हम गँवार गंदे किसान की फूटी लोटा थाली

ग्रामवासिनी
हम गँवार देहातिन बाबू !!
गाली है
शहर खा गये सब कुछ
मेरे गाँव
की झोली खाली है

1-दूध पिये बिल्ली कुत्ते तोते फल खाते
माखन तुम
क्या जानो बिन रोटी के
रमदसिया मरने
वाली है

2-
सारी साग़ सब्ज़ियाँ महुये आम आँवले बेर
तलक
भर ले जाते आढ़त बाबू बस
हमरी रखवाली है

3-
बोबें ,छेतें ,छोलें ,रोपें,ईख पिसी तिल
धान उङद
मिल ,काँटे ,मंडी ,कोल्हू पे
गाङी की भी डाली है

4-
जो भी आबे खाता जाबे
हम जाबे तो दुत्कारे
बिही केर गुङ परमल बिक
गये
जोरू बिटिया काली है

5-भैया जी कें गये थे इक दिन
शहर
बिमारी विपदा में
बहिना ने
भी नाही चीन्हा भौजी
मतलब वाली है

6-धिल्ली नखलऊ दून के चक्कर काट काट
कें
चिक्कर गये
"अव्वल की यो
डिगरी "ऊँची "बिन रिश्वत बेमाली है

7-
सुधा गाँव की गौरी नईँ
अब
ठेठों वाली कल्लो भयी
शहर गाँव
की कैसी यारी
मिक्सर
कहाँ कुदाली है

8-
बिजली आने का त्योहार
मनाते हफ्तों बाद यहाँ
राशन की लाईन
घोटाला करे पंच
की साली है

9-
ले जाते मजदूर बनाकर
बंबई
बेचें बच्चों को
हम गँवार गंदे किसान
की फूटी लोटा थाली

10-
कहाँ कौन सा देश और
सरकार हमें तो थाना है इज्जत जाये
कतल
हो चाहे पंचों की दल्लाली है

11-
पाँच साल पे भोट डालने
पकङ पकङ
ले जाबेंगे
दारू दे के बिलमाबेंगे
रैली जोर निकाली है

12-
पटबारी को पैसे नई गये पैमाईश में
फँसा दियौ गिरदाबल के नक्शे में अब
ग्राम समाजू ढाली है

13-
चकबंदी में नायब और
वकीलों ने ऐसा फाँसा
परके करधन बेची रोरो
अबके कान की बाली है

14-
बिटिया पढ़ गई इंटर कैसे शहर पढ़ाबें
जी काँपे
गाँव के बाहर भेजे पे
तो पीछे रोज मवाली है

15-
बेटे की उम्मीद में सासू ससुर
तबीजें करते रये
तीन छोकरी हो गयीं
तिस पे अब आया बंगाली है

16-
रोज रात कूँ हाङ तुङाके
कमली की अम्माँ रोबे
कच्ची पी के लठ्ट चलाबे खोटी, किस्मत
वाली है

17-
गोबर
सानी कुट्टी मट्ठा रोटी बाशन
चरखा भी
जोरू गोरू खेत रखाबे
हमरी बात निराली है

18-
सुधा भात पे 'चीज'
चढैगी
भैंस बिके चाहे
दो बीघे
कैसे हमरी धिया बिआहें चिंता नींद
उङाली है

19-
बी पी एल पे नाम लिखाबे
नकद माँग परधान करे
मनरेगा की मजदूरी भी
मेट की भेंट चढ़ाली है

20-
हस्पताल
की दवा डागधर
शहर बेचते चोरी से
दाई जनाबै बच्चा मर गयी बिंदू
की घरवाली है

21-
मच्छर, बाढ़, बुखार
चोर ,नट
ओझा पंडिते दर्रोगा
बची खुची बिगङी औलादें
नाबालिग धौँचाली है

22-
क्या होता गणतंत्र कायें
की बँटी जलेबी शाला
में
जो केबें परधान वो होबे शासन देश
सवाली है

23-
हमसे घृणा करें रिश्ते भी नही बताते
देहाती
लोकतंत्र किस पोखर डूबा "सुधा "गाँव
में
ठाली है

24- पुरखों की ऊसर जमीन पर कित्तों को रुजगार मिलै
""दादालाई"" बँटवारे पे टूट गई खुशहाली है।
©® sudha raje

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