बिटिया हरखूबाई की
Sudha Raje
कैसे इतनी व्यथा सँभाले
बिटिया हरखूबाई की।
अम्माँ मर गई पर कैं आ
गयी जिम्मेदारी भाई
की।
कैसे इतनी व्यथा सँभाले
बिटिया हरखू बाई की।
आठ बरस की उमर
अठासी के
बाबा
अंधी दादी।
दो बहिनों की ऐसों
करदी बापू ने जबरन शादी।
गोदी धर के भाई हिलक के
रोये याद में माई की।
कैसे इतनी व्यथा सँभाले
बिटिया हरखू बाई की।
चाचा पीके दारू करते
हंगामा चाची रोबै।
न्यारे हो गये ताऊ चचा सें
बापू बोलन नईं देबे।
छोटी बहिना चार साल
की
उससे छोटी ढाई की।
कैसे इतनी व्यथा सँभाले
बिटिया हरखूबाई की।
भोर उठे अँगना बुहार कै
बाबा कहे बरौसी भर।
पानी लातन नल से तकैँ।
परौसी देबे लालिच कर।
समझ गयी औकात
लौंडिया जात ये पाई
-पाई की..
कैसे इतनी व्यथा सॅभाले
बिटिया हरखू बाई की।
गोबर धऱ के घेर में
रोटी करती चूल्हे पे रोती।
नन्ही बहिन उठा रई
बाशन
रगङ राख से वो धोती।
बापू गये मजूरी कह गये
सिल दै खोब
रजाई की।
कैसे इतनी व्यथा सँभाले
बिटिया हरखू बाई की।
भैया के काजैं अम्माँ ने
कित्ती ताबीजें बाँधी।
बाबा बंगाली की बूटी
दादी की पुङियाँ राँधी।
सुनतन ही खुश हो गयी
मरतन ""बेटा ""बोली दाई
की।
कैसे इतनी व्यथा सँभाले
बिटिया हरखू बाई की।
जा रई थी इसकूल रोक दई
पाटिक्का रस्सी छूटे।
दिन भर घिसे बुरूश
की डंडी।
बहिनों सँग मूँजी कूटे
दारू पी पी बापू रोबै
कोली भरैं दुताई की।
कैसें इतनी व्यथा सँभालै बिटिया हरखूबाई की।
बाबा टटो टटो के माँगे
नरम चपाती दादी गुङ।
झल्ला बापू चार सुनाबै
चाची चुपके कहती पढ़।
छोटी बहिन
पूछती काँ गई
माई!!! रोये हिलकाई की
कैसे इतनी व्यथा सँभाले बिटिया हरखू बाई की????
©®¶¶©®¶Sudha Raje
Datia --Bij
Mobile Uploads · Jun 18 ·
कैसे इतनी व्यथा सँभाले
बिटिया हरखूबाई की।
अम्माँ मर गई पर कैं आ
गयी जिम्मेदारी भाई
की।
कैसे इतनी व्यथा सँभाले
बिटिया हरखू बाई की।
आठ बरस की उमर
अठासी के
बाबा
अंधी दादी।
दो बहिनों की ऐसों
करदी बापू ने जबरन शादी।
गोदी धर के भाई हिलक के
रोये याद में माई की।
कैसे इतनी व्यथा सँभाले
बिटिया हरखू बाई की।
चाचा पीके दारू करते
हंगामा चाची रोबै।
न्यारे हो गये ताऊ चचा सें
बापू बोलन नईं देबे।
छोटी बहिना चार साल
की
उससे छोटी ढाई की।
कैसे इतनी व्यथा सँभाले
बिटिया हरखूबाई की।
भोर उठे अँगना बुहार कै
बाबा कहे बरौसी भर।
पानी लातन नल से तकैँ।
परौसी देबे लालिच कर।
समझ गयी औकात
लौंडिया जात ये पाई
-पाई की..
कैसे इतनी व्यथा सॅभाले
बिटिया हरखू बाई की।
गोबर धऱ के घेर में
रोटी करती चूल्हे पे रोती।
नन्ही बहिन उठा रई
बाशन
रगङ राख से वो धोती।
बापू गये मजूरी कह गये
सिल दै खोब
रजाई की।
कैसे इतनी व्यथा सँभाले
बिटिया हरखू बाई की।
भैया के काजैं अम्माँ ने
कित्ती ताबीजें बाँधी।
बाबा बंगाली की बूटी
दादी की पुङियाँ राँधी।
सुनतन ही खुश हो गयी
मरतन ""बेटा ""बोली दाई
की।
कैसे इतनी व्यथा सँभाले
बिटिया हरखू बाई की।
जा रई थी इसकूल रोक दई
पाटिक्का रस्सी छूटे।
दिन भर घिसे बुरूश
की डंडी।
बहिनों सँग मूँजी कूटे
दारू पी पी बापू रोबै
कोली भरैं दुताई की।
कैसें इतनी व्यथा सँभालै बिटिया हरखूबाई की।
बाबा टटो टटो के माँगे
नरम चपाती दादी गुङ।
झल्ला बापू चार सुनाबै
चाची चुपके कहती पढ़।
छोटी बहिन
पूछती काँ गई
माई!!! रोये हिलकाई की
कैसे इतनी व्यथा सँभाले बिटिया हरखू बाई की????
©®¶¶©®¶Sudha Raje
Datia --Bij
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