मनचल मनचल तुम साजन

Sudha Raje
मन के वन को जेठ जिंदगी
सावन बादल तुम साजन!!!!
थकते तन को मरुथल सा जग
मनभावन जल तुम साजन!!!!
पाँव के नीचे तपी रेत पर छल के
गाँव सभी नाते ।
कङी धूप में हरा भरा सा शीतल
अंचल तुम साजन!!
आशाओं के शाम सवेरे दुपहर
ढलकी उम्मीदें ।
निशा भोर से पंछी कलरव चंचल-
चंचल तुम साजन ।
सुधा परिस्थियों के काँटे
नागफनी के दंश समय
हरे घाव पर चंदन हल्दी रेशम
मलमल तुम साजन!!!
डरे डरे दो नयन अँधेरों से रस्मों से
घबराये ।
स्मित अधर सरल आलिंगन ।
मंचल मनचल तुम साजन
इकटक लक्ष्यबेध शर लेकर ।
मैं भूली कर्तव्य सभी ।
मेरी सफलता पर खुशियों के ।
नयना छल छल तुम साजन!!
®©¶सुधा राजे ।
©Sudha Raje
May 5

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