लेख: :::~~~वामपंथ कम्युनिस्म

कम्युनिज्म पर बहुत पहले लगभग पंद्रह वर्ष पहले जब हमने विप्लवीराग लिखा तो बहुत लोगों को चिढ़ लगी थी । उनमें सबसे पहले नक्सलवाद के समर्थक देश के बड़े अखबारों के संपादक थे । ऐसे लेख अखबार नहीं छापते क्योंकि ये मालिक के एजेंडे पर फिट नहीं बैठते । हमारी किसी पुरानी पोस्ट पर समय मिला तो देखेंगे ।
बात
है तो कह दें कि "हिंसा से कमाई छीनो "का मंत्र लूटपाट का वैचारिक समर्थन और बुद्धि वैभव की उपेक्षा करके ,पशुवत श्रम का महिमामंडन करके मानवों की विविधता को कलम से नकारने वाले बुद्धि विलासियों ने ,अकर्मण्य रहकर भी ,कला संस्कृति नियम अनुशासन सबका विनाश करने को उचित ठहराकर "उपयोगितावाद" के चरम पदार्थवाद को बोया जिसपर डकैती लूट हत्याओं की फसल उगी बरसों लोग मूर्ख बनकर कामरेड लाल सलाम करते मार खाते फटेहाल बने रहे ।
ऊपर के लोग हवा में सादगी दिखा कर उड़ते विलास करते भोगी बने रहे दारू पीते रहे पार्टियाँ होती रही और ,
संगीत मरता रहा
मूर्तियाँ धवस्त होती रहीं
कलाकारी अवरुद्ध हो गयी
कोमल भाव समाप्त हो गए
प्रेम का नाम मांसल यौनाचार हो गया
जीवन का उपयोग श्रम और सब पर एक ही उपचार हो गया
ज्ञान की बरसों सदियों की पूंजियाँ बुजुर्आवाद कहकर समाप्त कर दीं गयीं ,
ईश्वर का नाम तक पाप हो गया
और रह गये हिंसा से भरे आक्रामक निठल्ले लोकतंत्र सरकार विरोधी मुफ्तखोर लोग ,
जिनके पास सपना था
सर्वहारा की तानाशाही की स्थापना .....
वे सपना लिये मरते मारते रहे ,
विचारक चंदा उगाही निर्ममता से करते ,हवा में उड़ते रहे ,
सत्ता में आये तो ऊपर के लोग ,
नीचे के लोग ,
वहीं रह गए ,
पहले से और भूखे और अकेले और अनाथ क्योंकि अब सबकुछ पदार्थ था ।
न चेतना न ईश्वर न ऊर्जा ।
बहुत निकट से नास्तिकों को मरते समय ईश्वर याद करते देखा है .......कहेंगे फिर कभी ©®सुधा राजे

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