गजल: ::चली आयी मेरी ही याद

चली आयी मेरी ही याद
मुझको इक़ तराने से
मैं अपने आप से
मिलता गया दिल टूट
ज़ाने से
न पूछो किस तरह
ग़ुज़री कहाँ गुजरी कहाँ था मैं
चला हूँ उम्र भर
निकला नहीँ उसके
ठिकाने से
नशा भी एक रहमत
था अगर
तू दर्द में देता
दिया मुझको अँधेरों में
रखा
रग़बत attrection छुपाने से
ये रोज़ो शब अँधेरे औऱ्
उजाले रोज़ अफ़ज़ूं ग़म daily
growing
न ज़ाने ज़ी गया कैसे
रियाज़त faithजख़्म खाने से
जरीं मौका golden
chanceजो खोया ज़िंदग़ी भर
फिर नहीँ लौटा
जिंदानीं शौक़ औ उल्फ़त
दिल जिंदा दर ग़ोर ख़ाने
से
चले गये साख्तः रिश्ते दफ़न
करके न फिर देखे
मैं साक़िन बे शहर सामां
कहूँ किस आस्ताने से
सुनाये बाप दादों के कई
किस्से पुराने यूँ
छुपायी हमने
अपनी मुफ्लिसी ऐसे ज़माने
से
तुझे पहचान तो लेता मैं
महफ़िल से चला यूँ था
तुझे
शर्मिन्दग़ी ना हो मेरा रिश्ता बताने
से
कलेज़ा काट के
जिनको खिलाते गये
वही अपने
मुझे इकरोज
तश्ना बेअमां कर गये सयाने
से
वो बच्चा जो अकेला सो नहीं सकता था ख़्वाबों में
हकीक़त में
मरा इतना नहीँ डरता डराने
से
मैं टूटा इस कदर बिखरा समेटा बारहा फिर भी
न रोके रोक पाया ख़ुद को
उससे दिल लगाने से

सुधा "ये ग़म मुहब्बत का है
या फिर दोस्ती हस्ती
ये किस्सा बेबसी सरशक़
ज़हाँदारी फ़साने से
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Sudha Raje

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