शराफ़त
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शशिशेखर, हाँ यही नाम
था उस
का गुंडा मवाली बदमाश
शेखर दादा ।
सारा कॉलेज उससे
थर्राता और विशेषकर
लङकियों की तो उसे देखते
ही घिघ्घी बँध जाती ।
उन दिनों सिर्फ साईँस
वाली लङकियाँ ही नियमित
पढ़ती थीँ बाकी सब
प्रायवेट पढ़तीं । कुछ
गिनी चुनी लङकियाँ विधि विधायन
यानि कानून
की छात्रायें थीँ ।
सुमेधा कानून
की छात्रा थी ।
लंबी पतली मजबूत कद
काठी की मॉडल
जैसी देहयष्टि और एक अलग
हमेशा चुप रहने वाली सख्त
सपाट चेहरे वाली लङकी।
अभी अभी इस शहर में
आयी थी ।ना तो कोई
उसे
जानता था ना ही वह
स्वयम् किसी से कोई
बातचीत परिचय बढ़ाने
का प्रयास करती ।
बङी बङी काली आँखेँ
घनी पलकें के नीचे
हमेशा खोयी खोयी रहतीं ।
कॉलेज में उसको प्रवेश
दिलाने कोई साथ में
नहीँ आया था । यह
अनोखी बात थी जबलपुर
तब कोई विकसित शहर
नहीँ था ।
रैगिंग के नाम पर उससे कुछ
ऊटपटांग बोलने
की किसी की हिम्मत
नहीँ हुयी । एक
गाना गाने को भी उससे
कहा तो नहीँ माना ।
परंतु सबको पार्टी देने
का बिल जरूर उसने अदा कर
दिया ।
पीठ पीछे लङके
कभी लेडी टाईगर
कभी एक्शन क्वीन कहते
रहते । तभी एक दिन
अखबार में खबर
छपी कि सुमेधा ने भोपाल
कैराटे ब्लैक बेल्ट
प्रतियोगिता जीत
ली है । सारे कॉलेज में
सनसनी फैल गयी । ये
दुबली पतली हमेशा जबङे
भीँचे रहने
वाली लङकी ब्लैक बेल्ट!!!!!!
बात शेखर दादा के
कानों तक भी पहुँची ।
शेखऱ हमेशा सिगरेट
का धुआँ उङाता साढ़े छह
फीट से निकलता कद ।
एकदम गोरा रंग जैसे दूध में
एक चुटकी रोली मिलाई
हो । बेहद
हल्का गुलाबी 'चेहरा तांबे
के रंग के बाल और
गहरी चमकती नीली आँखेँ
। कोई विदेशी हो जैसे
यूरोप का लगता वह । लोग
उसे अक्सर पर्यटक समझ लेते ।
पतले गहरे गुलाबी होंठों में
दबी मँहगी सिगरेट । और
तीखी नुकीली धार
जैसी हल्की पतली मूँछें ।
नाक जैसे फुर्सत से
गढ़ी हो तीखी सुतवाँ ।
हाथ इतने सफेद
कि लगता बुत
की उंगलियाँ ।
लंबी उंगलियाँ और
उंगलियों में दबा पॉकेट
ट्रांजिस्टर जिसपर कपिल
देव गावस्कर
रविशास्त्री श्रीकांत के
विकेट और चौके
छक्कों की लगातार
चलती कॉमेडी । बदन पर
हमेशा काली टी शर्ट पर
सफेद शर्ट और बेल बॉटम
जिसके पाँयचे बारह से
सोलह इंचेज तक ।
लङकों का एक झुण्ड उसे
हमेशा घेरे रहता ।
लगता जैसे जॉर्ज पंचम के
आगे बस्तर के
आदिवासी जी हुज़ूरी में
खङे हों।
शेखर के सामने जब मरियल
लङकों ने जलन और डाह से
भरकर सुमेधा का घमंड
तोङने
की चुनौती रखी तो एक
बार तो उसने सबको डपट
दिया कि छोकरियों को भाव
नहीँ देता मैँ । मगर जब
अखबार सामने
रखा तो वह देखता रह
गया । सफेद कैराटे पोशाक
में एकदम
जापानी गुङिया लगती ये
लङकी किसी पुरानी मार्शल
आर्ट्स की फिल्म
की नायिका लग
रही थी । एक बार देखूँ
तो सही । कहता हुआ शेखर
जिम से लॉ डिपार्टमेंट
की तरफ चला जहाँ पहले
कभी कभार ही गया था ।
पहला मैदान पार करते
ही माहौल बदला था ।
सीनियर लङकों ने हाँक
लगायी --ओय
रेगिस्तानी जहाज आज
काले पानीसमंदर में कैसै???
--कुछ नहीँ बस ऐसे ही और
कैसे हो आप लोग???
