कविता: :अनधी हुयी सियासत गंदी

Sudha Raje
Mar 9 ·
गूँज रहीं हैं अंतरिक्ष तक चीखें
जलती रूहों की
धधक रही बिन मौत चितायें
कैसा देश????
कहाँ का न्याय????

देश?? कि जिसमें अब तक
आधी आबादी  बेघर!दर दर!!!!!
न्याय कि जिसमें भक्षक बचते
पीङित के ही दबते स्वर?????
कौन प्रशासन??? अरे
वही तो नोंच रहा है
कपिला गाय!!!!!
कौन बचाये किसे बुलाये

अंधी हुयी सियासत गंदी
गाँधीवाद बेचते धंधी
धूल धूसरित विधि विधान सब
वोट चुनाव कमाई की अँधी
जाति धर्म और लिंगभेद दमखम
सत्ता का पर्याय
मात्र कुरसियाँ रहे बचाये
नेता अभनेता कविराय
कैसा देश कहाँ का न्याय
©®¶©®¶
Sudha Raje
बच्चे भूखे खोज रहे कूङे नें जूठन बिकती माँ
और दूसरी ओर केक भी फेंक के होली का मज़मां
दिन भर चलकर चार घङे पानी लाती महिमा सलमा
घर में झील बनाकर तैरे दूजी ओर रमा शम्मां
लाज नहीँ छुपती पैबंदो से भी हवस रोज भरमाये
धन ले बदन दिखा इठलाये
घोर गरीबी लुटती जाये©®सुधा राजे

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