Friday 29 March 2019

उपन्यास: एक अधूरी गाथा"सुमेधा":

शऱाफ़त
******-कहानी 4part
परीक्षायें पूरी हो चुकीं थीँ कानून के विद्यार्थियों की परीक्षाओं में लंबे लंबे अंतराल पङते थे पूरे छह पेपर लगभग छह प्रायोगिक परीक्षायें और इतने में जून जुलाई आ जाते थे ।
शेखर फिर कभी नहीँ दिखा क्योंकि उसके भी इम्तिहान चल रहे थे पढ़ने में मेधावी शेखर मवाली क्यों बदनाम है???? सुमेधा कभी कभी पढ़ते पढ़ते सोचती और पता ही नहीँ चलता कितना समय बीत गया वह होठों से सी आर पी सी  आ पी सी सी पी सी की धारायें रटती जाती किंतु दिमाग प्रश्नों में उलझ कर उस सुबह की महक में चला जाता करीब ही नागफनी के फूल खिले हुये थे । और छत पर माली से पूरी बगिया बनवा रखी थी उसने हर तरह की नागफनी और हर तरह के वे फूल जो सिर्फ रात में खिलते थे । नरगिस और रातरानी की भीनी सुगंध के बीच  लॉन चेयर पर घुटने पर पलास्टर चढ़ा होने के कारण सपोर्टर स्टिक रख कर अधलेटी सुमेधा को लगा इन सब फूलों में अचानक शेखर के पसीने की महक में मिला खस का इत्र गमक रहा है । वह चौँक गयी ओह!!!!!  मुझे ऐसे नहीँ सोचना चाहिये उसने पास रखे कैम्पर से पानी लिया और थरमस से कॉफी निकाल कर पीते हुये अपना ध्यान एकाग्र किया । नीचे ड्राईँग रूम से तेज जॉज पर चल रही कॉकटेल पार्टी की आवाजों के बीच वह सुन पा रही थी ज़ेहन में गूँजती आवाज ---तुम मरीं नहीँ??  क़माल है!!!
वह कब मुसकुरा उठी पता ही नहीँ चला । हरे टीन शेड के नीचे कूलर की ठंडी हवा गमलों में माली ने पानी दिया था मिट्टी की सौंधी गंध नाक के जरिये फेंफङों में भरती वह सो गयी किताबों को बाँहों मैं भरे ।

****
शेखर बङी सी कोठी के विशाल कक्ष में आलीशान टेबल पर बैठा लिख रहा था कैमिस्ट्री के सूत्र समीकरण और सोच रहा था । कौन है सुमेधा?  वो महिला तो कोई ईसाई लगती है । और सुमेधा जापानी या चीनी!! सुमेधा की माँ नहीँ है तो वह है कोन??? शायद आया??? नहीं नहीं आया इतने गहने!!!!!
बेचारी लङकी बहुत चोट लगी । फिर उसे याद आया कार्ड और उसने वॉलेट टटोला कार्ड निकाला -और पता दोहराने लगा । अचानक उसे हँसी आ गयी
---तुम नहीँ आप --
सोचों में खोया हुआ था कि अलार्म बजा
ओ माई गॉड चार बज गये!?!  नहीँ नहीँ मुझे छोकरियों के बारे में नहीँ सोचना चाहिये । शेखर बाबू सो लो खुद से बातें करता वह सो गया ।
कमरे के भीतर एयर कंडीशनर का धीमा  शोर गूँज रहा था
सोते सोते उसे वे गहरी काली आँखें उनमें लरजते आँसू और घुँघराले बिखरे बिखरे बालों में दाँत भीँचकर दर्द से कराहते भरे भरे भिंचे होंठ याद आ गये   ।  दर्द जैसे उसे महसूस होने लगा और उसने अपनी आँखें मूँद ली   । ©®¶©®¶
क्मशः
शेष फिर
Ek  lammbee  kahaani
सुधा राजे
Sudha Raje

No comments:

Post a Comment