शेखर दादा के होते
क्या ग़म है--कह ते चमचे आगे
बढ़ गये । लॉ प्रथम वर्ष
की कक्षा उस दिन
खाली थी जो अभिभाषक
पढ़ाने आते थे वह नहीँ आये थे
।
ये उन दिनों की बात है जब
कानून के शिक्षक सीनियर
वकील और रिटायर्ड जज
आदि होते थे ।शाम चार
बजे से कक्षायें लगतीँ थीँ ।
क्योंकि अदालतों की छुट्टी तब
से होती ।
प्रायः इसी वजह से
लङकियाँ कम रहतीँ ।
शेखर ने हाँक लगायी --
हल्लो आप में सुमेधा कौन
है????
सकपकायीँ लङकियाँ एकदम
खङीं हो गयीँ । तभी एक
लङका बोला
__दादा वो लायब्रेरी में
होगी वो खाली क्लास
में नहीँ बैठती --
आऊूूूू
अज़ीब सी आवाजें
निकालते चमचे पीछे चल पङे
। पीछे क्लास में अब
अंत्याक्षरी की बजाय
आवाजों में तनाव और
चिंता भरे शब्द सुनाई दे रहे
थे ।
-- तो तुम हो सुमेधा --!!!
कहते हुये सामने
की कुर्सी को उल्टा करके
शेखर बैठ गया ।
अँ आँ!!! हाँ
हाँ हम ही हैँ तो????
चौँकी तो वह लेकिन
डरी जरा भी नहीँ नोट्स
बनाते हुये उसे काफी देर
हो चुकी थी और वह
तल्लीन इतनी थी कि उसे
पता ही नहीँ चला कब
कोई सामने आ बैठा ।
--बङे चर्चे सुने हैं तुम्हारे!!!
कहते हुये शेखर ने सुनहरे
लाईटर से सिगरेट सुलगाई
और धुआँ सुमेधा के चेहरे पर
फूँक दिया ।
---तुम नहीँ आप--
और ये सिगरेट बाहर पीकर
आईये
यहाँ धूम्रपान निषेध है । ---
शेखर की गंभीर और सुर पर
सधी आवाज़ पर गौर करते
हुये वह तेजी से सोच
रही थी कि ये है कौन और
क्या चाहता है । कोई
प्रवासी विद्यार्थी है
या विदेशी । लहजे से
तो पता चलता है
भारतीय है । उँह मुझे क्या ।
शेखर सोच रहा था कमाल
है ना डरी ना चौँकी और
मुझे?!!!! शेखर
दादा को डाँट दिया तुम
नहीँ आप कहो!!!! सिगरेट
मत पीओ!!!! इस कॉलेज के
प्रिंसिपल तक
की कभी हिम्मत
नहीँ पङती!!!
मगर कुछ भी लङकी एकदम
एंटीक पीस जबलपुर में
तो आजतक ऐसा मॉडल
नहीं देखा । लगता है
किसी ऑफिसर
की बेटी है । बाप
का तबादला हो गया होगा और
आना पङा । अपने
को क्या अपनी बनायी हुकूमत
को चैलेंज करेगी तो टिकने
नहीँ दूँगा । वैसे
छोरी लोगों से
ज्यादा बोलके
करना क्या है । इनसे
तो रौनक है ।
जैसे एक दूसरे का दिमाग
पढ़ते हुये दोनों उठ खङे हुये ।
--कोई बात नही-- बैठो तुम
पढ़ो कोई प्रॉब्लम
हो तो बोलना ओ के???
--तुम नहीँ आप --
क्यों मैं सीनियर एम एस
सी फाईनल का हूँ तुम
लॉ फर्स्ट ईयर की!!!
