नशे के लिए जिनको शराब ,अफीम ,ड्रग्स, गाँजा ,सुलफा ,भाँग ,कोकीन ,हेरोईन ,एलएसडी ,स्मैक ,तपकीर, तंबाकू, या किसी भी प्रकार के पदार्थ की आवश्यकता पड़ती है ,
वे
न युवा रहे हैं ,चाहे उन्नीस के हों या उनन्चास के ,
, उनके भीतर अब कुछ बचा है ,क्यों ?क्योंकि वे अपने आप में कुछ भी ऐसा नहीं रखते जिसमें मगन मस्त अलमस्त मत्त मतवाला लीन तल्लीन हुआ जा सके ,सब बहर्मुख रहा ,ला दे कुछ कि दिमाग काम करना बंद करे ,यदि ऐसी स्थिति है तो ,दिमाग में अब कुछ मौलिक नवीन सृजनात्मक रहा नहीं ,,नशा तो अपने ही किसी धुन में डूबे राग का नाम है जो जाने योगी ,निरोगी ,या शिशु ,तपसी ,माँ ,या वीर, नशा करता है पदार्थ का रिक्त मन खोखला दिमाग और हृदय अधीर ,
नशे
से बाहर निकल कर देखो ,
यह प्रकृति एक मादकता है ,
यह दुख जो तुम्हारे हिस्से आया है यह एक मस्ती है ,
यह अभाव जो तुम्हारे हिस्से में है एक लीनता है ,
यह सब जो तुममें है एक तप है ,
राग ही तो वैराग है वैराग ही तो राग है आनंद ही तो पीर है पीर ही तो नशा है ,
नशा ,
शराब या भाँग से किया तो क्या जिया ,,,,,,,तुम जी सकते हो तो नशा करो अपने होने का ,फिर उसमें भी ,कुछ पृथक होने का ©®सुधा राजे (शुभ रात्रि)
Saturday 2 March 2019
लघु लेख:नशा क्यों
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