दोहे: सुधा दोहावली
मन के सूने देश में पीर बजावै ढोल।
नाचै विरहा राजपथ
करुना करै किलोल।
सुधा नगर सूना हुआ
उड़ गये हंस कपोत
रह गयी विरहन वेदना
पीर करै उद्योत।
सुधा घरी भर की करी
या भव सों यूँ प्रीत।
बिछुड़ी अपनो काफ़िलो
बिछुड़ी ही को मीत।
हा हा कारी यौ रुदन
अंतस चीरै खाय ।
सुधा सिरानी वय मरी
विरह सिरानौ नाँय।
का सैं का समझाऊँ मैं
का से कैसी प्रीत।
सुधा मठा सो जग बचो
विरह प्रेम जगजीत।
नोनी नोनी की कहू
रौनी हौ गयी साँस।
भयी अरौनी वय निरी
गयौ सलोनो आँस।
(c)SUDHA RAJE
Dec 12,
2010
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