शेखर ने तफरीह
सी की हँसने लगा वह ।--हम
आपके बे तकल्लुफ़ मित्र
नहीँ हैँ! और हमने एम एस
सी करके लॉ पढ़नी शुरू
की है । आप सीनियर
भी नहीँ हैं ।
सुमेधा ने शांत किंतु शब्द
चबाते हुये उत्तर दिया ।
हा हा हा हो हो हो
ूआहा हा हा
छत तोङ
ठहाका लगाता हुआ शेखर
उठ खङा हुआ
उसके ताँबई बालों पर
बङी सी खिङकी से
तिरछी सुनहरी डूबती सूर्यकिरणों की कौँध
और वीणा के
सैकङों तारों की गूँज
सी हँसी ।
सुमेधा को लगा ये कोई
दिव्य मानव
किसी गंधर्वलोक से
आया है । उसे लगा किरणें
नाच रहीँ हैँ
****
परीक्षायें प्रारंभ
हो चुकीं थीँ सुमेधा उस
समय एम एट्टी नामक
मोपेड से कॉलेज
आती जाती थी और
अक्सर लङकियाँ ताँगे से
या परिजनों के पीछे बैठकर
। कुछ लङकियाँ साईकिल
से भी आतीँ थीँ ।
सोचों में
खोयी चली जा रही मोपेड
पर अचानक एक तरफ से
आयी गायों को बचाने के
लिये ब्रेक
लगाती सुमेधा पेङ से
जा टकरायी । सिर पर
जोर की चोट के साथ
मोपेड से उछलकर वह बीच
सङक पर जा गिरी और
कराह उठी । ये
रास्ता प्रायः खाली रहता था ताँगे
रिक्शे अक्सर दूसरे छोटे
रास्ते पर पर से जाते थे ।
काफी देर तक उसने उठने
की कोशिश की लेकिन
लगा घुटना टूट गया है ।
असहाय उसने खुद को उठाने
की कोशिश की तेज चीख
के साथ फिर से बैठ गयी
अब क्या होगा ठीक
आधा घंटे बाद प्रश्नपत्र बँट
जायेंगे । पूरी रात जागकर
तैयारी करने के कारण
उसकी आँखेँ
हल्की गुलाबी हो रहीँ थीँ और
अपनी बेबसी पर उसे
रोना आ गया । तब
मोबाईल नहीँ होते थे । एक
वृद्धा घास का गट्ठर लिये
निकली और सहानुभूति से
वहीँ बैठकर उसके बिखरे
सामान समेटकर देने लगी ।
लेकिन कॉलेज बहुत दूर
था और मोपेड गढ्ढे में
पङी थी घुटना लगता था टूट
गया है । कत्थई जीन्स घुटने
पर से फट गयी थी और
कोहनी पर से डेनिम
की शर्ट भी ।चेहरे पर
खराशें थीं और सिर के
पिछले हिस्से पर
गीला सा लगा तो हाथ
खून से भर गया था । बहुत
जीवट
वाली सुमेधा तेजी से
सोच रही थी ।
दादी माँ आप
किसी को भेज
देना यहाँ मत रूको जाओ ।
अच्छा बिटिया कहती हुयी वृद्धा यथासंभव
तेज कदम से नगर की तरफ चल
पङी । मदद हे ईश्वर मदद ।
तभी रॉयल एनफील्ड
की भद भद भद तेज आवाज
गूँजी कोई आ रहा है । ओह
ये तो वही मवाली शेखर है
। ये मेरी क्या मदद
करेगा उल्टा खुश होगा ।
सुमेधा ने सोचा फिर
भी चलो मदद माँग के देखते
हैं वह पूरी तरह निढाल
होकर लेट गयी । आँखें तब
खुलीं जब करीब आकर
बाईक रूकी और दो मजबूत
हाथों ने उसे उठाकर
बिठाया -----ओ माई
गॉड!!!!!! तुम तो बहुत घायल
हो!!!! कैसे?? कौन टक्कर
मार गया
??
सुमेधा ने चंद वाक्यों में सारी कहानी दुहरायी और कहा कि वह उसे क्लास तक छोङ दे लेकिन जैसे उसने सुना ही नहीँ । लगा बङबङा रहा है ----तुम्हें डॉक्टर की जरूरत है ।क्या तुम पीछे बैठ सकती हो?
सुमेधा ने चाहा कि हाथ पकङ कर उठ जाये मगर चीख कर बैठ गयी । शेखर ने बिना कुछ कहे सुने उसे उठा लिया औऱ बाईक पर बिठा दिया । चक्कर सा आय़ा उसे उसने सिर पकङ लिया । तभी शेखर बङबङाया --मरी नहीँ तुम कमाल हो!! सारा हाथ उसका भी खून से रँग गया ।उसने अपनी सफेद शर्ट निकाली औऱ सुमेधा के माथे पर कसकर बाँध दी ।
-- मेरी आँखेँ तो खोलो बाबा--
वह गहरे स्वर में कराह उठी
ओह!
शेखर एक हाथ से उसे सँभालता हुआ आँखोँ पर से शर्ट ढीली करने लगा । जीवन में पहली बार कोई पुरूष इतने करीब था । कसे बदन पर उछलती मछलियाँ सीने पर काली तंग टीशर्ट से पेशियों की चट्टानें औऱ मरदाने पसीने की महक । आधा घंटे से दर्द से कराहती सुमेधा के गाल शेखऱ की बाजूओं की सख्ती से टकरा रहे थे चेहरे पर जहाँ तहाँ लंबी सफेद उंगलियाँ नाक सीने को छू रही थी वह भूल गयी कि वो एक मवाली के पहलू में है ।उसका जी चाहा कि सिर टिका दे । एक पल का खयाल आयै भी और उसने सिर झटक दिया ।सूर्योदय की धूप फैल चुकी थी एक नजर में सुंमेधा ने देखा नीली आँखों में दर्द की झील थी
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