलभ जी अस्पताल की तीसरी मंजिल रोज चढ़ना और फिर रिक्शॉ से एक किलोमीटर
दूर जाकर पथ्य लाना । पति की शेविंग करना नाश्ता वार्ड में पकाना और
स्पंज देना बेडपेन नित्यक्रिया कराना । वे तब हिल भी नहीं सकते थे बिस्तर
से । हर बार पानी उबालना तब चम्मच से देना ।यूरीन बैग बदलना और पैरों की
लगातार मालिश सिंकाई और सब कुछ करना जो एक माह के शिशु से छह माह तक माँ
कराती है। कभी कभी पति कहते इतनी परेशानियाँ तो माँ ने भी नहीं उठायीं
होंगी। गर्भावस्था उल्टियाँ और साथ में दूसरी बेटी डेढ़ साल की ।
पर पति बेड पर थे । रीढ़ की हड्डी में विवाह से कुछ वर्ष पूर्व
एक्सींडेंट की चोट लगी थी जो तीन कशेरूकाओं में स्लिप डिस्क बनकर उभरी ।
ऑपरेशन सितंबर में जयपुर में नवरात्रि में हुआ वहीं लगातार नवदुर्गा व्रत
रखे और एक बच्चा गोद में दूसरा पेट में और पति बेड पर लिये हम अकेले जूझ
रहे थे अपने परिवार और अपने संकट से । गहने और ज़मीन बेचकर पैसे जुटाये
थे । ससुराल के सब रिश्तेदार तरह तरह की बातें बनाकर दूर हो गये और मायका
दूर था ही । धन पानी की तरह बह रहा था सब डरे हुये थे कुछ मदद न माँग लें
हम । ठान लिया कि किसी को कुछ नहीं बताना है ।
डॉक्टर काटजू डॉक्टर झणाणे ने जब अस्पताल से छुट्टी दी पति को ज्यादा देर
बैठने खङे होने से रोक दिया ।
आराम कराना जरूरी था लगभग सात आठ सौ किलोमीटर बिजनौर तब आना खतरनाक था सो
हम एक रिश्तेदार के घर बूँदी गये । वहाँ पङौस में एक कमरा किराये का
लिया और बच्ची के साथ रहते हुये पति की सेवा में जुट गये । हमारी हालत
दिनों दिन बिगङ रही थी रक्ताल्पता से चेरे पर गहरी काली झाँईया और तनाव
अनिद्रा से ब्लडप्रेशर हाई ।
करवा चौथ पर पुराने जेवर तुङाकर वहीं एक मंगलसूत्र बनवाया ।एक जोङी लँहगा
चूनरी खरीदी और व्रत रखा । डॉक्टर ने बारह नवम्बर तारीख दी थी प्रसव की ।
नौवा महीना चालू था ।
शाम को सब स्त्रियाँ बूँदी की बेहद ऊँची पहाङी पर "करवा चौथ माता ""के
अत्यंत प्राचीन मंदिर जाने लगी ।हम दोनो भी सबकी जिद पर रिश्तेदारों की
गाङी में बैठकर चले गये । नगर से दो तीन किलोमीटर दूर रात के आठ बजे ।
सब मंदिर चढ़ गये तेज गति से हमें गाङी के पास छोङ गये । मैं नवें मास की
गर्भवती और पति का अभी एक पखवाङा पहले ही ऑपरेशन हुआ था रीढ़ का। हम
दोनों ही चढ़ने लगे एक एक सीढ़ी साथ में पौने दो साल की बच्ची पता ही
नहीं चला कब हम तीन सौ सीढ़ियाँ चढ़कर पहाङी पर जा पहुँचे ।सब चौंक गये ।
हम दोनो दरबार में बस रो रहे थे बुरी तरह तरबतर आँसुओं से । और बच्ची
ताली बजा रही थी -"जय चौथ माता की माँ सा बापू सा कहो जय चौथ माता की "
आज विवाह के सोलह वर्ष बीत गये ।और हर करवा चौथ पर मन बूँदी की उस पहाङी
पर से माता के दरशन करके चाँद देखकर कहता है जय चौथ माता की ।
------पूर्णतः सत्य घटना । मौलिक लेख ।Copy right सुधा राजे

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