Sunday 31 March 2019

उपन्यास: एक अधूरी गाथा"सुमेधा"

Sharafat: A long story
कहानी : शराफ़त भाग 8
31-4-2013
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सुमेधा एकटक शेखर को देख रही थी । परंतु वह देख रहा था सुर्ख आँखें  हल्के लाल हो उठे कान नाक सूजा चेहरा और बिखरे घुँघराले बाल ।उसका मन दुखा कितना मासूम चेहरा ये आँसुओं से नहाया क्यों हैं । फिर सँभल कर बोला
-अंदर आने को नहीं कहेंगी!!??
बिना नजर उठाये सुमेधा ने बैठने का इशारा किया औऱ कमरे यह कहती हुयी बाहर निकल गयी कि पाँच मिनट में आती हूँ ।
शेखर देख रहा था कमरे में इनडोर प्लांट हर तरफ महीन सफेद औऱ पर्पल रंग के पर्दे और सारा कमरा बहुत कम सामान बस जरूरत की चीज़ें । कुछ पेंटिंग्स आधी अधूरी । डस्ट बिन में तमाम कागज और टेबल पर राईटिंग पैड पर कुछ फङफङाते पन्ने । यूँ उसने उठाया देखा एक अधूरा गीत था
---देख थके फिर नयना मेरे फिर से टूटा ये मन । आ भी जा  ओ!!!  निर्मम

शेखर ने कुछ और कवितायें पढ़ी । ओह ये लङकी जितनी टफ दिखती है उतनी है नहीँ । जैसे अंदर से पिघलती लावे सी दर्द की नदी और बाहर कठोर ग्रेनाईट । शेखर के हाथ से कागज गिर पङे । उसने एक छोर पकङ लिया था मन का । एक बेचैनी सी हलचल सी दिमाग में पर क्या । ये लङकी इतना कम बोलती है कुछ पूछूँ तो कहीँ रूठ न जाये ।
सुमेधा के आने की आहट पर उसने कागज रख दिये । वह कॉफी और बिस्किट्स के साथ कुछ भुने हुये मेवे लायी थी ।
--चलिये आपको अपना टेरेस गार्डेन दिखायें ।
कहते हुये मग उठाये वह कमरे के बगल से लगी सीढ़ियाँ चढ़ने लगी ।
---इतनी वैरायटी के कैक्टस???
वाओ!!! होंठ गोल करके सीटी बजाते वह रूक गया । सुमेधा को हँसी आते आते रह गयी ।
--सॉरी पुरानी आदत है । झेंपता हुआ शेखर देख रहा था सूजी हुयी लाल पलकों पर झाँकती मुसकान कैक्टस पर फूल जैसी लग रही थी । उसने मन में कहा धत् ये क्या मैं भी कविता!!!!
उस शाम छत पर हरे टीन शेड के नीचे इजी चेयर पर बैठे शेखर केवल एक ही कोशिश कर रहा था किसी तरह सुमेधा को हँसा दे । और अंत वह हँस दी जब उसने अपनी गुंडागीरी के किस्से सुनाते हुये बताया कि वह लङकियों से आज भी घबरा जाता है ।
नीचे आते समय रात होने लगी थी ।किताबों का बंडल टेबल पर रखा था जिस पर लिखा था fOR SUMEDHA   SINGH  
BY
SHASHI SHEKHAR 
इतनी सारी मँहगी किताबें!!!
शेखर बात काटकर बोला
हमारी दोस्ती का तोहफा तुम्हें इंगलिश पोयट्री पसंद है सोचा अपने किस काम की । किताबों का भला हो जायेगा ।
वह बोलता ही रह गया जबकि सुमेधा किताबें उलटने पलटने में लगी थी ।
---मैं चलता हूँ
ओह हाँ मैं कल से दुर्गावती होस्टल में शिफ्ट हो रही हूँ तुम चाहो तो मिल सकते हो ये रहा वहाँ का नंबर ।
सुमेधा ने लिखकर नंबर थमा दिया ।
शेखर को लगा सुमेधा जैसे इस घर में ही नहीँ पूरी दुनियाँ में तन्हा है ।
सुमेधा!!!  एक रिक्वेस्ट करूँ???
हाँ बोलो!!
आज से अगले संडे तक कुछ लिखो तो मुझे पढ़ने दोगी??
क्यों??
चाहते हो पढ़ना???
वही पुरूष उत्सुकता???
क्या करोगे जानकर मेरे दिमाग में क्या है???  नहीं कभी नहीँ ।
ओके बाबा सॉरी मैं पत्रिकायें पढ़ लूँगा । शेखर ने सचमुच कान पकङे तो सुमेधा का हाथ चपत की मुद्रा में उठा और मुट्ठी भींचकर रह गयी । शेखर को लगा पसली में बाँयी तरफ कुछ जोर से धङका वह बिना रुके चल दिया ।उस रात यूँ ही घंटों ड्राईव करता । सुमेधा को क्या दर्द खाये जा रहा है?? इतनी सुंदर जहीन बहादुर धनवान लङकी को क्या परेशानी है । लगता है कहीँ कुछ है जो उसे सबसे अलग बनाता है । सोफिस्टिकेटेड नेचर या एक सरद उदासी????
सुमेधा किताबें पढ़ते पढ़ते सो गयी लगभग आधी रात को तेज प्यास से गला सूखा तो उठी और कैम्पर से पानी पिया ।  वह पसीने से तर थी शायद कूलर बंद हो गया था । लेकिन कूलर चल रहा था मन में कुछ उबल रहा था । सपना ही ऐसा देखा था । ये क्या बकवास है तो ये है सुमेधा तेरे मन में उसने अपनी शक्ल आईने में देखी लगा पीछे शेखर मुस्कुरा रहा है । उसकी नजर माँ की तसवीर पर पङी । उसने तसवीर का मुँह दीवार की ओर फेर दिया । वह सिर्फ कॉलेट मेट है और कुछ नही सिर झटक कर वह सोने की कोशिश करने लगी । नींद नहीं आयी तो लिखने बैठ गयी ।
हाथ तेजी से अक्षरों पर फिसल रहे थे और दिमाग में वही मुसकुराता धुँयें के छल्लों के पीछे छिपता गोरा गुलाबी चेहरा नीली आँखें ।
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Ek lammbi kahani
शेष फिर
Sudha Rajeन

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