गद्यगीत: चिड़िया जंगल तितली
Sudha Raje
Sudha Raje
हम सबमें है एक
कैदी जो बाँध कर
रखा गया किसी अनहोनी की भविष्यवाणी पर
औऱ जब कैद से छूटे
तो जी भऱ दुष्टता की ।
क्योंकि देखी नहीँ थी मुक्ति ।
सोचा यही सत्य है कैद
अँधेरे दर्द।
ये दुषटता जो हम
कहीँ भी करते हैं
किन्हीँ भी मायनों में कम
या ज्यादा किसी के
भी प्रति उसे जज करके
उचित ठहरा लेते हैँ और
वही उचित दूसरे का कष्ट है
तो हम सब ही अपने काले
को सफेद समझते हैँ
किसी का जंगल ग्रे है
तो दुष्टता भी धूसर ग्रे है ये
दुष्टता औरतें औसतन अपने
आप पर पूरूष
स्त्रियों बच्चों बूढ़ो और
अपने से कमजोर पर
किन्ही मायनों में करते हैँ
पशु
जो बहुत मुक्त हैं वे
भी नियम पर चलाने के
दौरान उन
सबकी दुष्टता का शिकार
होते हैँ जो लीक लीक
चलने के जंगल में पलते रहे केवल
कतरन किये पौधे देखे
Sudha Raje
ये बँधे लोग
ही प्रकृति के लिये
खतरनाक हैं
जो भी प्रकृति के
खिलाफ़ है खतरनाक है
हम बगीचे के
पेङों को बेतरतीब बढ़ते
देखना चाहते हैँ
नदियों को बिना बाँध
बिना नहरों के लेकिन जब
ये उन्मुक्त विस्तार
किसी दूसरी प्राकृतिकता के
विस्तार को रोके
वहाँ इसे प्रवाह परिवर्तन
देना ही होगा अन्यथा फूल
तितली चिङियाँ शहद
रेशम मोती कपूर और
लङकियाँ खत्म
हो जायेंगी
मधुमख्खी नहीँ रहेगी चिङिया नहीँ रहेगी तो ये
जंगल हरे नही होंगे
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Sudha Raje
जंगल जब तक है हम
जंगली जब तक हैं तब तक
कविता है कला है
उपयोगितावाद
की तानाशाही नहीँ होती तो ये
किसी भविष्यवाणी के
अंदेशे से कोई ताकतवर
किसी तत्कालीन
निर्दोष
को काली जंज़ीरों में
नहीँ डाल देता । ये ज़ंजीरें
हम सब पर हमारे आकाओं ने
डाली हैं
किसी भविष्यवाणी की आशंका से
कभी दिखती है तन पर
कभी चुभती हैँ मन पर जब जब
जंजीरों से छूट मिलती हैं
मन शूद्र होली खेलता है
भावना स्त्री खोङिया जोगिया और
जिस्म का पुरूष टुल्ली धुत्त
हो पङता है ये
मदिरता कहीँ मदिरा है
तो कहीँ पैशन
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sudhaRaje
Go Crazy
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