गँवार~::नगर
गाँव ......को घृणा की वस्तु बनाकर दिखाया जाता रहा है .....गँवार को गाली .....हमने लिखी थी कविता बहुत पहले प्रकाशित भी हुयी ......*ग्रामवासिनी हम गँवार देहातिन बाबू गाली हैं *......गाँव को न संसद न विधायन न कोर्ट न बाजार ,
कुछ नहीं बस
दोहन से मुक्ति चाहिये थी
मिट्टी के घर मिट्टी के बरतन
गाय का दूध घी मठा दही मावा खीस चीक
गोबर की खाद कंडा गोईँठा
बैल का सहयोग हल बैलगाड़ी में ,
अनाज खेत से
सब्जी छप्पर पर
फल बगीचे में
छाया चौपाल पर
संपूर्ण विवादों का निपटारा बूढ़ों बड़ो की पंचायत में ,
दातुन ,
नदी कुआँ ताल पोखर झील
बरतन कोठी माटी के
खेल खिलौने लकड़ी माटी के
कपड़े चरखे से ,
यंत्र लुहार ,बढ़ई के
जूते मोची के
सिलाई बुनाई घर की
फास्ट फूड भूजा चबैना पापड़ बरी कसार पंजीरी सत्तू लईया परमल खाकरा मठरी ठोकुआ गुलगुले ,
पकवान ताजे
रोटी दोनो समय ताजी
फर्श माटी के
लीपना गोबर का
रंग गेरू ,टेसू ,साग
फूल पत्ते ,चावल का
कलाकारी अल्पना चितेउर साँझी ,
पर्व छठ होली दीवाली दशहरा के
मनोरंजन नाच गाना ढोल तमाशा माच नौटंकी
विद्यालय मंदिर में
अनाथालय धर्मस्थल पर
दान अन्न का
मान वस्त्र का
पूजा पीपल बेल केले आँवले बरगद आम नीम की
पिकनिक ,
तीर्थ यात्रा
पर्यटन देवालय गंगा यमुना सरयू गोमती नर्मदा कावेरी गंगासागर का ,
पहनना बंडी फतूम लहंगा धोती
गाँव मिटाकर ही तो गुलाम बनाया गया न !©®सुधा राजे
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