सुधा दोस्ती दिल की है या फिर है असबाबों की

Sudha Raje
तुमने उसका घर ही देखा ।
दिल ज़ज्बात नहीं देखे ।
मैले कपङे तो देखे दुख सुख में साथ नहीं देखे

वो उधार
की चापलूसियाँ क्यों करता क्या ग़रज
उसे

तुमने झूठा दोस्त कहा आँसू इफ़रात
नहीं देखे ।
उसके घर की ईँटों से तेरे संगेमरमर
को क्या????
तू ने आह भरी तो उसने दिन औ रात
नहीं देखे ।
शिक़वा तेरे जलसे में जो ना आ पाने
का तुझको है ।
नौनिहाल बीमार हैं उसके ग़म हालात
नहीं देखे ।।
बेशक़ तू मुख मोङ गया पर वो तो अब
भी याद करे ।
ईद पे ईदी शीर इतर हलुये शुबरात
नहीं देखे ।
सुधा दोस्ती दिल से दिल की है या फिर
असबाबों की ।
सस्ती थी सौग़ात दुआ में उठते हाथ
नहीं देखे।
©Copy right सुधा राज
May 25

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